नरेंद्र मोदी की निर्भीकता

0
169

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

चुनाव-अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी जितनी निर्भीकता दिखा रहे हैं, शायद आज तक किसी पार्टी अध्यक्ष या प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ने नहीं दिखायी।

चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अक्सर ठकुरसुहाती बात कहते हैं। गलत बातों का भी समर्थन कर देते हैं या चुप्पी साध लेते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी ने ‘धर्म-निरपेक्षता’ के सवाल पर दो-टूक बात कह दी। उन्होंने छद्म-धर्म-निरपेक्षतावादियों की जमकर खबर ली और दो टूक शब्दों में कह दिया कि वे मजहबी राजनीति को पूरी तरह रद्द करते हैं। वे हिंदुओं और मुसलमानों से नहीं, देश के नागरिकों से वोट की अपील करेंगे। वे 125 करोड़ लोगों से एक साथ वोट मांगेंगे। अगर उनकी यह बात लोगों को पसंद नहीं हैं तो भी वे तो इसी पर डटे रहेंगे। लोग उन्हें हराना चाहें तो हरा दें। वोट न देना चाहें तो न दें।

क्या बात है, मोदी की! मोदी की इस अदा पर कौन न फिदा हो जायेगा? यही एक सच्चे नेता का गुण है। आज भारत को इसी तरह के सुद्दढ़ नेताओं की जरुरत है, जो घोड़े को घोड़ा कह सकें और गधे को गधा!! मोदी ने साफ कह दिया कि वे भारत के नागरिकों में कोई फर्क नहीं करते। वे भारत की जनता को मजहबों में बांटकर नहीं देखते। उनके लिए सभी भारत मां की संतान हैं। सभी भाई हैं। वे उनके बीच दरार नहीं डालना चाहते। जबकि हमारे ‘सेक्यूलरिस्ट’ धर्म या मजहब के नाम पर राजनीति करते रहते हैं। इसी आधार पर मोदी ने कहा कि वे वाराणसी के मुसलमानों से अलग से वोट की अपील नहीं करेंगे।

उन्होंने भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और उ.प्र. के मुस्लिम नेताओं की भेंट को भी उचित बताया। उन्होंने इमाम बुखारी और सोनिया की मुलाकात पर भी कोई आपत्ति नहीं की। मोदी का यह कहना बिल्कुल तर्कसंगत है कि कोई भी नेता किसी भी संप्रदाय के लोगों से मिल सकता है लेकिन वह सांप्रदायिक आधार पर थोक वोट की अपील करता है तो यह अनैतिक है, सांप्रदायिक है, आचार-संहिता का उल्लंघन है और छद्म-धर्मनिरपेक्षता का ठोस प्रमाण है।

हमारी तथाकथित सेक्यूलर पार्टियों की हालत आजकल काफी खस्ता हो रही है। मुसलमानों के साथ अन्याय हो रहा है, यह कहकर वे उदार हिंदुओं के वोट पटाने की कोशिश करती थीं। उन्हें मुसलमानों के थोक वोट तो मिल ही जाते थे और 25%-30% उदार हिंदुओें के वोट मिलाकर वे अपनी सरकार बना लेती थीं और फिर मुसलमानों को अपने हाल पर छोड़ देती थीं। जैसे हिंदू गरीब रोते रहते थे, वैसे ही औसत मुसलमान भी रोते थे। मुट्ठीभर प्रभावशाली मुसलमान नेताओं के मुंह में रसगुल्ले ठूंसकर उन्हें चुप कर दिया जाता था। इस खेल को अब मुसलमान समझ गया है और उदार हिंदू का भी मोहभंग हो गया है। अब दोनों ही भ्रष्टाचारमुक्त और दक्ष शासन-व्यवस्था चाहते हैं अब यह सांप्रदायिक नहीं, राष्ट्रीय आकांक्षा बन गयी है। यदि यह पूरी होगी तो सबको समान लाभ मिलेगा। अब मुसलमानों का थोक वोट किसी एक पार्टी को मिलना मुश्किल है और उदार हिंदुओं का वोट इस बार तथाकथित ‘सेक्यूलरों’ को मिलना भी मुश्किल है। यह जो नयी राजनीतिक जगह खाली हो रही है, इसे नरेंद्र मोदी भरते दिखाई पड़ रहे हैं।

(देश मंथन, 22 अप्रैल 2014)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें