सपा के लठबाजी प्रहसन के फलितार्थ
राजीव रंजन झा :
उनके 'नेताजी' (हमारे नेताजी तो एक ही हैं, आजादी से पहले वाले) भी पार्टी में हैं। चच्चा भी पार्टी में हैं। चच्चा चुनाव भी लड़ेंगे। सबकी सूचियों का भी मिलान हो रहा है, सबका मान रखा जा रहा है। पार्टी भी एक है। चुनाव चिह्न भी सलामत है। बस बीच में डब्लूडब्लूई स्टाइल में जबरदस्त जूतमपैजार की नौटंकी से जनता का दिल खूब बहलाया गया। इस नौटंकी के नतीजे -
भाजपा में स्वामी प्रसाद, कितनी मजबूरी-कितनी रणनीति
संदीप त्रिपाठी :
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पर आरोपों की झड़ी लगा कर 22 जून को पार्टी छोड़ने वाले उनके विश्वस्त रहे स्वामी प्रसाद मौर्य आखिरकार भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। यानी डेढ़ महीने की मशक्कत के बाद स्वामी प्रसाद को भाजपा में जगह मिली।
कांग्रेस 2019 की तैयारी करेगी उत्तर प्रदेश के चुनाव में : विनोद शर्मा
उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनावी समर के लिए कांग्रेस ने अपने सेनापतियों को सामने ला खड़ा किया है। इन नामों को चुनने के पीछे कांग्रेस की रणनीति क्या है, यह जानने के लिए देश मंथन ने बात की कांग्रेस की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा से।
मिशन यूपी 2017 : भाजपा के लिए खुद में झांकने का समय
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
यह कहने में शायद ही किसी को हिचक होगी कि एक हजार साल बाद देश में वह राज आया है, जहाँ सत्ता का शिखर पुरुष छद्म धर्मनिरपेक्षता का स्वांग नहीं करता और ' सबका साथ सबका विकास' के मंत्र का जाप करने के बावजूद भारतीय संस्कृति को बेखौफ ओढ़ता है। देश की विरासत और धरोहरों को सर-आँखों पर रखते हुए अनथक देश की दशा और दिशा बदलने में सतत प्रयत्नशील है। जिस सिस्टम को 15 अगस्त 1947 में बदल जाना चाहिए था, उसको जिन लोगों ने अपने फायदे के लिए बरकरार रखा और लालची मीडिया को अपने पाले में रखते हुए जिन्होंने भ्रष्टाचार को लूटपाट में बदल दिया। उस विकृत हो चुकी व्यवस्था को बदलने की प्रक्रिया की भी देश ने विगत दो वर्षों के दौरान शुरुआत होते देखा।
अनपेक्षित नहीं हैं बिहार के नतीजे : महागठबंधन की हर रणनीति कामयाब
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
लालटेन की रोशनी में तीर के सारे निशाने कमल पर सही लगे। यह रिजल्ट अनपेक्षित नहीं था। लोकसभा चुनाव के बाद पिछले साल 10 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजों से ही इसका संकेत मिल गया था। इस चुनाव के लिए भी महागठबंधन की तैयारी हर स्तर पर बीजेपी से बेहतर थी। मोदी और बीजेपी का हर राज जानने वाले प्रशांत किशोर की चाणक्य-बुद्धि भी महागठबंधन के काम आ गयी।
बिहार चुनाव के नतीजे : संभावित संभावनाएँ
संदीप त्रिपाठी :
बिहार विधानसभा के लिए सभी चरणों के मतदान संपन्न हो गये हैं। मतदान बाद के सर्वेक्षण भी आ चुके हैं। जिस सर्वेक्षण में जिस गठबंधन को बढ़त दिख रही है। उस गठबंधन के समर्थक उसी सर्वेक्षण को सही मान रहे हैं। अब इंतजार है नतीजों का। राजनीति संभावनाओं का खेल है और इसे असंतुलन को साधने की कला कहा जाता है। इस मोड़ पर एक विषय बहुत मौजू है कि कौन जीतेगा तो क्या होगा और कौन हारेगा तो क्या होगा। यहां पहले गालिब का एक शेर, फिर संभावनाओं पर बात -
बिहार चुनाव : एक दृष्टिकोण
सुशांत झा, पत्रकार :
कई बार पोस्ट की टिप्पणियाँ पोस्ट की नानी साबित होती हैं! मेरे पिछले पोस्ट पर एक टिप्पणी आयी कि बिहार में जो भी सरकार बनेगी वो एक कमजोर सरकार होगी लेकिन विपक्ष मजबूत होगा। ऐसा हो सकता है।
वादों से बिजली
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
अगर वादों, नारों से बिजली बनाना संभव होता, तो बिहार पूरे देश को बिजली सप्लाई करने जितनी बिजली बना पाने में समर्थ हो जाता। बिहार में वादे ही वादे सब तरफ से गिर रहे हैं। चुनाव आम तौर पर वादा महोत्सव होते हैं, पर बिहार विधानसभा चुनाव तो सुपर-विराट-महा-वादा महोत्सव हो लिये हैं।
बिहार में ‘हवा’ उसकी नहीं, जिसकी जीत होने वाली है!
अभिरंजन कुमार :
बिहार चुनाव एक पहेली की तरह बन गया है। अगड़े, पिछड़े, दलित, महादलित-कई जातियों/समूहों के लोगों से मेरी बात हुई। उनमें से ज्यादातर ने कहा कि उन्होंने बदलाव के लिए वोट दिया, लेकिन साथ ही वे इस आशंका से मायूस भी थे कि बदलाव की संभावना काफी कम है।
नयनतारा से मुनव्वर एक डूबते हुए वंश को बचाने के लिए हुए क्रांतिकारी
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
अब आप इसे सेक्युलरिज्म की लड़ाई कहें, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले के खिलाफ सघर्ष कहें या बढ़ती असहिष्णुता का विरोध... नयनतारा सहगल से लेकर मुनव्वर राणा तक आते-आते यह साफ हो चुका है कि बिहार चुनाव के ठीक बीच लेखकों का “पुरस्कार लौटाओ अभियान” पूर्णतः सियासी है। जिन डिजर्विंग और नॉन-डिजर्विंग लेखकों पर अतीत में अहसान किये गये, आज एक डूबते हुए वंश को बचाने और देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा रहा है।
बिहार चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए पुरस्कार लौटा रहे हैं लेखक
अभिरंजन कुमार :
किसी दिन पुरस्कार लौटाने के लिए यह जरूरी है कि आज पुरस्कार बटोर लो। पुरस्कार मिले तो भी सुर्खियाँ मिलती हैं। मिला हुआ पुरस्कार लौटा दो तो और अधिक सुर्खियाँ मिलती हैं। समूह में पुरस्कार लौटाना चालू कर दो तो क्रांति आ जाती है। ऐसी महान क्रांति देखकर मन कचोटने लगा है। काश...