बिहार में सत्ता बदलनी चाहिए
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
अपने दोस्तों से जब मैं बिहार की दुर्दशा की चर्चा करता हूँ और कहता हूँ कि अब बिहार में सत्ता बदलनी चाहिए, तो मेरे साथी मेरी ओर हैरत भरी निगाहों से देखने लगते हैं, और पूछने लगते हैं कि संजय सिन्हा, कहीं तुम भाजपाई तो नहीं हो गये?
वायदों की बौछार, पर धन का पता नहीं
राजेश रपरिया :
आज मतदान के प्रथम चरण के साथ बिहार का भाग्य इलेक्ट्रॉनिक मतपेटिकाओं में बंद होना शुरू हो चुका है। नतीजे एनडीए के पक्ष में आयें या नीतीश-लालू-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में, पर इस बार बिहार चुनाव निष्कृष्टता और मर्यादाहीनता की सभी सीमाएँ लांघ चुका है। सिद्धांतहीनता अपने चरम पर है। चुनावों में इतना वैमनस्य कभी देखने में नहीं आया, जो इस बार बिहार में देखने को मिल रहा है। मतदान नजदीक आने के साथ सारे मुद्दे गुल हो गये हैं और शुद्ध रूप से जातियों के गणित पर यह चुनाव आ कर टिक गया है।
बलि के बकरों के लिए किसका काँपता है कलेजा?
अभिरंजन कुमार :
अखलाक को किसी हिन्दू ने नहीं मारा। हिन्दू इतने पागल नहीं होते हैं। उसे भारत की राजनीति ने मारा है, जिसके लिए वह बलि का एक बकरा मात्र था। सियासत कभी किसी हिन्दू को, तो कभी किसी मुस्लिम को बलि का बकरा बनाती रहती है। इसलिए जिन भी लोगों ने इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम रंग देने की कोशिश की है, वे या तो शातिर हैं या मूर्ख हैं।
बिहार चुनाव : विकास, गोकसी और आरक्षण का मुद्दा है भारी
संदीप त्रिपाठी :
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान होने में एक हफ्ते हैं। बीते महीने में विश्लेषक यह आकलन करते रहे कि दोनों प्रमुख चुनावी गठबंधनों, राजद + जदयू + कांग्रेस के महागठबंधन और भाजपा + लोजपा + रालोसपा + हम के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बीच बाजी किसके हाथ रहेगी। और यह भी कि तारिक अनवर के नेतृत्व में सपा + राकांपा + जन अधिकार पार्टी (पप्पू यादव) + समरस समाज पार्टी (नागमणि) + समाजवादी जनता पार्टी (देवेंद्र यादव) + नेशनल पीपुल्स पार्टी (पीए संगमा) का गठबंधन धर्मनिरपेक्ष समाजवादी मोर्चा इन दोनों प्रमुख गठबंधनों में कहाँ किसके वोटबैंक में सेंध लगायेगा। और यह भी कि हैदराबाद की राजनीतिक पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी बिहार के सीमांचल क्षेत्र में क्या गुल खिला पायेंगे और इससे किसको नुकसान और किसको फायदा होगा और इनके पीछे कौन है।
बिहार में किसकी हार?
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :
बिहार विधानसभा चुनाव। बिहार में किसकी हार? सवाल अटपटा लगा न! लोग पूछते हैं कि चुनाव जीत कौन रहा है! लेकिन यहाँ सवाल उलटा है कि चुनाव हार कौन रहा है? बिहार के धुँआधार का अड़बड़ पेंच यही है! चुनाव है तो कोई जीतेगा, कोई हारेगा। लेकिन बिहार में इस बार जीत से कहीं बड़ा दाँव हार पर लगा है! जो हारेगा, उसका क्या होगा?
पाँच चरणों में होगा बिहार विधानसभा के लिए मतदान
चुनाव आयोग ने बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा कर दी। इसके साथ ही राज्य में चुनावी आचार संहिता प्रभावी हो गयी है। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर, 2015 को खत्म हो रहा है।
बिहार चुनावः अग्निपरीक्षा किसकी?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
बिहार का चुनाव वैसे तो एक प्रदेश का चुनाव है, किन्तु इसके परिणाम पूरे देश को प्रभावित करेंगे और विपक्षी एकता के महाप्रयोग को स्थापित या विस्थापित भी कर देगें। बिहार चुनाव की तिथियाँ आने के पहले ही जैसे हालात बिहार में बने हैं, उससे वह चर्चा के केंद्र में आ चुका है। प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी वहाँ तीन रैलियाँ कर चुके हैं।
नीतीश कुमार का अहंकार और स्वाभिमान
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन:
बिहार चुनाव के मद्देनजर, भारतीय जनता पार्टी को बहुत तकलीफ है कि नीतीश कुमार अहंकारी हैं। और नीतीश कुमार न जाने क्यों सफाई देते घूम रहे हैं कि वह अहंकारी नहीं, स्वाभिमानी हैं। इतने समय तक सार्वजनिक जीवन में रहने के बाद अगर यह बताना पड़े कि मैं यह हूँ, वह हूँ या वह नहीं हूँ तो क्या सार्वजनिक जीवन जीया।
मुस्लिम बहुल सीटें करेंगी लालू-नीतीश के भाग्य का फैसला
श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार :
आमतौर पर यहीं माना जा रहा है कि इसबार महागठबंधन के पक्ष में और एनडीए के विरोध में अल्पसंख्यकों की गोलबंदी होगी। बिहार में 47 सीटें ऐसी हैं
महागठबंधन की किलेबंदी में दरारें
संदीप त्रिपाठी :
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की दृष्टि से हालात रोमांचक होते जा रहे हैं। सीध-सीधे दो खेमे दिख रहे हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की बढ़त से घबराये जनता दल यू नेता नीतीश कुमार ने विधानसभा की जंग जीतने के लिए हरसंभव रणनीति अपनायी। जिस लालू प्रसाद यादव के विरोध के आधार पर अपनी छवि गढ़ी, उसी लालू यादव से हाथ मिला लिया, महागठबंधन के तहत 140 से ज्यादा सीटों पर लड़ने की जिद छोड़ महज 100 सीटों पर लड़ने का समझौता कर लिया।
बीमारू की राजनीति
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन:
बीमारू पर बड़ा कनफ्यूजन है। मुझे नहीं। कंफ्यूजन जानबूझकर पैदा किया जा रहा है। मोदी जी कह रहे हैं कि बिहार को बीमारू राज्य से बाहर निकालेंगे। मने बाकी को बीमारू ही रहने देंगे। जहाँ भाजपा की सरकार है उसे भी। आपको शायद ना मालूम हो पर झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान भी बीमारू राज्य हैं। नीतिश कुमार मोदी की तरह होते तो बताते। लेकिन वो बुरा मान जाते हैं। झटका खा जाते हैं। मुझे नहीं लगता कि आम आदमी खासकर 80 के दशक में पैदा हुई आज की युवा पीढ़ी को बीमारू राज्य का मतलब भी पता है। अगर पता होता तो यह दावा ही नहीं किया जाता कि बिहार को बीमारू राज्य से अलग करेंगे। बिहार को बीमारू से अलग कर देंगे तो “मारू” बचेगा। और आप से वो नहीं संभलने वाला।
बिहार में कार्यकर्ताओँ के हाथ में बाजी
संदीप त्रिपाठी :
बिहार के विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होंगे, ऐसे संकेत हैं। अभी कोई ऐलान नहीं हुआ है लेकिन चुनाव आयोग की तैयारियाँ ऐसी ही हैं। सियासी दल तो कब से इसी संकेत के इंतजार में बैठे थे। मुख्य चुनाव आयुक्त तो अगस्त के पहले हफ्ते में चुनावी तैयारियों का जायजा लेने बिहार का दौरा करेंगे लेकिन सियासी दल इससे पहले ही चुनाव प्रचार में जुट गये हैं।