संदीप त्रिपाठी :
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पर आरोपों की झड़ी लगा कर 22 जून को पार्टी छोड़ने वाले उनके विश्वस्त रहे स्वामी प्रसाद मौर्य आखिरकार भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। यानी डेढ़ महीने की मशक्कत के बाद स्वामी प्रसाद को भाजपा में जगह मिली।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा में शामिल होने के अवसर प्रधानमंत्री मोदी की जम कर सराहना की, भाजपा को नयी सोच वाली पार्टी बताया और दावा किया उत्तर प्रदेश में भाजपा दो-तिहाई बहुमत से सरकार बनायेगी। सवाल यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को भाजपा में शामिल होने में इतना समय क्यों लगा, भाजपा ने इस वक्त उन्हें क्यों पार्टी में शामिल किया, स्वामी प्रसाद मौर्य का भाजपा में कद क्या होगा और वह पार्टी के लिए क्या करेंगे?
विकल्पहीन हो गये थे स्वामी प्रसाद
स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब बसपा छोड़ी थी, तो शुरुआत में यह लग रहा था कि समाजवादी पार्टी उनका पलक-पाँवड़े बिछा कर स्वागत करेगी, लेकिन एक-दो दिन बाद ही सपा नेताओं के सुर बदल गये और स्वामी प्रसाद ने भी सपा नेताओं पर आक्षेप करना शुरू कर दिया। फिर आयी भाजपा की बारी। भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर से स्वामी प्रसाद मौर्य की मुलाकात हुई, अन्य कुछ नेताओं से भी मुलाकात हुई लेकिन उन्हें भाजपा में शामिल करने के लिए अमित शाह तक सहमति नहीं बन पायी। बसपा छोड़ने के कुछ दिन बीतने के बाद स्वामी प्रसाद का मामला ठंडा पड़ने लगा। स्वामी प्रसाद के बाद उनके समर्थक कई अन्य बसपा नेताओं के पार्टी छोड़ने के जो कयास लगाये जा रहे थे, वह आरके चौधरी, रवींद्र नाथ त्रिपाठी, संगम मिश्र जैसे कुछ गिने-चुने नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद थम गयी। और जिन्होंने पार्टी छोड़ी भी, वे स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ नहीं गये या यूँ कहें कि उन्होंने व्यक्तिगत क्षमता पर पार्टी छोड़ी। स्वामी प्रसाद ने अपनी नयी पार्टी बनाने की सोची, लेकिन यह योजना भी परवान नहीं चढ़ सकी। फिर वे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उत्तर प्रदेश में पाँव पसारने की योजना में शामिल हो लिये। लेकिन नीतीश के साथ राह बहुत कठिन थी, मेहनत बहुत थी, मिलना कुछ नहीं था। ऐसे में स्वामी प्रसाद के पास भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई चारा न था।
दलित मुद्दे पर घेरेबंदी का जवाब
लेकिन भाजपा को अगर स्वामी को पार्टी में शामिल करना ही था, तो इतना इंतजार क्यों कराया? दरअसल स्वामी प्रसाद बसपा छोड़ने के बाद भाजपा में शामिल होने पर बड़ा मुआवजा चाहते थे। यह भाजपा के न प्रदेश नेताओं को स्वीकार्य था और न ही केंद्रीय नेताओं को। ऐसे में मामला ठंडे बस्ते में चला गया। लेकिन हाल-फिलहाल जब गुजरात के उना मामले और दयाशंकर मामले समेत विभिन्न स्थानों पर दलित मामलों पर विपक्ष ने भाजपा को घेरना शुरू किया तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर थोड़ा नकारात्मक असर पड़ा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस पर भाजपा को चेताया। उसके बाद ही स्वामी प्रसाद भाजपा के लिए फायदे का सौदा लगने लगे। यह अनायास नहीं है कि प्रधानमंत्री हैदराबाद में, जहाँ रोहित वेमुला नामक एक छात्र की आत्महत्या से दलित मामलों ने जोर पकड़ा, दलितों की सुरक्षा के लिए भावनात्मक अपील करते हैं और उसके कुछ ही समय बाद उत्तर प्रदेश में बसपा के बड़े नेता रह चुके स्वामी प्रसाद मौर्य को दिल्ली बुला कर अमित शाह, ओम माथुर और केशव प्रसाद मौर्य की मौजूदगी में पार्टी में शामिल कर लिया जाता है। साथ ही भाजपा को फायदा यह हुआ कि बीते डेढ़ महीनों में स्वामी प्रसाद मौर्य यह जान चुके हैं कि अकेले चलने या किसी ऐसी-वैसी पार्टी में शामिल होने पर उनका कोई राजनीतिक भविष्य नहीं दिखता। यानी डेढ़ महीने पहले जो स्वामी प्रसाद मौर्य सौदा करने की स्थिति में थे, अब कमोबेश राजनीतिक अस्तित्व बचाने की मुद्रा में थे।
भाजपा में क्या होगा स्वामी प्रसाद का उपयोग
फिलहाल यह नहीं लगता कि स्वामी प्रसाद मौर्य को प्रदेश स्तर पर कोई प्रमुख पद दिया जायेगा। उनका काम फिलहाल यही होगा कि दलित मुद्दों पर भाजपा के खिलाफ होने वाली घेरेबंदी की धार को कुंद करने में वे सक्रिय हों, पूर्वांचल के हिस्से में अन्य पिछड़ी जातियों और दलित को भाजपा के पक्ष में लाने की कोशिशों में जुटें, बसपा द्वारा भाजपा पर किये जाने वाले आक्रमणों का जवाब दोगुने वेग से दें और भाजपा की संभावनाओं को मजबूत करने में जुट जायें। कुछ वेबसाइटों, मीडिया संस्थानों का यह कहना, कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया जायेगा, एक अत्यंत हड़बड़ी भरा आकलन है। उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया जाना भी मुमकिन नहीं लग रहा है क्योंकि यह नहीं लगता कि भाजपा दिल्ली वाली गलती उत्तर प्रदेश में भी दोहराना चाहेगी। स्वामी प्रसाद मौर्य विधानसभा चुनाव तक भाजपा को क्या दे पाते हैं, उनकी इस क्षमता के नतीजे आने के बाद ही स्वामी प्रसाद मौर्य के राजनीतिक भविष्य का निर्णय होगा।
(देश मंथन 09 अगस्त 2016)