राजीव रंजन झा :
कल अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू के ट्वीट हवाले से खबर चल गयी कि लॉकडाउन 15 अप्रैल को खत्म हो जायेगा। फिर यह ट्वीट हटा ली गयी।
अभी चार दिन पहले कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने भी कहा था कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। हालाँकि उनका यह बयान केवल अफवाहबाजी रोकने के लिए था। लेकिन प्रेमा खांडू का आज का ट्वीट इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण बन गया, क्योंकि यह ट्वीट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देश के सभी मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियोकॉन्फ्रेंस के जरिये हुई बैठक के बाद आया था। इससे यह लगा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की इस बैठक में यह बात निकल कर आयी होगी। लेकिन ट्वीट हटाये जाने का सीधा मतलब यही निकलता है कि अभी केंद्र सरकार ऐसा भी स्पष्ट आश्वासन नहीं देना चाहती है कि 14 अप्रैल के बाद लॉकडाउन बिल्कुल खत्म हो ही जायेगा।
दरअसल लॉकडाउन खत्म होना दो बातों पर निर्भर करेगा। एक यह कि मरकज से निकल कर देश भर में फैले लोगों से कोरोना वायरस का प्रसार रोकने में कितनी सफलता मिलती है। जिस तरह से ये लोग छिपते फिर रहे हैं और समुदाय के बीच असहयोग भड़का हुआ है, उससे यह आशंका काफी है कि मुस्लिम बहुल मोहल्ले (जो काफी जगहों पर बेहद सघन हैं, घेट्टो जैसे) बड़े स्तर पर संक्रमण के शिकार होने वाले हैं। प्रशासन इन मोहल्लों को अलग-थलग करने की रणनीति पर चलेगा, क्योंकि इन मोहल्लों में प्रशासन की कम चल रही है, कठमुल्लों की ज्यादा चल रही है। अगर इन मोहल्लों में वायरस का सामुदायिक प्रसार (कम्युनिटी स्प्रेड) हुआ, तो लॉकडाउन को खोलना आसान फैसला नहीं होगा।
दूसरी बात, केजरीवाल सरकार की मेहरबानी से जो लाखों की अनियंत्रित भीड़ दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा पर इकट्ठा हो गयी थी, वह अब उत्तर प्रदेश और बिहार के अलग-अलग जिलों में फैल चुकी है। इनमें काफी लोग तो गाँव-शहर से बाहर ही रख कर क्वारंटाइन किये गये हैं, लेकिन काफी लोग सीधे अपने घरों में भी जा चुके होंगे। कई जगहों पर प्रशासन के सूत्रों से जानकारी मिली कि संसाधनों की कमी के चलते लोगों को रोका नहीं जा सका। दूसरे, क्वारंटाइन और लक्षणों की जाँच के मामले में भी काफी लापरवाही की खबरें हैं, जो उत्तर प्रदेश और बिहार में लोगों के आम रवैये और सरकारी कर्मचारियों की काहिली के चलते आश्चर्यजनक नहीं है, लेकिन खतरनाक बहुत है।
गनीमत यही है कि अब तक इन प्रवासियों के बीच कोरोना फैलने की खबरें नहीं आ रही हैं। तबलीगी जमात मरकज के निकल कर अलग-अलग शहरों में गये हर झुंड में कोरोना वायरस के काफी संक्रमित मरीज मिल रहे हैं और मरकज से जबरन निकाले गये ढाई हजार लोगों में से तो संक्रमित मरीजों की संख्या सैंकड़ों में है। लेकिन प्रवासी मजदूरों के बीच ऐसा कुछ नहीं दिखा है। फिर भी, अभी करीब हफ्ते भर काफी सतर्क रह कर रुझान देखने की जरूरत है।
इसलिए जहाँ मरकजी लोगों ने देश भर में सामुदायिक प्रसार का खतरा काफी बढ़ा दिया है, वहीं प्रवासी मजदूरों के बीच अब ऐसा नहीं दिखा है पर अभी खतरा समाप्त नहीं माना जा सकता। इन दोनों पहलुओं पर 14 अप्रैल तक क्या स्थिति बनती है, उसी से तय होगा कि लॉकडाउन आगे जारी रहेगा या नहीं। या फिर, अगर लॉकडाउन में ढील दी भी गयी तो क्या संक्रमण के फैलाव के आधार पर कुछ खास इलाकों को लॉकडाउन में ही रखा जायेगा।
ज्यादा संभावना यही लगती है कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन पूरा होने के बाद क्रमशः अलग-अलग क्षेत्रों में ढील दी जायेगी, यानी देश लॉकडाउन से क्रमशः बाहर निकलेगा। रेल गाड़ियों और विमान सेवाओं के लिए 15 अप्रैल और इससे आगे की तिथियों की बुकिंग चालू करने से यही लगता है कि इन्हें आगे बंद रखने का फिलहाल कोई इरादा नहीं है। विमानसेवाओं, रेलगाड़ियों, बसों एवं निजी वाहनों के चलने और आर्थिक गतिविधियों को फिर से प्रारंभ करने में भी यही क्रमिक दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है। ऐसा करने से चीजें धीरे-धीरे सामान्य होने की ओर लौट सकेंगी और कोविड-19 कोरोना वायरस के बेकाबू ढंग से प्रसार का खतरा भी नहीं बनेगा।
अभी हम यह आशा नहीं कर सकते कि 21 दिनों की लॉकडाउन अवधि पूरी होने तक कोरोना वायरस का प्रकोप एकदम थम चुका होगा। दुनिया भर से जिस तरह के रुझान आ रहे हैं, उनसे लगता है कि शायद हमें कई महीनों तक इससे जूझना पड़ सकता है। मगर 21 दिनों के लॉकडाउन ने भारत को दूसरे चरण से तीसरे चरण में जाने यानी सामुदायिक प्रसार से बचाया है। कम-से-कम तबलीगी जमात मरकज के चलते इसके फैलाव से पहले तक तो यह बात काफी भरोसे के साथ कही जा रही थी।
अभी भी, पिछले दो-तीन दिनों में संक्रमित व्यक्तियों की संख्याएँ तेजी से बढ़ी हैं, पर नये मरीजों में अधिकांश संख्या मरकज से संबंधित लोगों की ही है। उन्हें अगर अलग कर दें, तो भारत में कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों के आँकड़े अब भी अन्य देशों से काफी हल्के हैं। यदि मरकज से निकले लोगों और उनके सीधे संपर्क में आये लोगों को सफलता के साथ एकांतवास (क्वारंटाइन) में डाला जा सका और प्रवासी मजदूरों के पलायन के बीच कोरोना वायरस का प्रसार न हुआ हो, तो हम लॉकडाउन पूरा होने तक शायद काफी संतोषजनक स्थिति में होंगे।
(देश मंथन, 3 अप्रैल 2020)