आमिर खान साहब, बात जरा खुल कर कहते ना!

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राजीव रंजन झा : 

जब कुछ लोग कहते हैं कि देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे हैं, तो शायद उनका डर वाजिब ही है। अगर ऐसा नहीं होता तो अभिनेता आमिर खान इशारों में आधी-अधूरी बातें नहीं करते और खुल कर कहते कि वे किन घटनाओं का जिक्र कर रहे थे। उन्होंने बस इतना कहा कि बहुत सारी घटनाओं से वे बेचैन या भयभीत हैं। स्थिति इतनी बिगड़ी हुई है कि पत्नी किरण राव ने उन्हें देश छोड़ने का ही सुझाव दे डाला है।

पर किन घटनाओं ने आमिर खान और उनकी पत्नी को इतना भयभीत कर दिया? दिल्ली में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि “एक व्यक्ति के रूप में, इस देश के एक नागरिक के रूप में, हम अखबारों में पढ़ते हैं कि क्या हो रहा है, समाचारों में देखते हैं, और निश्चित रूप से हम भयभीत हैं। मैं बहुत सारी घटनाओं से भयभीत हुआ हूँ।” आमिर खान साहब, आप इस देश के सुपरस्टारों में गिने जाते हैं। आपके करोड़ों प्रशंसक हैं। वे सब जानना चाहेंगे कि किन घटनाओं ने आपको इस कदर भयभीत कर दिया। आपको खुल कर बताना चाहिए। 

आमिर ने थोड़ा संदर्भ बताया है कि अपनी पत्नी के डर का। कहा है कि किरण अपने बच्चे के लिए भयभीत हैं, और इस बात के लिए भयभीत हैं कि हमारे आसपास कैसा माहौल बन रहा है। किरण हर दिन अखबार खोलते हुए डरती हैं। आमिर, आप जरा साफ-साफ बताइये कि आप किस माहौल की बात कर रहे हैं। क्या इस समय देश में असहिष्णुता के बारे जो बहस छिड़ी हुई है, वही आपके इस बयान का मूल बिंदु है? अगर आप कुछ और कहना चाहते थे, तो जल्दी से साफ कर दीजिए, क्योंकि जनता ने आपके बयान को उसी संदर्भ में जोड़ लिया है। वैसे कहते हैं, ये जो पब्लिक है, सब जानती है। तो पब्लिक ने ठीक ही समझा है ना आमिर साहब?

आपने लेखकों और फिल्मकारों की पुरस्कार वापसी के कदम का भी तो लगे हाथ ही समर्थन किया है। इसलिए यह मान लेना बहुत भूल नहीं होगी कि आपने भी भारत में असहिष्णुता बढ़ने के संदर्भ में यह सब बातें कही हैं। इसीलिए यह देश अब आपके परिवार के रहने लायक नहीं रह गया है। लेकिन फिल्में बनाने और अरबों रुपये कमाने के लिए यह देश ठीक है या नहीं? किस दूसरे देश में आप वहाँ के बहुसंख्यक धर्म का खुल कर मजाक उड़ाने वाली फिल्म बना पाते? केवल बना ही नहीं पाते, बल्कि वह फिल्म सुपरहिट होती और उस बहुसंख्यक धर्म को मानने वाले लोग उस फिल्म को खूब मजे ले कर देखते? 

वैसे आपने अपनी पत्नी किरण से ठीक ही कहा कि देश छोड़ने का विचार अनर्थकारी (डिजैस्ट्रस) है। आखिर किस दूसरे देश में आपको वह सब मिलेगा, जो यहाँ मिला है? फ्रांस में हाल की आतंकवादी घटना के बाद वहाँ के मंत्रियों ने मस्जिदों को बंद करने की बात उठायी है। अमेरिका जाते तो जाने के साथ ही क्या-क्या अनुभव होता, यह खुद नहीं पता तो अपने मित्र शाहरुख से ही पूछ लीजिए। वहाँ जाने के बाद सबसे पहले राष्ट्रपति बराक ओबामा का प्रवचन सुनने को मिलता कि मुस्लिम समुदाय को क्या सब करना चाहिए था जो उसने नहीं किया है। और अगर कहीं डोनाल्ड ट्रंप अगले राष्ट्रपति बन गये तो फिर वहाँ की मुस्लिम आबादी के लिए उनकी क्या-क्या योजनाएँ हैं, यह गूगल पर तलाश कर लीजिए। 

वैसे तो आपके ही बहुत सारे प्रशंसक देश छोड़ने की इन टिप्पणियों के बाद इतने गुस्से में हैं कि वे पाकिस्तान का नाम ले रहे हैं। पर मैं अच्छे से समझ सकता हूँ कि आपके मन में इसका ख्याल भी नहीं आया होगा, क्योंकि वहाँ के कलाकार तो काम की तलाश में भारत आते रहते हैं। वहाँ सब इतना ही अच्छा होता, तो वे लोग यहाँ क्यों आते!

देश में असहिष्णुता बढ़ी है नहीं, बढ़ी है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है, इन सब पर हाल के दिनों में इतनी बहस हो चुकी है कि इस मुद्दे पर कुछ भी लिखना निरर्थक लगने लगा है। ऐसे में मन में यह सवाल तो उठता है कि अब इस विषय को छेड़ने के पीछे आपकी सोच क्या थी? कहीं ऐसा तो नहीं कि बिहार चुनाव के बाद अचानक असहिष्णुता की बहस ठंडी पड़ने लगी थी और उसमें नयी आँच फूँकने के लिए फिर किसी बड़े बयान की जरूरत महसूस होने लगी थी? लेकिन ऐसा कहने का मतलब होगा कि आपने एक खेमे की रणनीति के तहत ऐसा बयान दिया। ऐसा हम कैसे कह सकते हैं? ऐसा कहने का कोई प्रत्यक्ष आधार नहीं है। लेकिन बस ये जो पब्लिक है ना…

वैसे तो जनता भुलक्कड़ होती है, लेकिन फेसबुक और ट्विटर जैसे माध्यमों पर देख रहा हूँ कि लोग आपके साल 2006 के बयानों को भी याद कर ले रहे हैं। अरे भई, करीब एक दशक बीत गया उन बातों को। आपने वडोदरा की घटनाओं पर तब कुछ कहा था तो कहा होगा। क्या फर्क पड़ता है कि तब बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से सड़कों को चौड़ा करने के लिए मंदिरों को भी गिरा देने के कारण विश्व हिंदू परिषद ने मोदी को औरंगजेब का खिताब दे दिया था, मगर आपकी नजर केवल इस बात पर गयी थी कि वडोदरा में सड़क निर्माण के लिए एक दरगाह को हटाया जा रहा था। 

अब आज की तारीख में यह बात याद करने का भी क्या फायदा कि आपने गुजरात में नर्मदा बांध के निर्माण को रोकने के लिए चल रहे आंदोलन में शिरकत की थी और उसके बाद मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने आपकी फिल्म का राज्य में प्रदर्शन रोक दिया था। ये सब बातें तो आप भी भूल ही चुके होंगे, क्योंकि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के महीने भर के अंदर ही आप उनसे मिलने गये थे और मिलने के बाद बड़ी अच्छी-अच्छी बातें लिखी थीं। हालाँकि तब हमें भी समझ नहीं आया था कि आपको अपने टेलीविजन कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ के लिए आपको प्रधानमंत्री से कौन-सी मदद मिलनी थी, लेकिन हम तो पब्लिक हैं और पब्लिक हर बात पर दिमाग नहीं लड़ाती। 

हम तो ऐसा भी नहीं सोच सकते कि आपने अपनी अगली फिल्म रिलीज होने से पहले चर्चा में आने के लिए यह सब बोला होगा, क्योंकि कोई चर्चा में आने के लिए अपने प्रशंसकों को ही थोड़े ही चोट पहुँचाता है। सच कह रहा हूँ। फेसबुक और ट्विटर खंगाल लीजिए, अंदाजा लग जायेगा कि आपके प्रशंसकों को कितनी चोट लगी है। जिन लोगों ने आपकी फिल्म पीके में भगवान शंकर को इधर से उधर भगाने के दृश्य मजे ले कर देखे, वे लोग कहने लगे हैं कि जाना है तो ठीक है, टिकट के पैसे मुझसे ले लो। 

खैर, अगर आपको और आपके परिवार को इतना ही डर लगने लगा है तो देश के बड़े लोगों से मिल लीजिए। आप तो सीधे प्रधानमंत्री मोदी से मिल सकते हैं। उनसे कहिए कि वे आपकी सुरक्षा और देश का माहौल सुधारने के लिए कुछ करें। आपकी पहुँच राहुल गांधी तक भी होगी। उनसे भी मिल लीजिएगा और बताइएगा कि उनके आसपास भी इमरान मसूद जैसे असहिष्णु लोग फिर दिखने लगे हैं, जिनकी विशेषज्ञता “बोटी-बोटी काटने” में है। उनसे कहिएगा कि वे भी ऐसे लोगों से दूर रहेंगे तो असहिष्णुता कम होगी। 

(देश मंथन, 25 नवंबर 2015)

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