जरा नजाकत से सँभालें कश्मीर : कांग्रेस की सलाह

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अभिषेक मनु सिंघवी, प्रवक्ता, कांग्रेस : 

जहाँ तक हमारे संविधान की सीमाओं का सवाल है, और जहाँ तक भारत की अक्षुण्णता एवं सुरक्षा का सवाल है, उसमें किसी रूप से कोई समझौता नहीं हो सकता है।

इस विषय पर कोई बहस नहीं हो सकती, क्योंकि जो व्यक्ति (बुरहान वानी) मारा गया है, वह खुद अपने-आप मान कर चल रहा था, उसके आस-पास और परिवार के लोग मानते हैं कि वह आतंकवादी था। उसने स्वीकार किया था कि वह आतंकवादी है, ऐसा नहीं था कि वह आरोपित आतंकवादी हो। जो स्वीकृत रूप से आतंकवादी हो, वहाँ पर किसी रूप से आप उसमें समझौता नहीं कर सकते या ढील नहीं दे सकते। 

जहाँ तक प्रदर्शनकारियों का सवाल है, वे उस श्रेणी में बिल्कुल नहीं आते हैं। उनके लिए नहीं कह सकते कि वे आतंकवादी हैं। एक आवेश है, आक्रोश है, गलत धारणा भी है, उकसाये हुए हैं, एक वातावरण बनाया हुआ है – ये सब बातें सही हैं। कई तरह से गलत भी उकसाये जाते हैं। लेकिन उनकी तुलना किसी रूप से आप आतंकवादियों से या देशद्रोहियों से नहीं कर सकते। यह जरूर है कि उनमें से कुछ बहकाये हुए हैं, कुछ आवेश और आक्रोश में हैं। वह सब अलग बात है। 

इसलिए उस संदर्भ में इन प्रदर्शनों को नाजुक रूप से सँभालना चाहिए – संवेदनशीलता के साथ, समझा-बुझा कर और सख्ती भी रख कर। उदाहरण के तौर पर सीधे-सीधे गोली नहीं चलानी चाहिए, जब तक आपको नियंत्रण के बाहर जाती हुई हिंसा न दिखे। आप गोली चलायेंगे तो उससे ज्यादा बढ़ेगी बात। ये लोग ऐसी श्रेणी में आते हैं, जो एक खास भावना से आगे चले हैं। ऐसा नहीं है कि उन्होंने आतंकवाद का रास्ता पकड़ लिया है। आप उनको ज्यादा उस तरफ धकेलें भी नहीं, यह भी ध्यान रखना जरूरी होता है। 

मैंने यह ट्वीट किया है कि अगर कोई कहता है कि बुरहान वानी (Burhan Wani) बंदूक उठाने वाला अंतिम बंदा नहीं था तो वह ये भूल रहा है कि भारतीय सेना (Indian Army) की तरफ से भी यह अंतिम गोली नहीं थी। निश्चित रूप से अगर गोली और चलेगी तो यहाँ से भी गोली चलेगी। यह उनके लिए है, जो स्वीकृत आतंकवादी हैं, जो अरसे से अधिसूचित हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि यह अधिसूचित व्यक्ति था, जिस पर ईनाम घोषित था। यह हर आदमी पर लागू नहीं होता है। 

मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि आप बंदूक उठा कर गोलियाँ चलाना शुरू कर दीजिए। अगर कोई ऐसा आतंकवादी है, जो एक कमांडर के रूप में जाना जाता है तो निश्चित रूप से उसका जवाब आयेगा, लेकिन साथ-साथ इस पर एक बहुमुखी दृष्टिकोण रखना चाहिए। एक तरफ सख्ती, एक तरफ समझाना और साथ लाना। दो अलग-अलग श्रेणियाँ हैं।

(देश मंथन, 11 जुलाई 2016)

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