आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सिकंदर जब भारत फतह के लिए आया था, तो दिल्ली से वापस हो लिया था, पता है क्यों, दिल्ली में नदी और नाली का फर्क बाऱिश में खत्म हो जाता है। सिकंदर ने अपने सेनापति से कहा-झेलम, चिनाब जैसी नदियाँ जब हम पार करते हैं, तो हमें यह पता होता है कि ये नदियाँ हैं। दिल्ली में जिसे सड़क समझो, वह नाला निकलता है, जिसे नाला समझो, वह नदी निकलती है। जिसे नदी समझो वह कूड़े का ढेर निकलता है। दिल्ली बहुतै कनफ्यूजिंग है भाई।
अब वक्त आ गया है कि दिल्ली समेत पूरे देश में बाढ़ के मौसम में या किसी भी मौसम में एडवेंचर टूरिज्म की बात की जाये।
अमेरिकन, यूरोपियन टूरिस्ट बहुत रकम खर्च करते हैं, लाइफ में एडवेंचर हासिल करने के लिए। पहाड़ पर कूद जाते हैं, गहरे समंदर में कूद जाते हैं उन खतरों से मुखातिब होने के लिए, जिनके सामने बंदे को थ्रिल हासिल होता है। जिनके सामने बंदा रोमांचित हो उठता है। मैंने कई इंडियन टूर आपरेटरों को सुझाव दिया कि इंडिया में नार्मल यात्रा, रोज की जिंदगी ही टूर एडवेंचर है, किसी अमेरिकन या यूरोपियन को इंडिया की रेल के जनरल बर्थ में यात्रा करवा दो, सुपर एडवेंचर दिख जायेगा उसे। भारत के एक आम आदमी के रोजमर्रा की जिंदगी की हालत से किसी अमेरिकन-यूरोपियन को रूबरू करवा दो, एडवेंचर के मजे आ जायेंगे उसे।
इंडिया में रेल की जनरल बर्थ में यात्रा कर लो, तो एडवेंचर की पूरी सीरिज निकल आती है। जैसे कोई बंदा ठसाठस भरे डिब्बे में बाहर से अंदर जाने की कोशिश कर रहा है। ट्रेन ने सीटी बजा दी है, बंदा घुसने की कोशिश कर रहा है। अंदर घुस पायेंगे या नहीं, यही सवाल एकदम थ्रिल पैदा कर देता है। बंदा घुस गया ट्रेन के टायलेट में पानी नहीं है। टायलेट में पानी गायब है, और बंदा निपटायमान अवस्था में बैठ गया है, पानी आयेगा कि नहीं आयेगा, आयेगा तो कब आयेगा। ऐसा तो नहीं होगा कि पानी आयेगा ही नहीं, नहीं आयेगा तो क्या होगा, हाय। ऐसे सवालों के जवाब तलाशने में बंदा ऐसे एडवेंचरों से गुजरेगा कि एकदम रोमांचित हो उठेगा।
अमेरिकन -यूरोपियन यात्रियों की तो सोच से भी बाहर हैं ऐसे एडवेंचर।
एडवेंचर की तलाशवाले अमेरिकनों-यूरोपियनों को गाजियाबाद या आसपास के इलाकों में ले जाना चाहिए। बारिश आने के बाद पहला काम यह होता है कि बिजली चली जाती है। दो दिन से बिजली गायब, इनवर्टर ठप पड़ गये हैं। बिजली आ ही नहीं रही थी, पानी भी गायब हो लिया बंदा करे तो क्या करे। ऐसी स्थितियों में जीवन चलाये रखने के लिए वैसी ट्रेनिंग की जरूरत होती है, जैसी आम तौर पर कमांडो को दी जाती है। साधनविहीनता की स्थिति में भी काम कैसे चलाना है। खाने-पानी का जुगाड़ ना हो तो भी जीवित कैसे रहना। बिजली-पानी विहीन अवस्था में एक ही दिन रहना पड़ जाये अमेरिकनों-यूरोपियनों को तो, फिर फिर कह उठेंगे-जी अल्टीमेट एडवेंचर है यह तो।
भारत का आम आदमी जिन हालात को नार्मल समझता है, अमेरिकन-यूरोपियनों के लिए वो एडवेंचर ही हैं।
बहुत गहराई से विचार किया मैंने कि भारत जैसे देश में सुपरमैन जैसे कार्टून चरित्र पैदा क्यों नहीं होते। इस सवाल का जवाब खुद मिल गया है कि भारत में आम आदमी सुपरमैन से कम थोड़े ही ना है। बिजली पानी के बगैर बरसाती नालियों के सानिध्य में हफ्ता-हफ्ता खेंच जाये जो, वो किस सुपरमैन से कम है।
भारत में एडवेंचर टूरिज्म की अपार संभावनाएँ हैं, बस उनके दोहन की जरुरत है।
(देश मंथन 02 अगस्त 2016)