शोशे की सरकार

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संदीप त्रिपाठी : 

दिल्ली में गर्मियां शुरू होते ही पानी की किल्लत शुरू हो गयी। मई-जून में क्या होगा, पता नहीं। बिजली-पानी के सवाल पर सरकार बनाने वाले आप नेता अरविंद केजरीवाल ने हाथ खड़े कर दिये हैं।

एक नयी लंतरानी छेड़ दी है कि वीआईपी इलाकों को भी पानी की किल्लत झेलनी होगी। आप के अंधभक्त प्रसन्न हैं, कह रहे हैं कि चलो! इस बार अपन ही नहीं, सांसद-मंत्री भी झेलेंगे किल्लत।

यानी समस्या के समाधान की ओर न केजरीवाल का ध्यान है और न ही आप के अंधभक्तों का। लेकिन जो आम आदमी है, उसकी समस्या तो जस की तस रह गयी। वीआईपी इलाके में पानी की किल्लत पैदा की गयी तो क्या वीआईपी वाकई उसी तरह झेलेंगे जिस तरह आम आदमी झेलता है? बिल्कुल नहीं। एक तो वीआईपीज का एक बड़ा हिस्सा गर्मियों में दिल्ली की बजाय पहाड़ों में चला जाता है। मंत्री-सांसद अपने संसदीय क्षेत्रों में चले जायेंगे। जो बच जायेंगे, वे पानी बाजार से खरीद लेंगे। उनके लिए महज दो महीने का खर्च बढ़ेगा।

लेकिन आम आदमी क्या करेगा? इसी समस्या के समाधान के लिए उसने आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को चुना था और जनता ने केजरीवाल या आप को महज इसलिए नहीं चुना था कि पूर्ववर्ती कांग्रेस-भाजपा सरकारें उनकी इस समस्या का समाधान नहीं कर पायी थीं। जनता ने आप या केजरीवाल को इसलिए चुना कि इन्होंने जनता को भरोसा दिलाया कि समाधान उनके पास है। वरना वीआईपी इलाकों में गर्मियों में पहले भी पानी की किल्लत हुई है, सुर्खियां बनी हैं। हां! वीआईपी इलाकों में किल्लत के बिना पर किसी सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पाने की कोशिश अब तक नहीं की थी। जीहां केजरीवाल साहब! दिल्ली की जनता ने आपको वीआईपी इलाकों में किल्लत पैदा करने के लिए नहीं, बल्कि आम जनता को पानी दिलाने के लिए चुना था। दिल्ली में पानी की किल्लत का समाधान ढूँढ़ने के लिए चुना था।

दिल्ली में सत्ताधारी आप और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया कह रहे हैं कि केंद्र के कहने पर हरियाणा सरकार दिल्ली को ज्यादा पानी देने से मना कर रही है। बड़ा मजेदार आरोप है। केजरीवाल के वादे को पूरा करने का पूरा दारोमदार भाजपा का है। केजरीवाल अपने वादे पूरे नहीं कर पा रहे हैं तो यह भाजपा की गलती है। मानों दिल्ली की जनता ने सरकार बनाने के लिए आप को और वादे पूरे करने के लिए भाजपा को चुना है। आप के वक्तव्यों और आरोपों से तो लगता है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी हरियाणा की जनता के प्रति नहीं, अपितु केजरीवाल के वादों के प्रति ही है। अब तक तो किसी को पता नहीं था कि गर्मियों में हरियाणा के लोगों की पानी की जरूरत कम हो जाती है, आप और केजरीवाल ने कोई नया अनुसंधान किया हो तो पता नहीं।

थोड़ा पीछे, सवा साल पहले के परिदृश्य को याद करें। तब केंद्र, दिल्ली और हरियाणा, तीनों जगह कांग्रेस की सरकार थी। दिल्ली में शीला दीक्षित और हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, दोनों ही यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के पसंदीदा थे। अगर पानी की किल्लत का समाधान यही था कि हरियाणा ज्यादा पानी दे दे तो यह दिक्कत कब की खत्म हो गयी होती। सोनिया हुड्डा को निर्देश देतीं और मुनक नहर का पानी दिल्ली के नलों में प्रवाहित होने लगता। लेकिन तब हरियाणा की जनता प्यासी रहती। कांग्रेस के लिए यह मुमकिन नहीं था कि हरियाणा को प्यासा रख कर दिल्ली को पानी पिलाये। और अगर सोनिया यह निर्देश (जो संभव नहीं था) हुड्डा को देतीं तो क्या हुड्डा के लिए यह मानना संभव था? दिल्ली को यमुना से उसके हिस्से का पानी मिल रहा है। अब अगर दिल्ली की आबादी तेजी से बढ़ी है, दिल्ली में कंक्रीट के जंगल तेजी से बढ़े हैं, दिल्ली में भूजल स्तर तेजी से गिरा है तो इसमें हरियाणा की क्या गलती है?

दरअसल जनता से बेसिर-पैर के वादे कर केजरीवाल ने सत्ता तो हासिल कर ली लेकिन यही वादे अब उनके जी का जंजाल बने हैं। केजरीवाल की आदत भी रही है कि कोई समस्या होने पर वह बचने के लिए एक नायाब तरीका अपनाते हैं। कोई कुछ बोले, इससे पहले चिल्लाना शुरू कर दो, विरोधियों का नाम लेकर चिल्लाने लगो। समस्या सुलझे-न सुलझे, आप तो साफ-सुधरे साबित हो जायेंगे और सामने वाला सफाई देते-देते थक जायेगा, लोग आपको ही सही समझेंगे और आपकी दुकान चलती रहेगी।

(देश मंथन, 26 मार्च 2015)

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