क्या प्रयास कर रहा है अल्पसंख्यक समुदाय?

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जाने-माने हिंदी लेखक और जामिला मिलिया इस्लामिया के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष असग़र वजाहत ने अपनी एक ताजा टिप्पणी से भारत में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच रिश्तों पर नया सवाल उठाया है। इन सवालों पर उनके विचार क्या हैं और इन्हें उठाने की जरूरत क्यों पड़ी है, इसे समझने के लिए राजीव रंजन झा ने उनसे बातचीत की। 

असग़र वजाहत की फेसबुक पर की गयी टिप्पणी : 

“एक बात बहुत दिन से मेरे मन में है जो शायद कुछ लोगों को बुरी लगेगी या उसके दूसरे अर्थ लगायेंगे। मै पूरी कोशिश कर रहा हूँ कि सैद्धांतिक स्थिति साफ़ और सरल तरीके से सामने रखूँ और बातचीत का रास्ता खुले……भारत के बहुसंख्यक समुदाय ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था (संविधान के माध्यम से) स्थापित की थी जो आज भी है.. (केवल अल्पसंख्यक समुदाय किसी तरह की राजनीतिक व्यवस्था स्थापित नहीं कर सकता.)। लोकतंत्र के अंतर्गत अल्पसंख्यक समुदाय को बराबर के अधिकार और आजादी है। और वास्तव में भारतीय अल्पसंख्यक समुदाय (अपवादों को छोड़ कर) विश्व के अनेक तानाशाही देशों की तुलना में अधिक स्वतंत्र और सुरक्षित है। क्या भारतीय अल्पसंख्यक समुदाय इसके महत्व को समझता है? क्या भारतीय अल्पसंख्यक समुदाय कोई ऐसा प्रयास करता है कि संविधान पर विश्वास करने वाले बहुसंख्यक समाज की सदभावना बनी रहे?”

देश मंथन के लिए असगर वजाहत से राजीव रंजन झा की बातचीत :

राजीव रंजन झा – आपके मन में ये सवाल क्यों उठे हैं?

असग़र वजाहत – देखिए, एक बहुत सीधी सी बात है कि लोकतंत्र की रक्षा और एक-दूसरे के प्रति सद्भावना बहुत आवश्यक है। उसके बिना तो काम नहीं चल सकता है। मुझे यह लगा कि इस बात की ओर ज्यादा स्पष्ट ढंग से संकेत किया जाये तो ज्यादा अच्छा होगा। अल्पसंख्यक समुदाय, मुसलमान ही नहीं दूसरे भी जो हैं उन्हें देख लीजिए, वे मुख्यधारा से थोड़े-से अलग रहते हैं। इस महादेश की लोकतांत्रिक शक्तियों का साथ देने में और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने में वे साथ आयें तो उनकी भी एक प्रखर छवि बनेगी। 

लोकतंत्र में जो बहुमत होता है, उसका बड़ा महत्व है। उस महत्व से इन्कार नहीं कर सकते आप। यह बात महसूस करने की है, इसी नीयत से मैंने यह टिप्पणी लिखी। 

राजीव रंजन झा – मुख्यधारा में शामिल होने की बात को क्या थोड़े विस्तार से समझा सकते हैं?

असग़र वजाहत – आप अच्छी तरह समझते हैं कि पूरे देश में लोकतंत्र के लिए आंदोलन चल रहे हैं। उनमे जो शामिल होगा वही मुख्यधारा में शामिल होगा। यह तो बात स्पष्ट है। 

राजीव रंजन झा – चुनाव होते रहे हैं और लोग मतदान करते हैं। 

असग़र वजाहत – चुनाव होना और उसमें मतदान करना ही अगर आप समझते हैं कि यह लोकतंत्र के लिए काफी है, किसी देश में लोकतंत्र बचाने के लिए आप चुनाव को ही काफी मानते हैं तब तो फिर आपकी बात सही है। लेकिन मैं तो इसे काफी नहीं मानता हूँ। 

राजीव रंजन झा – और क्या होना चाहिए?

असग़र वजाहत – ये बहुत लंबी बातचीत है। मैं इस विषय पर और आगे भी लिखूँगा, लेकिन फिलहाल मैंने इतना लिखा है। 

राजीव रंजन झा – अल्पसंख्यक समुदाय को आपके विचार से किस तरह के प्रयास करने चाहिए?

असग़र वजाहत – मैंने कहा ना कि लोकतंत्र के लिए, सामाजिक समरसता के लिए जो जरूरी हैं, वे प्रयास करने चाहिए। 

राजीव रंजन झा – आपने अपनी टिप्पणी के अंत में लिखा है कि ” क्या भारतीय अल्पसंख्यक समुदाय कोई ऐसा प्रयास करता है कि संविधान पर विश्वास करने वाले बहुसंख्यक समाज की सदभावना बनी रहे?” यह सवाल उठाने की जरूरत क्यों महसूस हुई है?

असग़र वजाहत – आप पहले यह पक्ष देखिए कि क्या सद्भावना बनी हुई है? एक अल्पसंख्यक समाज आपके देश में ऐसा है जिसके बारे में बहुमत की क्या धारणा बनी है, क्या धारणा बन रही है और कैसी धारणाएँ फेसबुक पर सामने आती हैं? और ये धारणाएँ क्यों हैं? यह तो बहुत स्पष्ट है। यह होता इसीलिए है कि संवाद नहीं होता और संवादहीनता की स्थिति पैदा हो जाती है। संवाद बनायेंगे तो उससे और स्पष्ट होगा। 

(देश मंथन, 23 अगस्त 2015)

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