और बुर्के पर चर्चा पूरी हुई

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संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

तो तय यह हुआ कि बुर्का एकदम जरूरी है। बुर्के को जरूरी मानने वाले धर्म की महिलाएँ कम पढ़ी-लिखी, कम जागरूक हैं इसलिए इसपर किसी महिला को बोलने नहीं दिया जाएगा और चर्चा करने के लिए पुरुष अपने असली रूप में मैदान में डटे रहेंगे।

आप मानें या न मानें 2016 में भी बुर्का के समर्थन में तमाम तर्क हैं। कुछ उदाहरण – बुर्का जरूरी है बताने के लिए तर्क दिया जाएगा कि बिना बुर्के के महिला बिकनी में आ जाएगी और यह बताने पर कि बुर्के के नीचे तो सामान्य या पर्याप्त परिधान रहते ही हैं, बुर्के की क्या जरूरत? तो कहा जाएगा कि साड़ी के नीचे पेटीकोट होता ही है साड़ी की क्या जरूरत। ऐसे तर्कों से आगे बढ़ते हुए आप कहेंगे कि महिलाओं का मुद्दा है तो महिला ही बात करे। तो किसी महिला के फेसबुक पोस्ट को धड़ाधड़ कॉपी पेस्ट किया जाने लगेगा। ये देखिए हमारी (इकलौती) पढ़ी-लिखी महिला भी बुर्के के समर्थन में है। अगर आपने बुर्का के खिलाफ किसी महिला की पोस्ट का हवाला दे दिया तो उस ‘बहन’ से अपील की जाएगी कि ये बिना पर्दे वाले खुले सेक्स के हिमायती हैं, बच कर रहना देख कर ही गर्भवती बना सकते हैं!!

संक्षेप में, बुर्का इसलिए जरूरी है कि इसमें महिला के शरीर के कसाव और उभार का पता नहीं चलता है। इसलिए गंदी नजर नहीं पड़ती। गंदी नजर वालों की आँख फोड़ने या उन्हें काला चश्मा पहनाने की कोई व्यवस्था क्यों नहीं हो सकती है या होनी चाहिए इसपर भी कोई बात नहीं हो सकती। क्योंकि पुरुष बंदिश में क्यों रहेगा। और महिला अगर ऐसी छुई मुई है तो स्कूल कॉलेज किसलिए जाएगी। ज्यादातर शायद इसीलिए नहीं जातीं। दूसरी ओर, पढ़ेंगी नहीं तो कहा मानेंगी पालतू कुत्ते की तरह। उससे ज्यादा की उन्हें जरूरत भी कहाँ है। पुरुष हैं ना उनका हित सोचने वाले।

यह बहस का मुद्दा नहीं है। जानने के लिए नोट कर लीजिए और चूँकि हम आपके घूंघट पर नहीं बोलते। इसलिए आप हमारे बुर्के पर मत बोलिए। लेकिन घूंघट पर क्या बोलोगे? घूंघट और बुर्के में कोई मुकाबला ही नहीं है और उसका कोई समर्थन नहीं करता। और जो नहीं जानते उन्हें बताना जरूरी है कि घूंघट पराए पुरुषों से रक्षा के लिए नहीं है, वह तो अपने ही रिश्तेदारों और रिश्ते में बड़ों के लिए एक औपचारिक पर्दा है। मुँह नहीं दिखता है लेकिन पेट तो दिखता ही है। पर बराबरी बुर्के से करना है तो कीजिए।

घूंघट घर में भी रखा जाता है और बाजार में भी नहीं रखा जाता है। बुर्का नहीं है कि घर में जैसे रहे, बाहर निकले तो डाल लिया। बुर्के के अंदर कौन है पता ही नहीं। और इसीलिए दूसरे धर्म वाले इसका उपयोग कम और दुरुपयोग ज्यादा करते हैं। लेकिन इसपर चर्चा मत कीजिए। मैं तो नहीं करूंगा। 

(देश मंथन, 27 अप्रैल 2016)

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