पुराणिक, व्यंग्यकार :
अभी कांग्रेस का स्थापना दिवस मनाया गया, कई नेता गाँधी टोपी में थे, बहुत अश्लील लग रहे थे। पर उनसे ज्यादा वह टोपी अश्लील लग रही थी।
खैर निम्नलिखित निबंध उस छात्र की कापी से लिया गया है, जिसे निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिला था। निबंध लेखन प्रतियोगिता का विषय था-टोपी।
टोपी, जैसा सब जानते हैं, दो शब्दों से मिलकर बनती है-टो और पी। टो यानी उठा कर ले जाने की प्रक्रिया, होता है ना वह टो -अवे जोन, जहाँ से गाड़ियों को टो करके, उठा करके ले जाया जाता है। और पी का का मतलब क्या बताया जाये, पी का मतलब तो होता है-पी प्यारे ठर्रा हो या रम, देशी हो या विदेशी। सो टोपी का भावार्थ हुआ कि दूसरों का माल उड़ा कर पार कर लो और फिर दारु पीकर मस्त रहो। संक्षेप में यही आज की नेतागिरी है और इसलिए टोपी को मूलत राजनीतिक आइटम माना जाता था।
कांग्रेस के पास टोपी होती थी, मतलब यूँ तो अब भी है। गाँधी टोपी मूलत कांग्रेसी टोपी है, जिसे गाँधीजी ने खुद कभी ना पहना।
महात्मा गाँधी के नाम पर चली टोपी, बहुत बदनाम हो गयी है। इतनी बदनाम हो गयी है कि शरीफ दिखने की चाह रखने वाले नेताओं ने इसे पहनना छोड़ दिया। अब की राजनीति में ईमानदार होना जरूरी नहीं है, पर ईमानदार दिखने का फैशन भर रह गया है। सो टोपी त्याग कर कई नेता यह फैशन निभा रहे हैं।
आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस की टोपी लेकर उस पर आम आदमी लिख दिया और वह आम आदमी पार्टी की टोपी हो गयी और ये टोपी ऐसी चली कि दिल्ली में कांग्रेस की सरकार ले उड़ी। अब कांग्रेस यूँ कह सकती है कि ये टोपी तो मूलत हमारी टोपी थी, आम आदमी पार्टी इसे ले उड़ी। पर इसका जवाब आम आदमी पार्टी यह कह कर दे सकती है कि हम टोपी क्या आपकी सरकार तक ले उड़े , सरकार ना बचायी गयी आपसे, टोपी क्या बचाओगे।
खैर मूल सवाल यह है कि टोपी को आखिर बनाया क्यों गया, राजनीतिक नेताओं की ड्रेस के हिस्से के तौर पर। कुछ विद्वानों का कहना है कि टोपी को इसलिए राजनीतिक नेताओं की ड्रेस का हिस्सा बनाया गया कि काम करने-करवाने की जो रकम-रिश्वत वो हासिल करें, उसे वो इस टोपी में रख सकें, इसलिए टोपी का आविष्कार किया गया। पर अब टोपी की उपादेयता इसलिए नहीं रह गयी है कि रिश्वत अब सीधे स्विस खातों में ली जाती है, तो टोपी को क्यूं ढोना।
यहाँ हमें प्रख्यात कवि जालीदास की उन पंक्तियों को याद कर लेना चाहिए, जो उन्होने टोपी के संदर्भ में कहीं थीं-
टोपी को संग राखिये बहुत ही साथ निभाये
नेता करे कुकर्म तब, मुँह फौरन छिप जाये
यानी जालीदस कह रहे हैं कि नेताओं को टोपी का बहुत साथ होता है। कोई कुकर्म करके टोपी के पीछे मुँह छिपाना बहुत आसान हो जाता है।
(देश मंथन, 31 दिसंबर 2015)

















