संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने बताया था न कि घर की सफाई में मेरे हाथ बहुत सी पुरानी यादें लगीं।
यादों के उसी पिटारे से मैं आपके लिए कल अपनी काठमांडू यात्रा की कहानी ले कर आया था। मैंने आपको कल ही बताया था कि यादों के उन्हीं पुलिंदे में मेरे अमेरिका प्रवास के दौरान लिखे कुछ लेख हाथ लगे। इनमें से कुछ तो मैंने अमेरिका से दिल्ली फैक्स के जरिए Sanjaya Kumar Singh को भेजे थे और वो यहाँ जनसत्ता में छपे भी थे। बात अमेरिका के न्यूयार्क शहर में ट्वीन टावर पर हुए हमले के दिन की है।
अभी मेरी नींद खुली ही थी कि सुना कि अमेरिका में एक विमान ट्वीन टावर से टकरा गया है। थोड़ी देर में पता चला कि दूसरा विमान दूसरे टावर से टकरा गया है।
कुछ समय लगा, लेकिन पता चल गया कि अमेरिका भयंकर आतंकवादी साजिश का शिकार हुआ है।
मैं उस घटना का चश्मदीद हूँ।
मैं उस घटना के बाद कई दिनों तक अमेरिका में बिखरी खामोशी का भी चश्मदीद रहा हूँ। उन दिनों मैंने कई लेख लिखे। मैंने अपने लेखों में लिखा था कि अमेरिका अब संसार के मानचित्र से अफगानिस्तान का नक्शा ही मिटा देगा। मैंने ये बात तब कही थी, जब अमेरिका के लोग रोज रात में ट्विन टावर के पास जाकर मोमबती जलाते और धुंधलाई आँखों से अपने उन परिजनों को याद करते, जो 11 सितंबर को सुबह पौने नौ बजे आतंक के शिकार बन गये थे। सिलसिलेवार मैंने कई लेख लिखे। आज मैं जो लेख आपके सामने पोस्ट कर रहा हूँ, उसे पढ़ने के बाद अगर आपने चाहा कि मैं आगे भी इसे जारी रखूँ, तो जरूर बताइएगा। वर्ना अपने पास रिश्तों और जिन्दगी की और भी कई कहानियाँ हैं। पर मैं इन लेखों की चर्चा इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि पठानकोट में हुए हमले के बाद हमारे देश के हालात भी कमोबेश ऐसे ही बने हुए हैं।
आइए आज मैं आपको अपनी उन पुरानी यादों से मिलाता हूँ, जिन्हें मैं ही भूल चला था।
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न्यूयार्क से संजय सिन्हा
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तीन दिन बीत चुके हैं उस काली सुबह को गुजरे हुए, लेकिन न्यूयार्क अभी उस हादसे की याद से उबरा नहीं है। पूरा अमेरिका अभी मातम के दौर से गुजर रहा है। हालाँकि देश के बाकी हिस्सों में हालात सामान्य हो रहे हैं, पर अभी भी आम आदमी के चेहरे पर दहशत देखी जा सकती है, खास कर यहाँ के स्कूली बच्चों पर इस घटना का जो असर पड़ा है, वो शायद उन्हें कई वर्षों तक सालता रहेगा। इस घटना ने उन्हें भीतर तक दहला दिया है। जगह-जगह स्कूलों में बच्चों की काउंसलिंग की जा रही है। माँ-बाप को हिदायत दी जा रही है कि ऐसी हिंसात्मक खबरों के बीच भावनात्मक स्तर पर उन्हें बच्चों के साथ किस तरह पेश आना चाहिए।
मंगलवार की सुबह जब न्यूयार्क पर आतंकवाद का तांडव हुआ, उस समय ज्यादातर बच्चे स्कूल में थे। उन्हें वहीं खबर मिली कि न्यूयार्क की शान समझे वाले वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को आतंकवादियों ने ध्वस्त कर दिया है। इस हादसे में हजारों लोग मर गये हैं। यहाँ के स्कूलों में इंटरनेट और टीवी आम बात है और ज्यादातर बच्चों ने पूरा दृश्य अपनी आँखों से देखा।
विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे बच्चों के मन पर काफी बुरा असर पड़ा है।
आम बच्चों के मन में सुरक्षा को लेकर एक भय समा गया है। ऐसे में आशंका जतायी जा रही है कि बच्चे अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाएँगे। स्कूलों की ओर से माँ-बाप को पत्र भेज कर कहा गया है कि इस घटना का असर दूरगामी होगा और बच्चों को लग सकता है कि आसानी से किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसे में कई बच्चों को नींद न आने की और भूख न लगने की बीमारी भी हो सकती है।
मानसिक विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि टावर के विमान से टकराने और धू-धू कर जलती इस इमारत की कैमरा फुटेज हर चैनल पर कई बार दिखायी गयी, जिसका सीधा असर बच्चों के दिमाग पर पड़ा है। आमतौर पर जेम्स बांड की किसी फिल्म का दृश्य लगने वाले ये सच्चे फुटेज, बच्चों को काफी हद तक आतंकित कर गये हैं और लंबे समय तक ये आतंक उनके जेहन में रहेगा। विशेषज्ञों ने कहा है कि इससे बच्चों में आक्रोश और चिड़चिड़ापन बढ़ेगा। यहाँ तक कि स्कूल जाने से भी उनका मन हट सकता है।
स्कूलों की ओर से भेजे पत्र में माता-पिता को बताया गया है कि जब भी बच्चे इस बारे में सवाल पूछें या दहशत में लगें तो उन्हें गले से लगाइए और कहिए कि ये सचमुच कठिन घड़ी है पर हमें इससे उबरना है। बच्चों को ये भरोसा भी दिलाना होगा वे पूरी तरह सुरक्षित हैं।
पिछले दस सालों में अमेरिका में विमान अपहरण की कोई घटना नहीं घटी। ऐसे में बच्चों की एक पूरी पीढ़ी है जिसे ये यकीन भी नहीं हो रहा कि ऐसा किया जा सकता है। यहाँ विमान यात्रा एक शहर से दूसरे शहर में जाने का सबसे सुगम जरिया है। ऐसे में बच्चों में विमान यात्रा को लेकर भी डर समा गया है।
माँ-बाप को यह सलाह भी दी गयी है कि फिलहाल वे बच्चों के टीवी देखने पर नजर रखें और मीडिया जिस तरह इसे कवर कर रही है वैसे में इन्हें ज्यादा टीवी देखने के बजाए दूसरे कामों में उलझाएँ। मसलन चित्रकला, फोटोग्राफी, कार्ड बनाना, पौधे लगाना आदि।
बच्चों को इस सदमे से उबारने की हर कोशिश की जा रही है। उन्हें खेल में लगया जा रहा है। उनसे अलग बातें की जा रही हैं। काउंसलिंग की जा रही है। पर देखा गया है कि बच्चे अपने साथियों से सिर्फ इन्हीं घटनाओं पर चर्चा कर रहे हैं।
हर स्तर पर ये कोशिश की जा रही है कि बच्चे इससे जल्दी उबर जाएँ और अपने ख्वाबों, खिलौनों की दुनिया में खो जाएँ। अगर ऐसा नहीं हुआ तो और बड़े नुकसान की कल्पना भी लाजिमी है।
आम तौर पर भावुक बच्चों के मन पर न्यूयार्क में बरपे आतंकवादी कहर का जो असर पड़ा है, वो उन्हें सालता रहेगा, सालों साल तक।
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जब कभी देश आतंकवाद या ऐसी हिंसा का शिकार हो तो माता-पिता का कर्तव्य बनता है कि ऐसी परिस्थितियों पर कम से कम चर्चा करें। यह मीडिया की भी जिम्मेदारी है कि वो ऐसी खबरों को दिखाने में संयम बरतें, क्योंकि आज चाहे ऐसी बातों से तात्कालिक फायदा जिसे मिले, पूरी पीढ़ी को नुकसान होगा।
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मैं जानता हूँ कि जार्ज डब्लू बुश इस हमले का बदला जरूर लेंगे। आप देखिएगा एक दिन दुनिया के नक्शे से अफगानिस्तान को खत्म करने की कोशिश भी होगी।
पर इससे आतंकवाद खत्म नहीं होगा, बढ़ेगा। विश्वास और भरोसे का देश अमेरिका दुनिया में सुपर पावर के नाम से जाना तो जाएगा, पर वो खुद भी अविश्वास और भय में जीता नजर आएगा।
बुश अभी खामोश हैं। पर जल्दी ही वो बोलेंगे। वो कहेंगे कि दुनिया अब दो हिस्सों में बंट गयी है। एक जो आतंक के साथ है दूसरी जो शांति के साथ है। जो आतंक के साथ होंगे, वो अफगानिस्तान के साथ होंगे। जो शांति के साथ होंगे वो अमेरिका के साथ होंगे।
आज मैं यहाँ अमेरिका में बैठ कर ये देख पा रहा हूँ कि इसके बाद पूरी दुनिया आतंक की गिरफ्त में फंसने जा रही है, बजाए शांति से जीने के।
(देश मंथन, 19 जनवरी 2016)