माही तुम कब जाओगे

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

हर कोई यही पूछ रहा है-माही तुम कब जाओगे? धोनी कहते है, ‘अश्विन की चोट ने हराया.. मेरी गलती कि फिनिश नहीं कर सका.. गेंदबाजों ने रन लुटा दिए’..

हम पूछते हैं कि धोनी महाशय यह तो बताइए कि अश्विन को तो चौथे ओवर में चोट लगी थी पर आपने एक ओवर बाद ही उनको क्यों हटा दिया, जबकि इसी आफ स्पिनर नें ही तेजी से टर्न हुई गेंद पर डिकाक को चलता किया था? क्या यही कल्पनाशीलता रही आपकी?

T20 के पहले मुकाबले की तरह एक दिनी सिरीज का भी आगाज जीत की देहरी तक पहुँच कर हार गले लगाने से ही हुआ। पाँच रन की सालने वाली हार के बाद भारतीय कप्तान को बाहर करने की आवाज जोर पकड़ने लगी है। जिस टीम के वह कभी माई-बाप हुआ करते थे और खिलाड़ियों की जिसके सामने घिग्घी बंधी रहती थी, वही अब उनके लिए बेगाने हो चुके हैं। लेकिन धोनी को कप्तानी से ही नहीं टीम से भी इसलिए बाहर नहीं होना चाहिए कि भारत हार रहा है, उसे बाहर इसलिए किया जाना चाहिए कि सत्ता जाने का खौफ और उससे उपजा तनाव उनकी शारीरिक भाषा से कोई भी पढ़ सकता है। पटौदी रहे हों या गावस्कर अथवा सौरभ दा, इन सभी की तूती तो बोली पर कोई भी बोर्ड के बतौर बॉस नहीं पुजवा सका था जिस तरह से बोर्ड मुखिया के एक तरह से दत्तक पुत्र की तरह धोनी ने बोर्ड को अपनी उँगलियों पर नचाया। चाहे वे चयनकर्ता रहे हों या बोर्ड के पदाधिकारी।

याद होगा सभी को कि जब रवि शास्त्री को इंग्लैंड में टेस्ट सिरीज हारने के बाद टीम डायरेक्टर नियुक्त करते हुए तत्कालीन सचिव संजय पटेल ने कहा था कि रवि ही टीम प्रमुख होंगे । तब धोनी ने अगले ही दिन प्रेस कांफ्रेस बुला कर सचिव को दक्खिन लगाते हुए साफ-साफ कहा था कि फ्लेचर ही सर्वेसर्वा होगे और वही टीम के अकेले बॉस हैं। नये लोग आये हैं, बस उनका स्वागत है। 

रवि को जो जानता है उसे पता है कि वह कितना शातिर दिमाग है। गावस्कर जैसे भी उससे पनाह माँगते हैं। उसने इतने करीने से काम किया कि माही तिलमिलाने के अलावा कुछ नहीं कर सके और देखिए कि टीम हित में अब उनका काम लगने ही वाला है।

जहाँ तक इस मुकाबले का सवाल है तो धोनी की एक और घटिया कप्तानी ने, जिसमें कल्पनाशीलता के कहीं दर्शन नहीं हुए, नशा उखाड़ कर दिया। एक बार फिर वही पुराना खेल कि कोई गेंदबाज विकेट ले ले या ब्रेक दिला दे तो उसको आक्रमण से हटा दो और नये बल्लेबाज को और वह भी खतरनाक डीविलियर्स जैसे को जमने का पूरा मौका दो, ऐसा हम अनगिनत बार देख चुके हैं और आज ग्रीन पार्क में भी अपवाद नहीं हुआ। 

हम 45वें ओवर तक रन रेट में काफी आगे थे पर अंतिम तीन ओवरों में लुटाए 54 रन अंत में कितने भारी पड़े, यह भी भला बताने की जरूरत है? फिर, धोनी की फिटनेस किस कदर बोल चुकी है, यह भी सामने नजर आया, जब बल्लेबाजी के दौरान डेथ ओवरों में वह दायीं पसली दबाते दिखे यानी उनकी बगली खिंच चुकी थी। कहाँ गयी उनकी वह कूलनेस जब अनुभवहीन गेंदबाज पर अंतिम ओवर में वह बजाय थर्डमैन के ऊपर से खेलने के, पहले से ही मन बना कर बिना गेंद को परखे पुल कर गये। सिफारिशी बिन्नी के बारे में कुछ भी कहना बेकार है। वह न तो तीन में हैं और न ही तेरह में। 

एक बार फिर रोहित का शतक काम नहीं आया। धर्मशाला में भी उनका शतक गेंदबाजों ने जाया किया था। मुझसे लगातार लोग पूछ रहे हैं मगर मेरे पास कोई जवाब नहीं है। मैं भी उनसे यही सवाल कर सकता हूँ-माही तुम कब जाओगे?

(देश मंथन, 12 अक्तूबर 2015)

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