पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
पहले से ही स्पाट फिक्सिंग के आरोपों में संदेह की नजरों से देखे जा रहे भारतीय क्रिकेट कप्तान धोनी एक बार फिर घिर गये फिक्सिंग के आरोप में। आरोप है कि 2014 में इंग्लैंड सिरीज के मैनचेस्टर टेस्ट में टास पर ‘खेल’ कर दिया गया था।
अरबों कमाये होंगे गुरु-चेले ने। टीम के मैनेजर रहे सुनील देव ने उस टेस्ट को फिक्स किये जाने का सीधा आरोप लगाया है। याद आ गया बेइमान पूर्व कप्तान अजहर। 1996 विश्वकप सेमीफाइनल के लिए तय हुआ था कि पिच चूहों के पाल कर देने के चलते खराब है, इसलिए पहले बल्लेबाजी करनी है। लेकिन ली फील्डिंग जिसका क्या हश्र हुआ, बताने की जरूरत नहीं।
यही काम धोनी ने किया। डैंप विकेट पर टास जीत कर बैटिंग चुनी। मीटिंग में तय हुआ था कि फील्डिंग करनी है। हर कोई जानता है कि ओल्डट्रैफर्ड की पिच इस समय सबसे तेज और बाउंसी मानी जाती है। फिर मौसम ने उसे और भी मारक बना दिया था। भारत तीन दिनों में ही टेस्ट गँवा बैठा था और यह भी आरोप है कि तब हार के बाद कप्तान ने कहा था कि चलो अच्छा हुआ दो दिनों का आराम मिल गया हमें।
मुदगल सुबूतों के अभाव में आरोपों को खारिज करते हैं। लेकिन वह क्यों भूल जाते हैं कि टीम मीटिंग में जो लोग थे, उनकी गवाही क्या सुबूत नहीं।? स्टिंग हुआ है और वीडियो है। मुकरेगें तो जाएँगे कहाँ। यही सुनील देव नब्बे के दशक में भी ऐसे ही चर्चा में आये थे। लेकिन इस बार लिखित शिकायत की गयी थी और सुनील ने बीसीसीआई के तत्कालीन सदर और धोनी के एक तरह से गॉडफादर श्रीनिवासन के ऑफिस में ही शिकायत पत्र टाइप इसलिए किया था कि खबर लीक न हो जाए। पूछा गया कि खुलासे में देर क्यों की, जवाब था,’ डर गया था जान का खतरा था’। लब्बोलुआब यह कि टाइमिंग बता रही है कि यह खुलासा सोच समझ कर किया गया है
बहरहाल जो कुछ भी हो, यह जाँच का विषय तो है ही और इस बार तो बीसीसीआई के पास अपना लोकायुक्त है जो मामले को कालीन के नीचे नहीं दबाने वाला।
यह मामला तब उछला है जब भारत को लगातार दो महीनों तक खेल के फटाफट संस्करण टी-20 के मुकाबले खेलने हैं, जिनमें श्रीलंका के साथ सीरीज के अलावा एशिया और विश्व कप भी शामिल हैं।
(देश मंथन 09 फरवरी 2016)