संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे एक रिश्तेदार की बेटी इन दिनों वकालत की पढ़ाई कर रही है। वह बहुत मेधावी है और मुझे पता है कि उसे हाई स्कूल की बोर्ड परीक्षा में 95% से अधिक मार्क्स मिले थे। जब वह मेरे पास करियर काउंसलिंग के लिए आयी थी, तो उसके मन में दुविधा थी कि उसे कानून की पढ़ाई करनी चाहिए या नहीं?
मैंने उससे कहा था बिल्कुल करनी चाहिए। मेरे ऐसा कहने के पीछे मेरा दर्द था, क्योंकि जब मैं कॉलेज में पढ़ता था, तब हमारे साथ का सबसे फिसड्डी लड़का जो ठीक से पास भी नहीं हो पाता था, उसने तय कर लिया कि वह ग्रेजुएशन से किसी तरह निकल जाये तो अपने ईंट-भट्ठे के काम के साथ-साथ वकालत की पढ़ाई भी कर लेगा।
कुल 40% अंक के साथ पास होने वाला मेरा वह साथी धीरे-धीरे करके वकील बन भी गया। मैं पिछले दिनों उससे मिला तो मैंने उसकी गाड़ी पर वकील लिखा भी देखा। मैंने उससे पूछा कि तुम तो अंग्रेजी नहीं जानते, फिर कानून की किताबें किस तरह पढ़ीं तुमने? तुमने कैसे परीक्षा दी? कैसे पास हुये?
उसका कहना था कि वकालत कोई भी कर सकता है। अरे, दिल्ली से करना जरुरी तो नहीं है न! और वकील बन कर बहस करना ही काम नहीं होता। हजार काम होते हैं।
खैर, मुझे नहीं पता कि वह कितने पैसे कमाता है, कैसे कमाता है। लेकिन मुझे इतना पता है कि वकालत एक ऐसा पेशा है जिसमें सचमुच बहुत पढ़े-लिखे लोगों को जाना चाहिए। ऐसे लोगों को जाना चाहिए जिन्हें वाकई अपने पेशे से प्यार हो, देश की कानून व्यस्था से प्यार हो, उसमें आस्था हो।
लेकिन मेरा दोस्त इन्हीं बातों से दूर था। उसे कानून न पालन करने के सारे नुस्खे पता थे, उसे कानून की रत्ती भर जानकारी नहीं थी लेकिन वह वकील बन गया।
मेरे रिश्तेदार की बेटी जब मेरे पास आयी कि चाचा, मैं वकील बनना चाहती हूं तो मुझे पहली बार लगा कि आने वाला समय अच्छा है। देश में कानून की समझ उस पीढ़ी के हाथों में आने जा रही है, जिन्हें शिक्षा से प्यार है, वो जो करेंगे अच्छा करेंगे।
मेरी पत्नी की एक रिश्तेदार स्कूल में टीचर है। मैं उससे जब भी मिलता हूं, हैरान रह जाता हूं कि उसे बुनियादी चीजें भी नहीं पता। मैंने पत्नी से उसके बारे में एकाध दफा पूछा भी कि वह पढ़ाई में कैसी थी तो उसने कहा कि हर बार सप्लिमेंटरी से पास हुयी है। कमाल है।
जो खुद ठीक से परीक्षा नहीं पास कर पायी, उसने बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया है पर हकीकत यही है। आज टीचर वही लोग बनते हैं जिन्हें कोई नौकरी नहीं मिलती।
गली-मुहल्ले में खुलने वाले स्कूलों में वह बाबा ब्लैकशिप पढ़ाते हैं, और धीरे-धीरे मौका पाकर किसी ठीक-ठाक स्कूल में भी पहुंच ही जाते हैं। हार्ट को हर्ट पढ़ाते हैं।
ठीक यही हाल पत्रकारिता का है। खास कर हिंदी पत्रकारिता का। देश में पत्रकारिता की शुरुआत मकसद से हुयी थी। पहले आजादी के आंदोलन के काम आयी, फिर जेपी आंदोलन के नाम। कम पढ़े-लिखे लोग इस पेशे में आते चले गये। आप किसी से भी बात कर लीजिए, ज्यादातर इस पेशे में वो लोग आये जो कुछ नहीं कर पाये।
मेरे साथ पढ़ने वाला वकील दोस्त हजार काम करता है, वकालत की आड़ में। फाइल इधर से उधर करने से लेकर फर्जी मुकदमे ठुकवाने तक। मेरी पत्नी के साथ पढ़ने वाली उसकी रिश्तेदार हजार काम करती है, टीचर होने के बदले। स्वेटर बुनने ले लेकर, ट्यूशन पढ़ाने तक।
जो लोग पत्रकार बने, वो सारे काम करते हैं अच्छा लिखने को छोड़ कर। उनकी दोस्ती कभी चंद्रशेखर से थी, कभी राजीव गांधी से। आज नायडू से है, जेटली से है। वकील को कोर्ट रूम के बारे में नहीं पता। टीचर को मैकाले की शिक्षा व्यवस्था के बारे में नहीं पता। पत्रकार को क्या दिखाना है, क्या नहीं, यह नहीं पता।
कुल मिला कर जिन तीन पेशों में सबसे ज्यादा शिक्षित लोगों की दरकार थी, उन्हीं तीन में ऐसे लोग घुस गये जिनका शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं।
मैं इंतजार कर रहा हूं अपने किसी और रिश्तेदार का जिसे हाई स्कूल में 95% नंबर मिले हों और वह मेरे पास आकर कहे कि वह स्कूल में टीचर बनना चाहती है, कुछ और नहीं। वह पत्रकार बनना चाहती है, कुछ और नहीं।
चमकते चेहरे और फुदकते कदमों वाले तो टीवी पत्रकारिता में बहुत हैं। पर उन्हें नहीं पता कि पेशावर में बच्चों पर हुए हमले की तस्वीरे दिखाते हुए मुस्कुराने की दरकार नहीं होती। मुस्कुराना अच्छी बात है, पर कब और कहां यह उन्हें कौन समझाए?
बच्चों की हत्या हो गयी है यह तो खबर है। लेकिन उनकी लाशों को नहीं दिखाया जाना चाहिए, यह कौन बताएगा? वही तो बताएगा जिसने स्कूल की पढ़ाई ईमानदारी से की है। लेकिन मैं हमेशा उम्मीद से रहता हूँ।
मैं जानता हूँ कि पत्रकारिता में एक दिन वो बच्चे आयेंगे जो सचमुच 95% वाले होंगे। जो चेहरा दिखाने के लिए नहीं, दोपहर में मुफ्त के खाने के लिए नहीं, जो शाम को दारू के जुगाड़ के लिए नहीं, जो खबरों को सनसनीखेज बना कर टीआरपी लूटने के लिए नहीं।
वो इस पेशे में आयेंगे यह बताने के लिए कि मीडिया चौथा स्तंभ है और हम कुछ और नहीं करने के कारण यहाँ नहीं आए। हम हजार करियर छोड़ कर यहाँ आए हैं। सचमुच देश के लिए, मानवता के लिए कुछ करने।