संदीप त्रिपाठी :
देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने के लिए तारीख के हिसाब से वाहन चलाने का नियम बनाये जाने से कई सवाल खड़े होते हैं। क्या वाकई दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण रोकने के प्रति गंभीर है? क्या दिल्ली सरकार ने यह फैसला पूरी ईमानदारी से सभी संभावित विकल्पों पर भली-भांति विचार करने के बाद लिया है? या क्या केवल अदालत को दिखाने के लिए एक ऊटपटांग फैसला दिल्ली की जनता पर थोप दिया गया है?
हालाँकि इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर ने और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सहमति जतायी है। आम तौर पर कोई बड़ा नेता या हस्ती इस फैसले का विरोध करती नजर नहीं आयी है। लेकिन जनता की ओर से नाराजगी लगातार जाहिर की जा रही है। सवाल यह है कि जनता, और जनता का कौन सा हिस्सा इस फैसले से नाराज है और क्या दिल्ली सरकार जनता के उस हिस्से की आकाँक्षाओं को रौंदने या दरकिनार कर देने के लिए मुक्त है।
इन सवालों को उठाने के मुकम्मल आधार हैं। दिल्ली सरकार अगर वाकई वायु प्रदूषण घटाने के प्रति गंभीर होती तो वह इस फैसले के लिए अदालत की फटकार का इंतजार नहीं करती। जैसा कि कांग्रेस नेता जयराम रमेश का दावा है कि उन्होंने पाँच साल पहले शीला दीक्षित सरकार को इस उपाय का सुझाव दिया था, तब यह पूछना पड़ेगा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उनके इस सुझाव पर अमल क्यों नहीं किया, इस फैसले में क्या कमियाँ थीं या क्या कांग्रेस सरकार वायु प्रदूषण के खिलाफ नहीं थी?
जाहिर तौर पर कोई नहीं कहेगा कि वह वायु प्रदूषण के पक्ष में है और अंदर से भी कोई नहीं चाहेगा कि वायु प्रदूषण हो। आज हालात यह हैं कि दिल्ली का आनंद विहार क्षेत्र दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में शुमार है। फिर कांग्रेस सरकार ने इस उपाय को लागू क्यों नहीं किया। यहाँ आ कर फैसले को विस्तार से देखना होगा। समाज में चार वर्ग हैं। एक सरकारी वीआईपी, दूसरा समृद्ध वर्ग, तीसरा मध्य वर्ग और चौथा निम्न वर्ग। सरकारी वीआईपी और सरकारी वाहनों को इस नियम से छूट दी गयी है यानी सरकार में अधिकारी वर्ग को इस फैसले से फर्क नहीं पड़ेगा। दूसरा समृद्ध वर्ग है जिसके पास एक से ज्यादा वाहन रखने की क्षमता है। तीसरे की बात बाद में करेंगे, पहले चौथा वर्ग। यह वर्ग निजी चारपहिया वाहन से नहीं चलता। आम तौर पर इनके पास मोटरसाइकिल होती है और व्यावसायिक वाहन, जिनसे उनका रोजगार चलता है, होते हैं। इन वाहनों को नये नियम से छूट है।
अब आते हैं मध्य वर्ग पर। इसमें तीन हिस्से हैं, पहला उच्च मध्य वर्ग, दूसरा मध्यम मध्य वर्ग और तीसरा निम्न मध्यम वर्ग। इसमें उच्च मध्य वर्ग एक चार पहिया और एक दो पहिया वाहन रखने में समर्थ है। यह इस फैसले से बच निकलेगा। मध्यम मध्य वर्ग की बात बाद में, पहले निमन मध्यम वर्ग। इस वर्ग में आम तौर पर मोटरसाइकिल का उपयोग होता है, चारपहिया निजी वाहन बहुत कम हैं। अब बचा मध्यम मध्य वर्ग, इस फैसले का इसी वर्ग पर असर पड़ेगा। यह वह वर्ग है जिसके पास एक निजी चारपहिया वाहन रखने की क्षमता है लेकिन इससे ज्यादा की क्षमता नहीं है। यह वर्ग है जो वेतनभोगी है, निजी कंपनियों में दूसरे और तीसरे दर्जे का कर्मचारी है। दुकानदार और छोटा व्यवसायी है। ऑड-इवेन फैसले से यही वर्ग पूरी तरह प्रभावित है। यह वह वर्ग है जो कानून से डरता है, अपने टैक्स नियम से जमा कराता है, और हर सरकार का डंडा सहता है, वर्तमान ठीक-ठाक जीता है और भविष् ठीक-ठाक रखने के लिए परेशान रहता है। यानी दिल्ली को प्रदूषण से बचाने की पूरी जिम्मेदारी इस पर लाद देंगे तो यह रोयेगा लेकिन कुछ कर नहीं पायेगा।
तो क्या हर माह 15 दिन इस वर्ग के निजी वाहनों के उपयोग पर रोक लगा देने से दिल्ली में प्रदूषण कम हो जायेगा? याद रखें व्यावसायिक वाहनों और सवारी वाहनों, मोटरसाइकिलों, सरकारी वाहनों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। यानी दिल्ली सरकार यह मानती है कि प्रदूषण इस मध्यम मध्य वर्ग के निजी वाहनों से ही बढ़ रहा है। घटिया पेट्रोल बिक्री, डीजल, फैक्टरियों की चिमनियाँ वगैरह-वगैरह का प्रदूषण से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार का काम यह नहीं है कि वह प्रदूषण रोकने के लिए लोगों की सुविधाएँ छीनने की बजाय कोई नया विकल्प तैयार करे। दिल्ली सरकार यह मानती है कि अच्छी गुणवत्ता का पेट्रोल-डीजल बिके, यह सुनिश्चित करना सरकार के बूते के बाहर की बात है। दिल्ली सरकार यह मानती है कि वाहनों के प्रदूषण रोधी प्रमाणपत्र बनवाने में फर्जीवाड़ा वह नहीं रोक सकती। दिल्ली सरकार यह मानती है कि जहरीली हवा छोड़ने वाली फैक्टरियों पर लगाम लगाना उसके बूते का नहीं है। दिल्ली सरकार यह मानती है कि वह प्रदूषण कम करने के लिए पर्यावरण विभाग के जरिये कुछ रचनात्मक करने में सक्षम नहीं है। अगर दिल्ली सरकार यह सब नहीं मानती तो प्रदूषण घटाने के और भी विकल्प हो सकते थे। प्रदूषण घटाने के लिए दिल्ली सरकार की ओर से कोई कार्य योजना सामने आ चुकी होती जिससे वाकई लगता कि दिल्ली सरकार को दिल्ली वालों की सेहत की चिंता है। प्रदूषण से निबटने के लिए बाहर से दिल्ली आने वाले वाहनों पर लग रहे ग्रीन टैक्स के संग्रह को किस तरह पर्यावरण को सुधारने में खर्च किया जायेगा, इसका खाका स्पष्ट हो चुका होता। फिलहाल तो इस फैसले से लग रहा है कि दिल्ली सरकार पर्यावरण के प्रति अपनी जवाबदेही से बचने के लिए मध्यम मध्य वर्ग को निशाना बना कर अपनी पीठ झाड़ने के साथ ही थपथपा लेना भर चाहती है।
(देश मंथन, 09 दिसंबर 2015)