प्रेम शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार :
ब्राजील में ‘फीफा’ का फुटबॉल विश्व कप प्रारंभ हो चुका है। दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल माना जाता है और 200 से ज्यादा देशों में यह खेला जाता है। ‘फीफा’ के सदस्य देशों की संख्या ही 209 है जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या को मात देती है।
तिस पर फुटबॉल को ब्राजील के जनजीवन का अभिन्न अंग माना जाता है। फिर भी बीते एक अरसे से ब्राजील में ‘वर्ल्ड कप’ के आयोजन का मुखर विरोध हो रहा है। वित्तीय संस्थान गोल्डमैन सैक्स खेल आयोजनों और उसके विजेता देशों की अर्थव्यवस्थाओं का अध्ययन करता रहा है।
स्टॉक मार्केट कनेक्शन
गोल्डमैन सैक्स का मानना है कि 1974 से जिस किसी देश ने फुटबॉल का विश्व कप जीता उसके ‘स्टॉक मार्केट’ में जबर्दस्त उछाल आया। अर्थव्यवस्था में भारी सुधार हुआ। 2002 विश्वकप का विजेता ब्राजील इस फॉर्मूले का अपवाद साबित हुआ था। ‘वर्ल्ड कप’ जैसे आयोजनों के मेजबान देश को भी भारी आर्थिक लाभ का गणित गिनाया जाता है। ब्राजील में इस समय ‘वर्ल्ड कप’ चल रहा है और 2016 में वह ओलिंपिक खेलों का आयोजक है। ऐसे में ब्राजील की जनता अपने शासक दिल्मा रौसेफ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन पर क्यों आमादा है? ब्राजील में दिल्मा रौसेफ के विरोधी कहते हैं कि 11.8 बिलियन डॉलर की रकम खेल आयोजन पर उड़ाकर सरकार भूखे-नंगे ब्राजील वासियों के साथ क्रूर मजाक कर रही है।
सशंकित ब्राजील
क्या ‘वर्ल्ड कप’ विश्व राजनय में ब्राजील की साख को सशक्त करेगा? ‘साउथ-साउथ बैनर’ के झंडे तले पिछले दशक में ब्राजील के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति लुईज इनासियों ‘लूला’ डिसिल्वा ने 53 देशों में अपने दूतावास खोलकर अपना राजनयिक विस्तार किया। इनमें 30 दूतावास अफ्रीकी देशों में खोले गए। दिल्मा उसी नीति को आगे बढ़ा रही हैं। वर्ल्ड कप फुटबॉल और ओलिंपिक खेलों का आयोजन दुनिया में अपनी आर्थिक शक्ति को लहराने का माध्यम है। आबादी के लिहाज से ब्राजील दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। क्रयशक्ति के स्तर पर सातवीं और मुद्रा शक्ति के मापदंड पर छठी। ‘ब्रिक्स’ के अलावा ग्रुप-20 और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में भी ब्राजील का अपना दबदबा है। फिर भी ब्राजील की जनता सशंकित क्यों है? 1950 में भी ब्राजील वर्ल्ड कप फुटबॉल का मेजबान देश था। रियो डि जेनेरिओ के मरकाना स्टेडियम में वह फाइनल खेल रहा था। कप जीतने के लिए तब उसे फाइनल मैच सिर्फ ड्रॉ करना था। वह अपने पड़ोसी उरुग्वे के हाथों फाइनल हार गया। पूरे देश को शॉक लगा। ब्राजील की अर्थव्यवस्था पर विपरीत परिणाम पड़ा। 2002 का विश्व कप जीतकर भी ब्राजील अपनी अर्थव्यवस्था को यूरोपीय देशों की तरह लाभान्वित नहीं करा सका था। इसलिए ब्राजील का एक वर्ग मानता है कि कहीं यह आयोजन उनको उलटा न पड़ जाये। वैसे भी ‘फीफा’ वर्ल्ड कप का आयोजन हमेशा भ्रष्टाचार और फिक्सिंग के आरोपों से घिरा रहा है।
रिश्वतखोरी के सबूत
फीफा वर्ल्ड कप आयोजन के लिए मेजबानी प्रदान करने की प्रक्रिया से लेकर प्रायोजन-प्रसारण के अधिकारों तक में रिश्वतखोरी के सबूत सामने आते रहे हैं। ‘फीफा’ में वर्ल्ड कप की मेजबानी का फैसला 24 सदस्यीय एक्जिक्यूटिव कमेटी करती है। 2018 और 2022 के वर्ल्ड कप के मेजबान क्रमश: रूस और कतर हैं। इन देशों के साथ-साथ ब्रिटेन भी वर्ल्ड कप की मेजबानी का प्रत्याशी था। उस समय ब्रिटेन के एक अखबार ने जब स्टिंग ऑपरेशन किया तब उसके 2 सदस्य नकद के बदले अपना वोट बेचने के लिए तैयार हो गये थे। सनद रहे कि एक्जिक्यूटिव काउंसिल में अध्यक्ष के अलावा 24 सदस्य हुआ करते हैं। इनमें ‘फीफा’ के सदस्य देशों की कांग्रेस केवल अध्यक्ष और एक महिला सदस्य को निर्वाचित कर सकती है। शेष 23 सदस्यों का नामांकन फीफा से जुड़े 6 कंफडरेशन करते हैं। कंफडरेशन की ओर से ऐसे सदस्यों की ‘फीफा’ के एक्जिक्यूटिव काउंसिल में नियुक्ति की जाती है जो फुटबॉल खेल की विशेषज्ञता रखते हों। ‘फीफा’ का अध्यक्ष और एक्जिक्यूटिव कमेटी के सदस्य तमाम आयोजनों में दखल रखते हैं। जिस तरह से क्रिकेट के लिए आईसीसी में लामबंदी और भ्रष्टाचार का बोलबाला है, वही हाल ‘फीफा’ का भी है।
मतों की खरीददारी
2018 का रूस का विश्व कप और 2022 का कतर विश्वकप। दोनों के आयोजनों की मेजबानी के लिए मतदान 2010 में हुआ। दो मतों को तो सीधे-सीधे कतर ने खरीद लिया था, इसके प्रमाण ‘फीफा’ के पास आ चुके हैं। फिर भी कतर के विश्व कप को रद्द करने की माँग पर ‘फीफा’ में कोई विचार नहीं है। कतर का विश्व कप जून-जुलाई, 2022 में आयोजित होना है। इस मौसम में कतर का तापमान औसतन 40 डिग्री सेल्सियस होता है। यूरोप की टीमें 40 डिग्री सेल्सियस में फुटबॉल खेलने की स्थिति में नहीं रहेंगी। फिर भी सिर्फ रिश्वतखोरी के बल पर कतर, ऑस्ट्रेलिया, जापान, द. कोरिया और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के दावों को पराभूत करने में सफल हुआ। इंग्लैंड 2018 का विश्व कप आयोजित करना चाहता था। उसकी जगह रूस को सफलता मिल गयी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने उसी समय बयान दिया था कि मेजबानी का फैसला साफगोई की बजाय संदिग्ध ढंग से हुआ है। कालांतर में कतर को मेजबानी दिए जाने के मामले की जाँच हुई तो पाया गया कि ‘फीफा’ के वाइस प्रेसीडेंट जैक वॉर्नर को कतर की ओर से लगभग 2 मिलियन डॉलर की रिश्वत दी गयी थी। कतर के एक फुटटबॉल एसोसिएशन के अधिकारी ने जैक वॉर्नर को व्यक्तिगत तौर पर 1.2 मिलियन डॉलर की राशि का भुगतान किया। दस्तावेजों के अनुसार साढ़े 7 लाख डॉलर की राशि वॉर्नर के बेटे को दी गयी जबकि 4 लाख डॉलर की राशि वॉर्नर के एक कर्मचारी के माध्यम से पहुँचायी गयी। कतर की ओर से ‘फीफा’ के एक्जिक्यूटिव काउंसिल में मोहम्मद बिन हम्माम सदस्य थे। वॉर्नर की कंपनी जमद को हम्माम की फर्म केमको की ओर से 2005-2010 के बीच में 1.2 मिलियन डॉलर की राशि भेजी गयी। रिकॉर्ड तो इस तरह का बनाया गया। किन्तु सच्चाई यह है कि दोनों कंपनियों के बीच में 15 दिसंबर, 2010 को दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हुए जिसके तहत जैक वॉर्नर की कंपनी को मनी ट्रांसफर हुआ। 15 दिसंबर, 2010 की तिथि कतर को विश्व कप का मेजबान घोषित किए जाने की तिथि के एक सप्ताह बाद है। अमेरिकी जांच संस्था एफबीआई ने वॉर्नर के अमेरिका और ग्रांड केमन में स्थित खातों की जाँच की। इंग्लैंड को जब 2018 के वर्ल्ड कप की मेजबानी नहीं मिली तो ब्रिटेन के एक मीडिया हाउस ने अफ्रीकी कंफडरेशन के कुछ सदस्यों का स्टिंग किया जो ‘फीफा’ की एक्जिक्यूटिव काउंसिल के सदस्य थे। इन सदस्यों ने रिश्वत पाने पर किसी के पक्ष में भी वोट देने की तैयारी प्रदर्शित की थी। ‘फीफा’ ही विश्व कप के साथ-साथ यूरोपीय लीग का भी आयोजन करता है।
मैच फिक्सिंग
यूरोपीय लीग में तो जांच के दौरान 38 से अधिक मैच फिक्स पाये गये थे। कतर में स्टेडियम निर्माण का काम जारी है। जनवरी, 2012 से अब तक स्टेडियम निर्माण के कामकाज में कम से कम 500 भारतीय मजदूरों की मौत हो चुकी है। दोहा स्थित भारतीय दूतावास ने खुद कबूल किया है कि 2012 में कतर में स्टेडियम निर्माण के काम में 237 भारतीय मजदूर मारे गये। 241 भारतीय मजदूरों की मृत्यु 2013 में दर्ज हुई। अकेले जनवरी, 2014 में 24 भारतीय मजदूर मौत की आगोश में चले गये। लंदन से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘गार्जियन’ के अनुसार कतर में बीते 2 वर्षों में न्यूनतम 382 नेपाली मजदूरों की मौत हुई है। यदि किसी और उद्योग में इस तरह से मजदूर मारे गये होते तो अब तक उस देश का ही बहिष्कार कर दिया जाता। ‘फीफा’ में रिश्वतखोरी है, रक्तरंजित मौत है, अर्थव्यवस्थाओं में उलट-फेर की ताकत है, फिर भी इसे सिर्फ खेल माना जाता है। दरअसल, खेल के नाम पर ‘फीफा वर्ल्ड कप’ सिर्फ एक धंधा है और यह धंधा गलीज और गंदा है। जो लोग समझते हैं कि क्रिकेट में ही फिक्सिंग होती है वे ‘फीफा’ की फिक्सिंग की भयावहता को देखकर क्रिकेट को सचमुच जेंटलमेन्स गेम मानने को मजबूर होंगे!
(देश मंथन, 17 जून 2014)