अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
म्यांमार में की गई भारतीय सेना की कार्रवाई पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया देख कर कोई हैरानी नहीं हुई। उसका करुण क्रंदन और उसी रुआंसे स्वर में भारत को धमकी देने का अंदाज अपेक्षित था।
मजे की बात ये है कि भारतीय सेना ने कार्रवाई म्यांमार की सीमा में घुस कर की मगर तकलीफ पाकिस्तान को हो रही है। पाकिस्तान को ऐसा ही कष्ट तब भी हुआ था जब रक्षा मन्त्री मनोहर परिकर ने कहा था कि कांटे से कांटा निकलता है। चोर की दाढ़ी में तिनका मुहावरा ऐसी प्रतिक्रियाओं के लिए ही ईजाद हुआ है।
पहले बात म्यांमार में हुए भारतीय सेना के ऑपरेशन की। लंबे समय बाद भारतीय सेना ने ऐसा कोई ऑपरेशन किया जब उसके कमांडो दूसरे देश की सीमा में गये और वहाँ जा कर उन्होंने आतंकवादी ठिकानों को नष्ट किया। ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि बिना राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति और सर्वोच्च स्तर से हरी झंडी मिले बिना सेना इस तरह का ऑपरेशन नहीं कर सकती थी। 2010 में दोनों देशों में समझौता हुआ था कि भारतीय सेना आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए स्थानीय सेना पोस्ट कमांडर से अनुमति लेकर म्यांमार की सीमा में जा सकती है। मगर अभी तक आतंकवादी हमलों की “कड़े शब्दों में निंदा” कर आगे की कार्रवाई के लिए सेना के हाथ बाँध दिये जाते थे।
दूसरी बात ये है कि म्यांमार की धरती को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल क्यों होने दिया जा रहा है। कुछ वरिष्ठ रक्षा विश्लेषकों के मुताबिक म्यांमार के सैन्य शासन में मध्यम और निचली पंक्ति के अधिकारियों को आतंकवादी प्रोटेक्शन मनी देते हैं। यानी इन्हें घूस दी जाती है ताकि वो उनकी गतिविधियों और ठिकानों की तरफ आँख मूंद कर बैठे रहें। भारत ने इस कार्रवाई से म्यांमार को भी कड़ा संदेश दे दिया है कि वो अपनी धरती को भारत के खिलाफ गतिविधियों के लिए इस्तेमाल न होने दे। भारत के साथ म्यांमार की 1640 किलोमीटर की सीमा है, जिस पर असम राइफल्स नजर रखती है। बांग्लादेश से खदेड़े जाने के बाद से ही उत्तर पूर्व के कई आतंकवादी संगठनों ने म्यांमार में पनाह ले रखी है।
अब बात पाकिस्तान की। पाकिस्तान सूचना प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ की बातों से बौखलाया है। राठौड़ सेना में कर्नल रह चुके हैं। निशानेबाजी में ओलंपिक में पदक जीता है। चार जून के हमले के बाद उनका खून भी खौला होगा। सेना के मनोबल पर इस तरह के हमलों का क्या असर होता है, राठौड़ इसे जानते हैं। खासतौर से तब जब जवानों की गाड़ी को पहले उड़ाया जाये, फिर उन पर खुखरी से हमला हो और बाद में तेल डाल कर जला दिया जाये। ऐसे में सेना जवाबी कार्रवाई करना चाहती है। ऐसा करना उसके लिए अपने जवानों के मनोबल को बनाए रखने के लिए जरूरी होता है। अभी तक “कड़े शब्दों में भर्त्सना” से काम चलता था मगर अब सरकार ने अपनी नीति बदली है।
राठौड़ इसी बदली नीति को जनता तक पहुँचा रहे थे। इसमें कोई शक नहीं है कि उनकी प्रतिक्रिया उतावलेपन में थी और वो शायद कुछ ज्यादा ही बोल गये। रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े लोग भी मानते हैं कि राठौड़ को अपनी प्रतिक्रिया में संयम बरतना चाहिए था। पर ये मानने का कोई कारण नहीं है कि राठौड़ की प्रतिक्रिया सरकार की सोची समझी संवाद रणनीति का हिस्सा नहीं थी। अगर सेना ने ऐसा ऑपरेशन किया है तो राजनीतिक तौर पर भी एक सन्देश देना जरूरी था। खासतौर से तब जब कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियाँ आतंकवादी हमलों पर बार-बार प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी को छप्पन इंच का सीना दिखाने का उलाहना देती आयी हैं।
लेकिन पाकिस्तान को घबराहट क्यों हो रही है। जब देश का विभाजन हुआ ही था तब से लेकर आज तक वो लगातार अपनी धरती पर ऐसे लोगों को पालता-पोसता आया है जो सीमा पार कर भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। कारगिल जिसे हम भारत-पाकिस्तान का चौथा युद्ध मानते हैं, पश्चिमी देश लो इटेंसिटी कांफ्लिक्ट बताते हैं, वहाँ बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी घुसपैठ हुई थी। तब अगर तत्कालीन प्रधान मन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को ये नहीं चेताया होता कि भारत नियंत्रण रेखा पार कर सकता है, तो शायद पाकिस्तान को अपने पैर पीछे खींचने के लिए मजबूर नहीं किया गया होता।
दूसरे देश की सीमा में घुस कर आतंकवादियों या अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई सैन्य रणनीतिक भाषा में हॉट परसूट कहलाता है। जो लोग ये सवाल पूछ रहे हैं कि इस ऑपरेशन की सारी जानकारी सामने आने से क्या आगे इस तरह के ऑपरेशन करने में दिक्कत नहीं आयेगी, ये वाजिब सवाल है। मगर ये ध्यान रहे कि अगर अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन के खिलाफ अपने ऑपरेशन की जानकारी नहीं दी होती तो सच कभी सामने नहीं आता कि पाकिस्तान ने किस तरह ओसामा बिन लादेन को पनाह दे रखी थी। तब शायद पाकिस्तान के किसी अखबार में अन्दर के पन्नों पर एक कॉलम की खबर में जिक्र होता कि ऐबटाबाद के बाहरी इलाके में एक मकान में बम विस्फोट में कुछ अज्ञात लोग मारे गये। भारत ने म्यांमार में जो किया उसके बारे में कई सवालों के जवाब तुरन्त नहीं मिल सकते क्योंकि न तो भारत और न ही म्यांमार इस बारे में पूरी जानकारी देगा। लेकिन इसके बाद भारत में ये आवाजें जरूर उठने लगी हैं कि पाकिस्तान के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए।
ये एक अलग विषय है कि पाकिस्तानी सीमा में घुस कर भारतीय सेना इस तरह की कार्रवाई कर सकती है या नहीं, मगर पाकिस्तान को ये तो मानना ही पड़ेगा कि अब इस तरह की कार्रवाई संभव है। ये बदली सरकार की बदली सोच भी है और राजनीतिक नेतृत्व का मजबूत इरादा भी। पाकिस्तान इसका स्वाद तब चख चुका है जब उसे सीमा पर गोलाबारी का दोगुना जवाब मिला। शायद पाकिस्तान ये मान भी रहा है। यही वजह है कि उसकी तरफ से बौखलाहट भरी प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। मोदी सरकार की ये सोच दक्षिण एशिया में शान्ति बहाल करेगी या इसे ज्यादा अशान्त करेगी, ये विश्लेषण का विषय है। मगर ये तय है कि मोदी सरकार ने दक्षिण एशिया के लिए नई नीति बनाई है। इसमें पड़ोसी देशों के साथ बराबरी का बर्ताव कर उन्हें अपने साथ लेना और आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करना है। भारत से छिटक गये बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, म्यांमार, मॉरीशस और मालदीव पिछले एक साल में उसके ज्यादा करीब आये हैं। ये मोदी सरकार की विदेश नीति की बड़ी कामयाबी मानी जा सकती है।
(देश मंथन 11 जून 2015)