संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुनिए, मेरी आज की कहानी पढ़ कर आप सिर्फ अपने तक मत रखिएगा। उसे अपनी वॉल पर साझा कीजिएगा, अपने दोस्तों को सुनाइएगा। दरअसल आज की मेरी कहानी हँसने या रोने की कहानी नहीं, बल्कि यह राह चलते किसी अनजान मुसाफिर को लूट लेने की कहानी है। कभी-कभी जिन्दगी में ऐसा हो जाता है कि आप ऐसे गिरोह के चक्कर में फंस जाते हैं कि आप चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते। इसलिए ऐसी कहानियों को लोगों से साझा करके आप एक भलाई का काम करेंगे।
अब आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा आज ऐसी कौन सी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसके लिए इतनी लंबी-चौड़ी भूमिका बनानी पड़ गयी।
दरअसल ये घटना हमारे साथ पिछले दिनों घटी, और जिससे भी मैंने इसकी चर्चा की, वो हँसने लगा। हालांकि ये हँसने की बात नहीं, यह चिंता की बात है। और सबसे बड़ी बात ये कि ऐसी घटनाओं की कहीं मीडिया रिपोर्ट भी नहीं हो सकती। कोई ऐसी घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेता। पर यह है एक संगठित लूट की कहानी।
मैंने आपको बताया था कि पिछले हफ्ते मैं पश्चिम बंगाल में तारापीठ मंदिर गया था। तारापीठ मंदिर से वापसी के दौरान हमारे साथ कुछ मित्र भी थे। हमारे कुछ मित्र पटना से हमारे साथ देवघर और तारापीठ गये थे। वापसी में हम दो अलग-अलग गाड़ियों में तारापीठ से लौट रहे थे। हमारी गाड़ी आगे निकल गयी, हमारे दोस्तों की गाड़ी पीछे रह गयी। तारापीठ मंदिर से निकल कर हमें हाइवे पर मिलना था, लेकिन बहुत देर हो जाने के बाद भी जब दूसरी गाड़ी हमें नजर नहीं आई, तो हमें चिंता हुई। हमने उन्हें फोन किया तो पता चला कि गाँव के कुछ लोगों ने उनकी गाड़ी रोक ली है। उन्होंने बताया कि गाँव वालों का कहना है कि उनकी गाड़ी के नीचे आ कर सड़क पर घूम रही उनकी बकरी दब कर मर गयी है और उन्हें अब बकरी का मुआवजा चाहिए। वो बेचारे बहुत देर तक उन्हें समझाते रहे कि उनकी गाड़ी से तो बकरी टकराई ही नहीं, फिर मुआवजा किस बात का।
पर गाँव की एक महिला अड़ गयी थी कि उसे अगर मुआवजा नहीं मिला, तो वो गाड़ी नहीं जाने देगी। बस इसी हुज्जत में वो फँसे पड़े थे। वो पाँच हजार रुपये बकरी की कीमत नकद माँग रही थी। अब मित्र के पास पाँच हजार कैश नहीं थे, वहाँ कोई एटीएम नहीं था और बेचारे बड़े असहाय से खड़े थे। फोन पर हमें बताते हुए भी उन्हें संकोच हो रहा था कि कहाँ आ फँसे।
हमने अपनी गाड़ी मोड़ी।
मौके पर पहुँचे, तो हैरान रह गए। उनकी इनोवा कार खड़ी थी, उसके सामने एक काले रंग की एक बकरी पड़ी थी। बकरी को कहीं चोट नहीं लगी थी, उसका पेट फूला हुआ था और वो मरी पड़ी थी।
बकरी गाड़ी से दो फीट आगे पड़ी हुई थी।
मैंने वहाँ जा कर अपने मित्र से पूरी कहानी समझनी चाही। उन्होंने बहुत सकुचाते हुए बताया कि उनकी गाड़ी जब इस गाँव को पार कर रही थी, तभी अचानक कुछ बच्चों ने हाथ देकर उनसे रुकने को कहा। उन्हें लगा कि कोई बात हो गयी है, तो उन्होंने गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी। जैसे ही गाड़ी रुकी एक महिला एक मरी हुई बकरी हाथ में लिए हुए आई और उसने सड़क के किनारे ही, उनकी गाड़ी के आगे रख दिया।
मेरे मित्र ने पूछा कि ये क्या है? तो महिला ने चिल्ला कर बांग्ला में कहा कि तुमने हमारी बकरी मार दी।
शुरू में मेरे मित्र को यह सुन कर हँसी आई कि ये क्या मजाक है। पर यह मजाक नहीं था। महिला अड़ गयी कि तुमने अपनी गाड़ी से मेरी बकरी को कुचल दिया है। धीरे-धीरे बात बढ़ने लगी। गाँव के कई लोग जुट गये। बीच सड़क पर हुज्जत होने लगी।
हमारे वहाँ पहुँचने के बाद वो महिला अड़ गयी कि बकरी की कीमत पाँच हजार रुपये है, उसे लिए बिना जाने नहीं देगी। अब बीच रास्ते में फँसा आदमी क्या करे?
मैंने उस महिला से कहा कि देख कर लग रहा है कि बकरी अभी नहीं मरी है। यह सुबह की मरी पड़ी है। इसका पेट फूला हुआ है। कहीं चोट के निशान भी नहीं हैं। शुरू में जिस महिला को मैं अधेड़, गंवार, अनपढ़ और गरीब समझ कर अपनी दलील पेश कर रहा था, उसने अपने दोनों हाथ घुमा कर मुझसे कहा कि आप चाहें तो बकरी का पोस्टमार्टम करा लें, आपको पता चल जाएगा कि बकरी की मौत कितनी देर पहले हुई है। मैंने कहा कि अगर तुम इस तरह गाड़ी रोकोगी, तो पुलिस बुला लूँगा। महिला ने कहा कि बेशक आप पुलिस बुला लीजिए, मैं ऐसे आपकी गाड़ी नहीं जाने दूँगी।
गाँव के लोग वहाँ जमा हो गये थे। हमने कई लोगों से बात करके उन्हें समझाने की कोशिश की, पर किसी ने कोई मदद नहीं की।
हमने एक-दो नौजवानों से बात करने की कोशिश की जो थोड़ी हिंदी समझ पा रहे थे, तो उन्होंने बताया कि यह महिला सुबह से तीन लोगों को ऐसे ही फँसा चुकी है। वो पहले कुछ बच्चों से गाड़ी रुकवाती है, फिर यह बकरी ला कर सामने रख देती है और लोगों से ऐसे ही पैसा ऐंठती है।
हम लोग कुछ नहीं कह पाते क्योंकि कौन झगड़े में पड़े।
हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। हमें देर हो रही थी, लिहाजा हमने कहा कि तुम कुछ पैसे ले लो, पाँच हजार तो है नहीं। पर वो अड़ ही गयी कि पाँच हजार से कम नहीं लूँगी। हमने पुलिस बुलाने की धमकी दी, तो उसने खुश हो कर कहा कि जरूर बुला लो।
हमने वहीं पास रोड पर आते-जाते ट्रक वालों से उगाही करते पुलिस वाले को बुलाया। पर उसने कहा कि यह उसकी ड्यूटी नहीं।
फिर हमने कोलकाता में अपने रिपोर्टर को फोन किया। रिपोर्टर ने बीरभूम में किसी पुलिस अफसर को फोन किया। करीब एक घंटे में हमारे दबाव में पुलिस वहाँ आ गयी।
पुलिस वाले ने महिला को समझाने की कोशिश की। डराने की कोशिश की। पर महिला टस से मस नहीं हुई। उसने कहा कि आप रिपोर्ट लिखो। हमने भी कहा कि रिपोर्ट लिखनी चाहिए। पुलिस वाले ने समझाया कि आपको थाने चलना होगा, गाड़ी जब्त करनी होगी, इसकी तो मरी हुई बकरी जब्त होगी, आपकी मुसीबत हो जाएगी। और अब पुलिस वाले ने मोलभाव शुरू किया।
आखिर में ढाई हजार पर बात बनी। ढाई हजार रुपये लेकर हमसे कहा गया कि अब आप जा सकते हैं।
पुलिस चली गई। महिला अपनी मरी हुई बकरी लेकर चली गयी, अगले शिकार की तलाश में। हमने बहुत कहा कि हमने पैसे दे दिये हैं, अब बकरी तुम्हारी नहीं रही। इस पर उसने कहा कि जब आदमी गाड़ी के नीचे आ कर मर जाता है, आप मुआवजा देते हैं, तो क्या आदमी की लाश आपकी हो जाती है?
हम वहाँ से बच कर तो चले आए। पर हमने एक सबक सीखा कि जब भी आप इस तरह बाहर निकलें, तो अपने साथ कुछ कैश रखा कीजिए, खुद को लुटवाने के लिए। वैसे एक सबक और है कि बीच सड़क पर कोई कुछ भी कह कर रोकने की कोशिश करे, गाड़ी मत रोकिए। हम सोचते हैं कि ये गाँव के अनपढ़ लोग बहुत सीधे होते हैं, पर हकीकत ये है कि उन्हें अपने अधिकार के बारे में बहुत पता होता है। उन्हें पुलिस का खौफ नहीं होता। वो जानते हैं कि इस देश में जाति, जानवर, महिला, दुर्घटना, पुलिस – इन सबका कहाँ फायदा उठाना है।
आप भी तस्वीर देखिए।
अंधा भी कह सकता था कि बकरी कार से टकराई ही नहीं।
जिसने देखा था कि वो सुबह से तीन लोगों को एक बकरी की लाश के बूते लूट चुकी है, वो गवाही नहीं दे रहे थे। पुलिस सब समझ रही थी, पर लाचार थी।
और हम?
हम यही सोच रहे थे कि हमारी भक्ति में कुछ कमी रह गयी होगी, जो इस तरह फँसे।
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ऐसी कहानियाँ अपने पास रोकनी नहीं चाहिए। इसे लोगों से साझा करना चाहिए, ताकि कोई और कहीं फँसे तो समझ पाए कि अब क्या होगा। यह सरेआम लूट थी, पर मीडिया खबर बनने लायक नहीं। यह अपने ही देश में कानून का खुला मजाक था, पर पुलिस कुछ कर नहीं पा रही थी।
किसी तरह जान बचा कर हम वहाँ से निकले तो कान में यही गूँज रहा था कि एक बकरी की कीमत तुम क्या जानो, संजय बाबू!
(देश मंथन 10 अगस्त 2016)