पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
दो राय नहीं कि यह भारतीय गेंदबाजी थी कि जिसने पहले चार ओवरों में पिटने के बाद ऐसा जबरदस्त पलटवार किया कि कंगारू अंतिम 16 ओवरों में कुल जमा 107 रन ही जोड़ सके। टास हार कर पहले गेंदबाजी पर बाध्य भारतीयों के सम्मुख फिर भी ऐसे विकेट पर 161 का ऐसा लक्ष्य मिला था जो लगातार धीमी होती असमतल उछाल वाली पिच पर निस्संदेह चुनौतीपूर्ण स्कोर था और इसको पाने के लिए किसी एक स्पेशलिस्ट बल्लेबाज को डेथ ओवरों तक क्रीज में जमे रहना था।
जब आठ ओवरों के भीतर 49 पर धोनी के तीनों दुलारे शिखर धवन, रोहित शर्मा और सुरेश रैना एक बार फिर आराम फरमाने चले गए और नौवें ओवर में जब युवराज का टखना मुड़ गया तब साफ लगने लगा था कि मेजबानों की लुटिया डूबी। लेकिन नहीं अपने स्वर्णिम दिनों की छाया भर होने के बावजूद युवी की जीवटता की दाद देनी होगी कि एक टाँग के सहारे ही पंजाब के इस पुत्तर ने विराट कोहली को वह सहारा दिया, जिसकी कि सख्त जरूरत थी। धीमी जरूर थी 45 रन की साझेदारी मगर सबसे बड़ी बात यह कि विकेट नहीं गिरा और यही बहुत था। सामने के छोर पर विराट को ऐसा सहयोगी भर चाहिए था जो बस एक छोर थामें रखे।
रविवार की शाम ‘न्यूज वर्ल्ड इंडिया’ चैनल पर लाइव शो के दौरान एंकर खेल संपादक विनीत मल्होत्रा ने जब बताया कि भारत टास हार कर गेंदबाजी पर बाध्य हो गया है तब भारतीय नजरिए से यह किसी झटके से कम न था। घास रहित सूखे विकेट पर बाद में बल्लेबाजी आसान नहीं होगी और इसके लिए जरूरी था कि टाप आर्डर जो अर्से से टीम को रुलाता चला आ रहा है, यहाँ यदि निखर कर सामने नहीं आया तो रविवार विश्व कप में आखिरी दिन हो जाएगा। लेकिन फिर रुलाया बेशर्म रोहित-शिखर की जोड़ी ने अपने विकेट फेंक कर और रैना उठी गेंदों पर आज भी किस कदर भिखमंगें हो जाते हैं, इसका नमूना पुन: देखने को मिला। लेकिन वाकई भारतीय क्रिकेट कितनी भाग्य की धनी है कि जीनियस सचिन के बाद उसे सचमुच बल्लेबाजी का देवता मिल गया विराट के रूप में जो भले ही अपने आदर्श की तरह नैसर्गिक अलौकिक प्रतिभाशाली न रहा हो मगर उसने साबित कर दिया कि इस स्तर पर भी आप लगन और मेहनत के बल पर करिश्मायी बन सकते हैं। अंडर नाइंटीन का विश्व कप दिलाने वाले विराट ने वाकई किसी तपस्वी सी साधना की होगी स्किल, फिटनेस और टेंपरामेंट यानी मनोदशा के मोर्चे पर कि यह ऐसी रन मशीन में ढल गये जो किसी भी परिस्थिति, किसी भी आक्रमण और किसी भी पिच पर चलती रहती है, चलती रहती है।
ठीक है कि यह एक टीम गेम है और अपने गेंदबाजों के साथ ही युवी और अंत में जीत को अंतिम स्पर्श देने वाले कप्तान धोनी को भी आपको इस छह विकेट की अविस्मरणीय जीत का श्रेय देना होगा मगर इस वास्तविकता को भी स्वीकार करना होगा कि आज यदि टीम इंडिया सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज से दो-दो हाथ करने की पात्रता हासिल करने में सफल हुई है तो इसके लिए यदि किसी एक शख्स के चरणों में खिलाड़ी अपना मस्तक रखेंगे तो वह सिर्फ और सिर्फ विराट कोहली हैं। कोहली को दबाव में बल्लेबाजी करनें में विशेष आनंद आता है और आंकड़ों की किताब यदि पलटेंगे आप तो पाएँगे कि लक्ष्य का पीछा करने वाला ऐसा विलक्षण विरला बल्लेबाज भारत नें कोई दूसरा नहीं दिया। इस मायनों में बस कुछ अंशों तक पुरनियों में गुंडप्पा विश्वनाथ और कैंसर ग्रस्त होने के पहले के युवराज का नाम हम ले सकते हैं। विराट का वैशिष्ट्य यह कि 2014 की इंग्लैंड सिरीज के बाद से उन्होंने रोबोट सरीखी पारियाँ अनवरत खेली हैं और औसत के कानून का दिल्ली के इस असाधारण क्रिकेटर ने मजाक बना कर रख दिया, यह भी बताने की जरूरत नहीं आंकड़े खुद ही चीख-चीख कर इसकी सुनहली गाथा सुनाते हैं। यह मैंच ही नहीं वर्तमान विश्व कप के हर मुकाबले में आपको कोहली अधिकांशतः बल्ले से नंबर एक स्थान पर ही दिखेंगे। यहाँ तक कि जिस ओपनिंग मैंच में टीम नें 79 पर बिखर कर कीवियों से भद करायी थी उसमें भी 23 का सबसे ज्यादा का स्कोर कोहली का ही था।
इस मुकाबले की ही यदि बात करें तो देखिए आप कि विषम परिस्थिति में भी अविचलित विराट ने आते ही चिरपरिचित फ्लिक और कवर ड्राइव की छटा बिखेरी और युवी के साथ सिंगल से स्ट्राइक अपने पास रखते हुए प्रति ओवर छह से ज्यादा का रन रेट बनाए रखा और युवी के आउट होने के बाद धोनी के उतरते ही मानों बहार सी आ गयी। माही के लिए एक बात यह कहनी ही होगी कि उन्होंने विकेट के बीच दौड़ को नया आयाम दिया है। लोग अगर दो रनों का महत्व अब समझने लगें हैं तो सलाम भारतीय कप्तान को। फिर भी यहाँ सब कुछ आसान नहीं था। रन औसत बारह और तेरह प्रति ओवर का हो चुका था। परंतु कोहली थे न। उन्होंने गेंदों के संहार के लिए उस फाकनर का ओवर चुना जो डेथ ओवरों का राजा माना जाता है और जिसकी गेंदों की गति में चातुर्यपूर्ण बदलाव को भांपना वाकई टेढ़ी खीर समझा जाता है, उसी की धुलाई करते हुए दौ चौकों और एक छक्के सहित सत्रहवें ओवर में उतने ही रन कूट कर महज 51 गेंदों पर ही हीरे मोती जैसी 82 रनों की बेशकीमती अविजित पारी खेलने वाले विराट ने बिंद्रा स्टेडियम में जीत की खुशबू बिखेर दी और फिर तो बस मात्र औपचारिकताएँ ही शेष थीं।
हालाँकि विराट की सचिन से तुलना अनुचित है। जब वह रिटायर होंगे तब सही मायने में आकलन होगा पर फिलहाल यह तो आपको निर्विवाद स्वीकार करना ही होगा कि कैरियर के इस पहले हाफ में वह अपने आदर्श मास्टर ब्लास्टर से काफी आगे निकल चुके हैं। सचिन के पहले हाफ को यदि आप देखिए तो नब्बे प्रतिशत मौकों पर क्रिकेट का यह भगवान अपने विकेट फेंकता रहा है, जबकि दूसरी ओर इस भगवान को देख कर क्रिकेट का ककहरा सीखने वाला कोहली अपने विकेट की कीमत किस कदर समझता है, किसी स्टेटीशियन से पूछ कर देखिए, उत्तर मिल जाएगा। यहाँ कोहली अतुलनीय हैं, अप्रतिम हैं, सहीं मायने में वह बल्लेबाजी के देवता हैं। यदि मेजबान अगली दो बाधाएँ सफलतापूर्वक पार कर लेते हैं तब याद रखिए कि तीन अप्रैल को दुबारा टी-20 विश्व कप दिलाने का असाधारण गौरव उस ‘एकल सेना’ को ही दिया जाएगा जिसका नाम विराट कोहली है।
(देश मंथन, 29 मार्च 2016)