आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
शनि के मंदिर, हाजी अली दरगाह पर बखेड़े खड़े हो रहे हैं, पर ऊपर से कोई रिस्पांस नहीं आ रहा है।
कस्टमर केयर के इस जमाने में जहाँ से कस्टमर केयर बिलकुल ही नहीं मिलती है, वह है ऊपरवाले का इलाका।
मतलब कोई भी बंदा कभी भी ऊपर काल करके कस्टमर केयर पर ना पूछ सकता है कि ये हो क्या रहा है। या यह भी नहीं पूछ सकता कि मेरे पिछले-इस जन्म के पुण्य मिलाकर इतने पाइंट बनते हैं। इतने पाइंट पर तो एक ठीक- ठाक सी नौकरी मिल जानी चाहिए। नौकरी क्यों नहीं मिली। जवाब दो।
कस्टमर केयर ऊपरवाले के यहाँ है ही नहीं।
बंदा परेशान घूमता है, रोज मंदिर गया, कभी दारु नहीं पी, कभी नान-वेज नहीं खाया। कभी सुंदरियों को नहीं घूरा, फिर भी हार्ट अटैक हो गया। हे भगवान, मेरे पुण्यों का यह सिला दिया तूने।
हालाँकि इस सवाल का एक जवाब यह भी हो सकता है कि आजकल ऊपरवाला हार्ट को इतने बवाल झेलने के लिए बना कर भेजता है कि कम बवालों में तो हार्ट फेल होने के चांस हैं। ऊपरवाला फिट कर रहा है कि बंदा या बंदी एक ही हार्ट में कम से कम पंद्रह अफेयर रखेगा। और मान लो बंदा रखता है सिर्फ एक, तो हार्ट परेशान हो जाता है कि इतनी केपेसिटी खाली पड़ी है। हार्ट परेशान होकर फेल हो जाता है। बहुत शरीफ से दिखनेवाले बंदों को आजकल हार्ट-अटैक इसलिए भी हो जाता है। परम बदमाशियों के लिए जो माडल तैयार करके ऊपर से भेजा जा रहा है, वह एकदम सीधे-सादेपन में घबरा जाता है।
नीचे माहौल इतना कांपलेक्स हो गया है कि ऊपर की फैक्ट्रियाँ भी गड़बडा गयी हैं कि आखिर करें तो करें क्या। अभी मंगल ग्रह पर पानी मिला, तो ऊपरवाले ने सोचा होगा कि नीचे से मुझे थैंक्यू मिलेगा, पर ना, ना, ना नीचे अलग तरह की प्रतिक्रिया आयी।
सरकार समर्थकों ने कहा-मंगल पर पानी मिलने का मतलब यही है कि हमारी सरकार एकदम बढ़िया काम कर रही है। ऐसी-ऐसी जगहों से पानी निकल रहा है, जहाँ से पानी की उम्मीद नहीं थी। यह सरकार की सफलता ही है।
सरकार में शामिल गठबंधन-साझीदारों ने कहा-ना, ना, ना मंगल पर पानी सिर्फ सरकार की एक पार्टी की सफलता नहीं है। हम सरकार में साझीदार हैं। हमें मंगल में भी साझीदार माना जाये। हमें मंगल ग्रह के पानी में साझीदार माना जाये। इस पानी को बेचने के जो ठेके उठाये जायेंगे, उनका फैसला गठबंधन के सारे साझीदार ही मिलकर करेंगे।
सरकार विरोधियों ने कहा-ना, ना, ना, यह भ्रष्टाचार है।धरती का पानी उद्योगपतियों को दे दिया गया है, जिन्होंने उसे ले जाकर मंगल में जमा कर दिया है। यह आम आदमी के खिलाफ साजिश है। यह सूट-बूट की सरकार है। आम आदमी को पानी से वंचित करने की साजिश है। यह उद्योगपतियों की साजिश है।
कोई सरकार विरोधी तो यह तक कह उठा कि ये मंगल पर पानी अब लाये हैं, हम तो बहुत पहले ही मंगल पर पानी ले आये थे। इन फेक्ट, हम तो मंगल पर पानी तब ही ले आये थे, जब मंगल ग्रह भी नहीं था। जो किया हम ही कर गये। अब तो कुछ ना होता, इनका ना पानी असली है ना इनका मंगल ग्रह असली है।
ऊपरवाला भी हड़बड़ा जाये यह देख कर कि मेरे एक्शन पर रियेक्शन कैसे-कैसे आ रहे हैं।
धीमे-धीमे मुझे समझने में आने लगा कि ऊपरवाला खुलकर सामने आने में क्यों घबड़ाता है। उसके नाम तमाम बापुओं और माँओं ने जो पृथ्वी पर कांड मचा रखे हैं, उन सबके जवाब भगवान को ही देने पड़ जायें, भगवान की जमानत कलयुग के खत्म होने तक तो क्या, सतयुग के खत्म होने तक भी ना हो पायेगी। भगवान की कवरेज तमाम टीवी चैनलों में सुबह प्रार्थना कार्यक्रम की बजाय देर रात को वारदात टाइम कार्यक्रम में होने लगेगी।
भगवान का घबड़ाना बनता है। एक धार्मिक संप्रदाय का एक बंदा मुझे बता रहा था कि हमारे धर्म के एक संप्रदाय के हिसाब से हमारे भगवान की आँखें खुली रखनी होती हैं, दूसरे संप्रदाय के हिसाब से उन्ही भगवान को आँखें बंद रखनी होती हैं। उस धर्म के जिन मंदिरों पर दोनों संप्रदायों के दावे हैं, उनके भगवान कभी आँख खोल कर, कभी आँख बंद करके रहते हैं।
भगवान का बस चले, तो ये दिन देखने से पहले आँखें गायब करने का विकल्प ही फालो कर लेते।
खैर, अब शिकायत नहीं रही मुझे कि भगवान की कस्टमर केयर और भगवान खुद कभी दिखायी क्यों नहीं पड़ते।
(देश मंथन, 11 फरवरी 2016)