गोकसी के बहाने : परंपरा नहीं, चरित्र है हिंदुत्व का आधार

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संदीप त्रिपाठी : 

बीते कुछ दिनों से गोकसी के मुद्दे पर हो रहे हँगामे और तमाम नकारात्मक बातों के बीच दो बयान बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये बयान हैं बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी और दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना अहमद बुखारी के। इन दोनों ही प्रमुख मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने देश में गोकसी पर रोक लगाने की पैरवी की है।

जिलानी बोले

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमएसी) के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा कि मुस्लिमों को भी गायों का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों ने जंग-ए-आजादी से पहले खुद ही गोकशी पर पाबंदी लगायी थी। जिलानी ने कहा कि हिन्दू या मुसलमान, दोनों में से जो भी ऐसा करे, वो गलत है। उन्होंने इतिहास में दर्ज दो वाकयों का हवाला देते हुए गोकशी को गलत बताया। उनके मुताबिक अपनी वसीयत में बाबर ने हुमायूँ से कहा था कि गाय को यहाँ पाक जानवर माना जाता है। इसलिए गाय को मारने पर पाबंदी लगाना। साथ ही गांधी को महात्मा कहने वाले मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली ने भी 1920 में गाय का मीट खाना छोड़ दिया था और सभी मुसलमानों से भी ऐसा ही करने की अपील की थी। मौलाना ने ये कदम इसलिए उठाया, क्योंकि गांधी जी गाय को पूजनीय मानते थे।

शाही इमाम बुखारी बोले

इसके अगले ही दिन दिल्ली। स्थित शाही जामा मस्जिद के पेश इमाम सैयद अहमद बुखारी ने केंद्र सरकार से गोकशी पर पूरे देश में कड़े कानून की माँग की। शाही इमाम बुखारी ने कहा कि गोकशी पर कानून बनाने के संदर्भ में केंद्र सरकार को गंभीरतापूर्वक कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंेने कहा कि गाय को बेचने वाले, उसकी हत्याी करने वाले और इसमें मददगार को समान कड़ी सजा मिले। उन्होंने कहा कि किसी भी हाल में मुल्क में गोकसी नहीं होनी चाहिए, इससे माहौल बिगड़ता है और हिन्दू-मुस्लिमों में बेवजह कटुता पैदा होती है। साथ ही बुखारी ने गोकसी पर बयानबाजी करने वाले मंत्री आजम खान और लालू यादव को आड़े हाथों लिया। दादरी प्रकरण में यूपी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि अब वह इस प्रकरण में हस्तक्षेप करें और भड़काऊ बयान देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाये।

संदेश और संकेत

शाही इमाम और जफरयाब जिलानी का गोकसी पर पाबंदी की पैरवी करना इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू, प्रख्यात अंग्रेजी लेखिका शोभा डे और गोपालक समुदाय से जुड़े बिहार के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तथा इन जैसे लोग गोकसी के पक्ष में बयान दे रहे हों। शाही इमाम और जिलानी और यहाँ तक कि असदुद्दीन ओवैसी ने भी आजम खान के बिसाहड़ा कांड के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखने की निंदा और आलोचना की है।

यह सभी बातें कुछ संदेश देती हैं। पहला तो यह कि भारत में रहने वाले मुस्लिमों में मतभिन्नता के प्रति सहनशीलता, फिलहाल बहुत थोड़े लोगों में ही सही, लेकिन बढ़ रही है। दूसरे ‘स्व’ पर अभिमान के साथ ‘पर’ को सम्मान के सिद्धांत को भी भारतीय मुस्लिम अंगीकार करने की शुरुआत कर रहा है। यह दोनों ही यह बहुत महत्वपूर्ण संकेत हैं। यह संकेत भारत को मजबूत बनाते हैं। लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि बिसाहड़ा कांड में जिन लोगों ने उक्त घटना को अँजाम दिया या जो उस घटना के समर्थन में दिख रहे हैं, क्या वे हिंदुत्व के उक्त दोनों आधारभूत बातों पर अमल करते दिख रहे हैं? (यहाँ यह प्रश्न जाँच का विषय है कि बिसाहड़ा कांड में धर्म कारण था या धर्म की आड़ में स्वार्थ साधे गये) 

क्या है हिंदुत्व

हिंदुत्व के मूल आधारों में सहिष्णुता, सामाजिक स्तर पर अहिंसा, मानवता के साथ ही ‘स्व’ पर अभिमान के साथ ‘पर’ को सम्मान शामिल है। हिंदुत्व ज्ञान की प्राप्ति की यात्रा है। हिंदुत्व कर्म पर जोर देता है, प्रतिकर्म पर नहीं। हिंदुत्व उपासना पद्धति में भेद के आधार पर संघर्ष की प्रेरणा नहीं देता। हिंदुत्व एक प्रगतिशील धर्म है जो काल-देश-परिस्थिति के अनुरूप खुद में परिवर्तन कर प्रगति करता जाता है। इसमें कोई परंपरा नहीं, बल्कि चरित्र का महत्व है। चरित्र आगे बढ़ने का, चरित्र ज्ञान की जिज्ञासा का। हिंदुत्व बुद्धि की भक्ति पर जोर देता है, अंधभक्ति पर नहीं। यह आधार इतने मजबूत हैं कि हजारों वर्षों तक पराधर्मियों के आतंक के बावजूद इस धर्म का अस्तित्व अक्षुण्ण रहा। क्या इन आधारों को परे ढकेलने पर हिंदुत्व अक्षुण्ण रहेगा? हिंदुत्व के झंडाबरदारों को हिंदुत्व के आधारों और चरित्र पर दृढ़ रह कर ही सफलता मिल सकती है, आधारों के विपरीत कर्म करने पर कदापि नहीं।

(देश मंथन, 10 अक्तूबर 2015)

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