प्रशासनिक सुधार से न्यायिक सुधार होगा

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सुशांत झा, पत्रकार :

गोविंदाचार्य जब कहते हैं कि सरकार जजों की संख्या बढ़ाने और त्वरित न्याय दिलाने के लिए 7000 करोड़ तक आवंटित करने को तैयार नहीं है, जबकि एयर इंडिया के लिए पिछली सरकार 30,000 करोड़ देने को तैयार थी तो उसमें कुछ और बातें जोड़नी आवश्यक है।

त्वरित और सुलभ न्याय सिर्फ जजों की संख्या बढ़ाने और अदालतों में किरानियों को बहाल करने से नहीं होगा। उसके लिए पुलिस की संख्या, पुलिस की ट्रेनिंग, उसे तकनीक के अनुरूप बनाना, उनका वेतन और काम की परिस्थितियों में सुधार करना, फोरेंसिक लैब को ज्यादा सक्षम और सुविधा-सम्पन्न बनाना, डॉक्टरों की संख्या बढ़ाना, जमीन-जायदाद से जुड़े कार्यालयों का आधुनिकीकरण करना, सरकारी कार्यालयों में सुधार करना ताकि समय पर लोगों को कागजात या बकाया मिल सके, उसके लिए वहाँ पर्याप्त मैन-पॉवर बहाल करना आदि शामिल है। सिर्फ भाषण देने से तो त्वरित न्याय मिलने से रहा। 

हमारे यहाँ हाल यह है कि जमीन से संबंधित किसी मुकदमे में दस्तावेज खोजने में महीनों लग जाते हैं, क्योंकि सरकारी बाबू को पता ही नहीं होता कि कागजात कहाँ है! या पता होता है तो वो दबा लेता है। ऐसे में न्याय मिलने से रहा। पुलिस वालों का अपना दर्द है। उन पर दबाव हद से ज्यादा है। महकमें में उच्च-अधिकारी बिना गाली के बात नहीं करते, उनकी जिंदगी तो नर्क होती ही है, बदले में वे जनता की जिंदगी नर्क कर देते हैं कि कम से कम उनके बाल-बच्चे तो ऐश से जिंये। 

पूर्णिया से हमलोग एक अखबार निकाल रहे थे तो एसडीएम (IAS) को पता नहीं था कि अखबार के पेपर को आगे कैसे मूव किया जाये। जो एक मात्र महिला किरानी थी तो किसी शादी के सिलसिले में 15 दिन के लिए बाहर थी, बाकी पूरे ऑफिस में सन्नाटा बट्टे सन्नाटा था। ऐसे में मोदी जी, त्वरित न्याय कैसे मिलेगा। इनमें से जितनी बातें हैं उनमें से अधिकांश का संबंध न्यायपालिका से न होकर सरकार से है। आप पुलिस रिफॉर्म की बात पहले कीजिए, आप प्रशासनिक सुधार की बात कीजिए। आधा न्यायिक सुधार तो अपने आप हो जायेगा।

(देश मंथन, 08 अप्रैल 2015)

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