संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं अमेरिका के डेनवर शहर में था। वही डेनवर शहर, जहाँ शादी के बाद अपनी धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित भी रहती थीं।
माधुरी दीक्षित बेशक वहीं रहती थीं, पर आज मैं कहानी माधुरी दीक्षित की नहीं सुनाने जा रहा। आज मैं आपको जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ, उसे सुन कर आप सोचने लगेंगे कि क्या सचमुच ऐसा होता है? पर क्योंकि मैं इस कहानी का चश्मदीद हूँ, इसलिए आप मेरी बात पर यकीन कीजिएगा कि मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ, उसका एक-एक अक्षर सत्य है। क्योंकि यह कहानी आदमी की जिन्दगी से जुड़ी है, इसलिए आप इसे अधिक से अधिक लोगों तक साझा कीजिएगा। जितने लोगों को ये कहानी पता चलेगी, उतना फायदा हम सबका होगा।
हमलोग एक दिन डेनवर के पास ही रॉकी माउंटेन घूमने गये थे। शहर से कुछ दूर इस पहाड़ी पर लोग पिकनिक मनाने, बर्फ में फिसलने और यहाँ बहने वाली पहाड़ी नदी का आनंद उठाने आते हैं। वैसे भी अमेरिका में लोग सप्ताह के अंत में घर में नहीं टिकते। गाड़ी उठाई और निकल गये परिवार और दोस्तों के साथ।
ऐसे ही हम भी कुछ दोस्तों के साथ उस दिन रॉकी माउंटेन गये थे।
हम वहाँ उस पहाड़ी नदी के पास खड़े थे कि अचानक वहाँ काफी भीड़ जुट गयी और लोग चिल्लाने लगे कि वो डूब गया, वो डूब गया।
भीड़ की उस आवाज में हम इतना ही समझ पाए कि कोई पर्यटक नदी में गिर गया।
मैंने दिल्ली में कई लोगों के नदी, नहर, नाले में गिरने और डूबने की कहानियाँ सुनी हैं। मैंने सुना है कि एक आदमी डूब रहा था, उसके दोस्त उसे बचाने के लिए नदी में कूदे वो भी डूब गये। पर वहाँ अमेरिका में ऐसा नहीं हुआ। जैसे ही वो आदमी नदी में गिरा, किसी ने पुलिस को फोन कर दिया।
कुल जमा तीन मिनट में वो पूरा इलाका पुलिस के कब्जे में था। उसके गोताखोर नदी में कूद चुके थे और हम दूर खड़े देख रहे थे कि आसमान में एक हेलीकॉप्टर मंडराने लगा था। भीड़ दूर खड़ी थी। पुलिस अपना काम कर रही थी।
पूरा सिस्टम अपना काम कर रहा था। तेज प्रवाह वाली उस पहाड़ी नदी में गोताखोर कितनी दूर तक गये, पता नहीं। पर मैं संजय सिन्हा, अपनी आँखों से देख रहा था कि वो हेलीकॉप्टर नीचे उतरा, नदी से एक युवक को निकाल कर गोताखोर हेलीकॉप्टर तक पहुँचे और हेलीकॉप्टर उसे लेकर उड़ गया।
मैं हैरान था।
मैंने वहाँ किसी से पूछा भी। लोगों ने कहा कि ये अमेरिका है, यहाँ आदमी की जान की बहुत कीमत है। यहाँ चाहे जो हो जाए, पर आदमी को बचाने की पूरी कोशिश की जाती है। एक-एक इंसान की अहमियत है। यहाँ कोई ऐसे ही नहीं मर सकता।
मैं सचमुच बहुत हैरान था। यहाँ सबकुछ पाँच मिनट में हो गया था।
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर संजय सिन्हा ये सारी बातें क्यों बता रहे हैं, सभी जानते हैं कि विकसित देशों की पुलिस बहुत मुस्तैद है। बात करनी हो तो अपने यहाँ की पुलिस की बात कीजिए।
तो जनाब, सुनिए आज मैं अपने यहाँ की पुलिस की कहानी लेकर ही आपके पास आया हूँ। उम्मीद है कि खबर आपने भी पढ़ी होगी कि नोएडा के एक स्वीमिंग पूल में नौ साल का एक बच्चा तैरता हुआ डूबने लगा। डूबने क्या लगा, उसका हाथ पूल के नीचे पानी निकालने वाले पंप में फंस गया। वो करीब छह मिनट तक पानी के भीतर फंसा रहा।
छह मिनट तक वो साँस नहीं ले पाया। बहुत मुश्किल से उसे पूल से बाहर निकाला गया और फटाफट नोएडा के ही एक अस्पताल में भेजा गया। बच्चे की तबियत बहुत बिगड़ गयी थी। उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे।
अब क्या हो?
बस इसी सवाल के आगे शुरू होती है मेरी आज की कहानी।
डॉक्टरों ने कहा कि बच्चे को अगर आधे घंटे में दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में पहुँचा दिया जाए तो उम्मीद की एक किरण बचती है। पर दिल्ली में तीस किलोमीटर का फासला दिन में तीस मिनट में तय कर पाना असंभव है। लोग तो यहाँ एंबुलेंस का सायरन सुन कर भी अपनी गाड़ी आगे से नहीं हटाते। ऐसे में यह होना नामुमकिन सी बात थी।
पर बच्चे के पिता ने हार नहीं मानी। उन्होंने नोएडा पुलिस से अनुरोध किया कि आप ग्रीन कॉरिडोर बना कर आधे घंटे में बच्चे को नोएडा से दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में पहुँचा सकते हैं।
ये ग्रीन कॉरिडोर क्या है?
बच्चे के पिता ने कहा कि आप दिल्ली पुलिस से बात कीजिए। आपकी एक गाड़ी रास्ता क्लियर करती हुई आगे जाएगी, आप बच्चे को दिल्ली पुलिस को सौंपेंगे, दिल्ली पुलिस अस्पताल तक रास्ता पहले से खाली कराती चली जाएगी इस तरह आधे घंटे में तीस किलोमीटर की दूरी आसानी से तय हो जाएगी।
एक कोशिश की गयी।
और यकीन कीजिए कि जो रास्ता दो घंटे से अधिक का था, उसे आंधे घंटे में ग्रीन कॉरिडोर बना कर, लोगों को ये बता कर कि एक जिन्दगी का सवाल है नामुमिकन को मुमकिन कर लिया गया। बच्चा उस अस्पताल तक पहुँच गया।
मेरा यकीन कीजिए, जब ये खबर मेरे पास आई थी, तो मेरे दोनों हाथ अपने आप जुड़ गये और मैं ताली बजाने लगा।
मेरे मुँह से निकला थैंक्यू नोएडा पुलिस, थैंक्यू दिल्ली पुलिस। थैंक्यू नोएडा के लोगों, थैंक्यू दिल्ली के लोगों।
थैंक्यू उन सभी लोगों को जिन्होंने आदमी की जिन्दगी के मोल को समझा।
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बाबा ब्लैक शिप और जॉनी जॉनी यस पापा जैसी कविताओं के साथ-साथ जरूरत आदमी की जिन्दगी के मोल को समझने और समझाने की भी है। आज मैं आपसे यह कहानी सिर्फ इसलिए साझा कर रहा हूँ ताकि आप भी समझें कि जब कोई गाड़ी सायरन बजाते हुए गुजरती है, तो आप जरा सा रास्ता दे कर सिर्फ मानव धर्म का निर्वाह ही नहीं करते, आप उस पुण्य के भागीदार भी बनते हैं, जिसकी जरूरत इस लोक के अलावा शायद उह लोक में भी पड़ती है।
(देश मंथन 02 जुलाई 2016)