सोना बहल जाए, कोयला पर छापा

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरा एक दोस्त था। उसने रसायन शास्त्र की पढ़ाई की थी। 

नौकरी के लिए अगर उसने लिखित परीक्षा पास कर ली, तो फिर इंटरव्यू में उसे कोई नहीं छाँटता था। मैंने एक बार उससे पूछा कि तुम इंटरव्यू कैसे पास कर जाते हो, तो उसने बहुत आसान सा जवाब दिया। उसने कहा कि उससे कोई भी इंटरव्यू लेने वाला चाहे जिस विषय पर सवाल पूछे, वो घुमा-फिरा कर उसे रसायन शास्त्र से जोड़ देता है और उस विषय पर तो उसकी अच्छी पकड़ है ही।

मैं पहले ही बता दूँ कि मेरा वो दोस्त फिलहाल भारतीय विदेश सेवा में है। उस इंटरव्यू में उससे पता नहीं दुनिया के किस देश के विषय में सवाल पूछा गया था और उसने अपने जवाब में वहाँ की आबोहवा की चर्चा शुरू कर दी। एक बार जब बात आबोहवा पर गयी, तो फिर उसने हवा में मौजूद केमिकल कणों की बात शुरू कर दी। इंटरव्यू बोर्ड में एक सज्जन रसायन शास्त्र के अच्छे जानकार थे, उन्होंने उससे रसायन शास्त्र पर एक से बढ़ कर एक टेढ़े सवाल किए, और मेरा दोस्त उनके सभी सवालों के जवाब देता चला गया। 

जानते हैं ऐसा क्यों हुआ? 

मेरा दोस्त यकीनन रसायन शास्त्र का अच्छा जानकार था। पर उसे भूगोल या अर्थशास्त्र की जानकारी नहीं थी। उससे सवाल भूगोल का पूछा गया था, जिसे बहुत खूबसूरती से उसने रसायन शास्त्र की ओर मोड़ दिया। एक बार सवाल मुड़ गया, तो एक तरह से इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों को वो अपने पाले में ले आया। उसने विषय ही बदल दिया। जो उसे आता था, जो वो चाहता था, उसने वो कर लिया। 

अब आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा आखिर कहना क्या चाहते हैं। 

दरअसल जब भी मैं जिन्दगी से जुड़ी कोई पोस्ट लिखता हूँ तो मेरे कुछ परिजन मुझसे सवाल कर बैठते हैं कि मैं सामयिक विषयों पर क्यों नहीं लिखता। मैं गौरक्षा पर क्यों नहीं लिखता? 

बहुत बड़ा सवाल है, मैं गौरक्षा पर क्यों नहीं लिखता? खास कर जब चारों ओर इस पर बात हो रही है, तो मैं क्यों नहीं इस पर चर्चा करता? 

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मेरा वो दोस्त, जो अभी भारतीय विदेश सेवा में है, वो मुझे अभी बहुत याद आ रहा है। 

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मुझसे ऐसा कहने वाले परिजनों को मैं बताना चाहता हूँ कि हमारे देश में आज भी पानी, रोटी, घर, स्कूल, स्वास्थ्य ज्यादा बड़ी समस्या है। और कुछ नहीं तो यही समझिए कि बेरोजगारी, महँगाई भी बहुत बड़ी समस्या है। आपका सवाल उधर होना चाहिए था। पर आपको पता भी नहीं चला कि कब विषय बदल दिया गया। आप शौचालय, सफाई, गौरक्षा जैसे विषयों में उलझ गये। 

ये सारी बातें जरूरी हैं। गाय को हम माँ मानते हैं और हमारा फर्ज है कि हम माँ की रक्षा करें। सफाई जिन्दगी की बुनियादी आदत होनी चाहिए। 

पर क्या आपने कभी सोचा है कि कब और कहाँ मूल विषय से आपको भटका दिया गया। 

मेरा दोस्त तो इंटरव्यू लेने वालों को भटका कर नौकरी पा गया था। पर आपके नेता तो आपको भटका कर सत्ता पा गये हैं। उन्होंने जब आपसे वोट माँगा था तब महँगाई, बेरोजगारी, रोटी, मकान, घर उनके विषय थे। पर जब वो सत्ता में आ गये तो गाय, पाकिस्तान और धर्म उनके कोर सब्जेक्ट हो गये। 

उन्होंने उलझा दिया, आप उलझ गये। आपको भी लगने लगा कि सचमुच समस्या तो यही है।

आप इन विषयों पर सोचिए। लिखिए। पर पहले जरा अपने भीतर झाँक कर भी देखिए कि कहीं भूगोल के सवाल को रसाय शास्त्र के जवाब में तो नहीं बदल दिया गया है।

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आपके संजय सिन्हा इसीलिए इन विषयों पर नहीं लिखते। उनके दोस्त ने उन्हें बहुत पहले समझा दिया था कि चालाक आदमी विषय बदल देता है। मूल सवाल पीछे छूट जाता है। 

आप अपने घर के आस पास झाँकिएगा कि क्या कहीं कोई अस्पताल है, जहाँ आप मुफ्त इलाज करा सकें? कहीं कोई ऐसा अच्छा स्कूल है, जहाँ बिना सिफारिश के आप अपने बच्चों को दाखिला दिला सकें? नल से क्या बिना फिल्टर लगाए पीने वाला पानी आ रहा है? क्या महँगाई ने आपको सताना बंद कर दिया है? अगर ये सब हो तो आपको गाय की चिंता में घुलना चाहिए। आपको फेसबुक पर ही पाकिस्तान की धज्जियाँ उड़ा देनी चाहिए। और जब इतना हो जो जाए, तो फिर मुझसे भी कहना चाहिए कि क्या रोज सुबह-सुबह मानवीय कहानियाँ लेकर चले आते हो? लिखो, पर बर्निंग टॉपिक पर लिखो।

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बिहार में एक कहावत है, “सोना बहल जाए, कोयला पर छापा।”

जिन्दगी का सोना जब हाथ से छूट कर पानी में बह रहा हो, तो कोयले को पकड़ कर नहीं बैठना चाहिए।  

(देश मंथन 12 अगस्त 2016)

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