तिरंगे को सलामी पर बेवजह विवाद

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गणतंत्र दिवस परेड के दौरान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देने की बजाय महज सावधान की मुद्रा में खड़े रहने पर सोशल मीडिया पर विवाद छिड़ गया।

परेड की उस तस्वीर को सोशल मीडिया पर चस्पा किया गया जिसमें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री मनोहर पार्रीकर के साथ उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी खड़े हैं। इनमें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री मनोहर पार्रीकर सलामी दे रहे हैं और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी सावधान की मुद्रा में हैं।

सोशल मीडिया में लोगों ने हामिद अंसारी के सलामी देने की बजाय सावधान खड़े होने को उनके धर्म से जोड़ते हुए सवाल उठाने शुरू किये। 26 जनवरी को सुबह से शुरू हुए इस विवाद ने कई मोड़ लिये। सोशल मीडिया पर एक तबके ने हामिद अंसारी के सलामी न देने को उनकी ‘सांप्रदायिक सोच’ बताते हुए रामलीला के दौरान तिलक न लगवाने के उनके पिछले उदाहरण से जोड़ा। इस पर हामिद अंसारी के समर्थन में भी काफी लोग इस विवाद में कूद पड़े। उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज संहिता का हवाला देते हुए कहा कि तिरंगे को राष्ट्र प्रमुख और सेना के लोग ही सलामी दे सकते हैं। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कह डाला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री मनोहर पार्रीकर ने सलामी दे कर प्रोटोकॉल तोड़ा है। विवाद इतना बढ़ गया कि उपराष्ट्रपति कार्यालय तक को इसमें बाकायदा एक बयान जारी कर सफाई देनी पड़ी।

उपराष्ट्रपति के ओएसडी गुरदीप सिंह सप्पल ने आधिकारिक बयान में कहा, “जब राष्ट्रगान हो रहा होता है तो मुख्य पदाधिकारी और वर्दीधारी व्यक्ति सलामी देते हैं। जो सामान्य पोशाक में होते हैं, वे सावधान की मुद्रा में खड़े होते हैं। गणतंत्र दिवस की परेड में सैन्य बलों के सुप्रीम कमांडर के तौर पर राष्ट्रपति सलामी लेते हैं और प्रोटोकॉल के तहत उपराष्ट्रपति को सावधान की मुद्रा में खड़े रहना होता है।”

इस मुद्दे पर कुछ नामचीन लोगों ने भी नियमों का हवाला देकर उपराष्ट्रपति का बचाव किया है। लेकिन इस पूरे विवाद से एक बात तो साफ हुई है कि राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देने के मसले पर आम लोगों से लेकर बड़े नामचीन लोगों तक जानकारियाँ आधी-अधूरी हैं। ज्यादातर लोगों की इस विषय में जानकारियाँ तथ्यों की बजाय धारणाओं पर आधारित हैं।

राष्ट्रध्वज संहिता, 2002 में राष्ट्रध्वज को सलामी के मसले पर स्पष्ट बातें कही गयी हैं। राष्ट्रध्वज संहिता के खंड-3 की धारा 6 में यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रध्वज को सलामी किसे देनी चाहिए। इसके मुताबिक “राष्ट्र ध्वज फहराने या उतारने के कार्यक्रम के दौरान, या परेड के दौरान राष्ट्रध्वज के सामने से गुजरने के दौरान समस्त उपस्थित लोगों को ध्वज की ओर मुँह कर के सावधान खड़ा होना चाहिए। जो लोग वर्दी में उपस्थित हों, उन्हें उपयुक्त सलामी देनी चाहिए। जब जुलूस के साथ ध्वज गुजर रहा हो, तो उपस्थित लोग ध्वज सामने आने पर सावधान खड़े हो जायें या सलामी दें।”

इस संहिता से स्पष्ट है कि अगर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी परेड के दौरान सावधान खड़े रहे और सैल्यूट नहीं किया तो उन्होंने राष्ट्रध्वज के प्रति न तो कोई असम्मान जताया और न ही कोई कानून तोड़ा। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री मनोहर पार्रीकर ने सलामी दी तो वह भी वाजिब है और उन्होंने भी कोई प्रोटोकाल नहीं तोड़ा।

सोशल मीडिया पर तर्क-वितर्क

गौरव शर्मा (फेसबुक) : उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने राष्ट्रगान के वक्त राष्ट्रध्वज को सलामी न देने की धृष्टता की है। वे पहले भी अपने धार्मिक विश्वास के आधार पर परंपराओं की तौहीन कर चुके हैं कि एक मुसलमान सिर्फ अल्लाह के सामने झुक सकता है।

अविनाश पी. एन. शर्मा (फेसबुक) : तकनीकी जवाब अगर कोई हो भी.. और वह विधिसम्मत भी हो, तो भी.. देश के इतने बड़े औपचारिक पद के व्यक्ति द्वारा, इस आधिकारिक राष्ट्रीय पर्व पर, अपने राष्ट्रपति की तरफ ही सही, देख कर भी.. भाव के स्तर से जुड़ कर सलामी न देना सवाल पैदा करेगा ही और करना भी चाहिए। मैं नहीं जानता इसमें ऐसा क्या हो सकता है जो बीच में आये ऐसा करने के, और अगर आता भी है तो वह मुझे मंजूर नहीं किसी भी आधार पर। माफ़ करियेगा, बेहद दुखद है यह देखना।

भारती ओझा (फेसबुक) : क्या सलामी तिरंगे को दे देते तो प्रोटोकॉल टूट जाता?  क्या सफाई दी गयी है? तिरंगे को सलामी देने की बात है न कि सेना द्वारा सलामी लेने की बात। प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, सुरक्षा गार्ड और सभी उपस्थित ने सलामी दी थी, उनके लिए प्रोटोकॉल था?

अजय सिंह (फेसबुक) : भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपने को एक बार फिर भारतीय की जगह मुसलमान होने का अहसास कराया जब गणतंत्र दिवस पर झंडोत्तोलन के समय जहाँ प्रणव मुखर्जी, मोदी सहित सभी लोग तिरंगे को सलामी दे रहे हैं और हामिद अंसारी खड़े ही हैं। इन्होंने सलामी नहीं दी। क्या यह भारत भक्त होने की निशानी है या कुछ और…

त्रिभुवन पाण्डेय (फेसबुक) : उपनियम के अनुसार राष्ट्रगान के समय दक्ष मुद्रा में खड़ा होने का प्रावधान है। परंतु सलामी पर कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है। रही बात अंसारी जी की तो वे परंपराओं से हट कर हैं। रामलीला में तिलक का टीका भी नहीं लगवाया था। चाहे वह प्रतीकात्मक ही क्यों न हो?

शेखर गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार (ट्विटर) : अज्ञानी लोग सुबह से उपराष्ट्रपति अंसारी को गालियाँ दे रहे हैं और आक्षेप लगा रहे हैं। केवल राष्ट्रपति और वर्दीधारी जवानों को सलामी देनी होता है। अन्य लोग सावधान खड़े रहते हैं।

राजेंद्र तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार (फेसबुक) : ये क्या हो रहा है हमारे देश में! कुछ कूढ़मगज और फासिस्ट लोगों के झूठ फैलाने और उपराष्ट्रपति को देशद्रोही करार दे कर उनसे इस्तीफ़ा देने की माँग के चलते उपराष्ट्रपति कार्यालय को सफाई देने पर मजबूर होना पड़े! हम एक समाज एवं देश के रूप में किस तरफ़ बढ़ रहे हैं? आने वाले दिनों में देश की सनातन संस्कृति को सही मायने में मानने वालों के लिए कोई जगह बचेगी या उन्हें नेपाल, भूटान और श्रीलंका आदि में शरण लेनी पड़ेगी?

शाहनवाज सिद्दीकी (फेसबुक) : साहब हर जगह जबरदस्ती घुसने की आदत की वजह से यहाँ भी सलामी देने लगे… जबकि राष्ट्रपति सेना के तीनों अंगों के सर्वोच्च कमांडर होते हैं, इसलिए देश की गणतंत्र दिवस परेड में सलामी का यह हक केवल राष्ट्रपति को ही होता है, प्रधानमंत्री को भी नहीं… केवल राष्ट्रपति की गैर-मौजूदगी में ही उपराष्ट्रपति सलामी लेते हैं… और यही प्रोटोकॉल भी है!

अहमद कमाल सिद्दीकी (फेसबुक) : राजपथ पर ध्वजारोहण के बाद जब राष्ट्रगान की धुन बज रही थी, तो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने राष्ट्रध्वज को सलामी दी। सोशल साइटों पर कुछ लोगों का आरोप है कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी सिर्फ सावधान खड़े रहे, उन्होंने राष्ट्रध्वज को सलामी देने की जरूरत नहीं समझी। बता दूँ कि राष्ट्रध्वज को सलामी देने या सावधान की मुद्रा में खड़े होने का एक ही अर्थ है। सेना और पुलिस में भी कायदा यही है कि ध्वजारोहण करने वाला शीर्ष अधिकारी ही ध्वज को सलामी देता है, शेष लोग सावधान की मुद्रा में खड़े रह सकते हैं। हमारे उप-राष्ट्रपति ने कहीं से भी राष्ट्रध्वज की अवमानना नहीं की है।

(देश मंथन, 27 जनवरी 2015)

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