संदीप त्रिपाठी :
राजधानी दिल्ली में मंगलवार (30 अगस्त 2016) की शाम आठ बजे लक्ष्मीनगर मेट्रो से निर्माण विहार मेट्रो की ओर जाने पर कुछ ही दूर पर एक अजीब नजारा दिखा।
लक्ष्मी नगर मेट्रो से आगे पिलर संख्या 32 और 33 के बीच में बायीं ओर स्थित पंचेश्वर शिव मंदिर के सामने भारी भीड़ लगी हुई थी जो हनुमान चालीसा का पाठ कर रही थी। इस भीड़ में काफी महिलाएँ भी थीं। मंदिर के ठीक सामने आठ-दस महिलाएँ माइक पर हनुमान चालीसा का पाठ कर रही थीं। शेष भीड़ ताली बजा-बजा कर उनका अनुकरण करते हुए हनुमान चालीसा का सस्वर पाठ कर रही थी। सड़क पर खड़ी इस भीड़ के कारण यातायात अवरुद्ध था। बसें, कारें, ऑटो सभी लंबी कतार लगा रहे थे। तमाम पुलिसकर्मी भी वहाँ खड़े थे, जो हनुमान चालीसा का पाठ करती भीड़ को सड़क से हटाने में असमर्थ थे।
पूर्वी दिल्ली में लक्ष्मीनगर और शकरपुर को अलग करने वाले विकास मार्ग पर इस तरह का जाम पहली बार दिख रहा था। उत्सुकता हुई कि यह भीड़ सड़क पर खड़े हो कर समवेत स्वर में हनुमान चालीसा का पाठ क्यों कर रही है? इस भीड़ में कुछ युवा तिरंगा झंडा भी लहरा रहे थे। यह और भी चौंकाने वाला था। आखिर हनुमान चालीसा पढ़ते जन-समूह के बीच कुछ तिरंगा क्यों लहरा रहे थे?
बड़ा अजीब लगा। लोगों के दफ्तर से घर लौटने का समय था। लोग थके-हारे होंगे, घर पहुँचने की बेताबी होगी, कुछ लोग बीमार भी हो सकते होंगे, किसी को आनंद विहार में ट्रेन पकड़नी होगी, किसी को वोल्वो, जाम लगने से गाड़ियाँ छूट सकती हैं। क्या इस भीड़ को जाम में फँसे लोगों की परेशानी से कोई वास्ता नहीं है? क्यों ये बीच सड़क पर जमा हो कर हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं, लोगों को परेशान कर रहे हैं? पुलिस पर गुस्सा आ रहा था।
मैं आगे बढ़ा और जायजा लेने मंदिर के पास पहुँचा। देखा कि एक बैनर लगा है जिस पर लिखा है कि हर शुक्रवार को सड़क पर नमाज बंद करवाओ। यह सवाल भी था कि शुक्रवार को सुबह 5 बजे की नमाज सड़क पर क्यों नहीं होती, दोपहर की नमाज ही क्यों सड़क पर होती है?
यह सवाल पढ़ कर अब इस भीड़ पर या पुलिस पर गुस्सा नहीं आ रहा था। सरकारों पर गुस्सा आ रहा था। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सरकारों ने शुक्रवार को सड़क पर नमाज की अनुमति कैसे दी? जिस समय शुक्रवारों को सड़क पर नमाज पढ़ी जाती है, लगभग वही वक्त होता है बच्चों के स्कूलों की छुट्टियों का। इन नमाजों के कारण छोटे-छोटे बच्चे हर शुक्रवार को जाम में फँसते हैं, कड़कड़ाती धूप और उमस में बेहाल बच्चों के गाल गर्मी के मारे लाल हो जाते हैं और जब वे किसी तरह घर पहुँचते हैं तो निढाल हो कर बिस्तर पर पड़ जाते हैं। नमाज के वक्त भी किसी को ट्रेन पकड़नी होती है जिसे जाम के कारण परेशानी उठानी पड़ती है, कोई बीमार होता है जिसे तत्काल चिकित्सकीय सहायता की जरूरत होती है। अगर मुझे शुक्रवार को दोपहर गुस्सा नहीं आता तो फिर मुझे मंगलवार की शाम बीच सड़क पर हनुमान चालीसा का पाठ करती भीड़ के कारण लोगों को हुई परेशानी पर गुस्सा करने का कोई हक नहीं है।
जाहिर है मंगलवार को धार्मिकता का यह सार्वजनिक प्रस्फुटन किसी को परेशान करने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि सरकार और लोगों की आँख खोलने के उद्देश्य से था। अगर सरकार शुक्रवार को धार्मिकता के सार्वजनिक प्रस्फुटन पर रोक नहीं लगा सकती तो उसे मंगलवार को भी इस धार्मिक प्रस्फुटन को रोकने का कोई हक नहीं है। बुद्धिजीवी भी निरपेक्ष तरीके से सोचें तो या तो उन्हें यही कहना होगा कि शुक्रवार के धार्मिक प्रस्फुटन पर रोक लगनी चाहिए वरना किसी मंगलवार, सोमवार, शनिवार या रविवार को बीच सड़क पर होने वाले धार्मिक प्रस्फुटनों पर रोक लगाने का भी सरकार को नैतिक हक नहीं होगा।
संविधान के मौलिक अधिकारों में धार्मिक आजादी भी एक है। यदि आप सरकार होने के नाते किसी एक धर्मावलंबियों को धार्मिक क्रियाकलापों के सार्वजनिक प्रस्फुटन के लिए सार्वजनिक सड़क के उपयोग की अनुमति देते हैं तो उसी आधार पर आपको अन्य धर्मावलंबियों को भी यह अनुमति देनी होगी। लेकिन किसी धार्मिक समूह को इस तरह की अनुमति दे कर सरकार उस कारण से जाम में फँसे लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही है जो गलत होगा।
इसीलिए धर्म को वैयक्तिक मानने का आग्रह किया जाता है। पूजा करनी है, अपने घर में करें, मंदिर के प्रांगण में करें, नमाज पढ़नी है, घर में पढ़ें या किसी मस्जिद के प्रांगण में पढ़ें, प्रेयर करनी है, मोमबत्ती जलानी है, अपने घर में करें, गिरिजाघर के प्रांगण में करें, गुरुवाणी का पाठ करना है, अपने घर में करें, गुरुद्वारे के प्रांगण में करें, किसी को आपत्ति नहीं होगी। जिसकी इच्छा होगी, वह उन स्थानों पर आ कर आपकी पूजा, नमाज, प्रेयर या गुरुवाणी पाठ में शामिल होगा। लेकिन अपने कारण आप किसी अन्य को उसकी इच्छा के विपरीत कार्य करने या उसे अपना कार्य करने में अड़चन डालने का अधिकार नहीं रखते।
याद रखिये, आपकी आजादी वहीं तक सीमित है, जहाँ से दूसरे व्यक्ति की आजादी का दायरा शुरू हो जाता है। सरकार को वोटबैंक की राजनीति का ध्यान छोड़ कर आम आदमी के अधिकारों के पक्ष में खड़ा होना पड़ेगा, वरना कल-परसों कोई भी धार्मिक समूह जब चाहे, सार्वजनिक स्थानों पर अपनी धार्मिकता का सार्वजनिक प्रस्फुटन करने लगेगा और आप उसे रोक नहीं पायेंगे और आम जनता तो खैर, इस पर त्राहिमाम् ही करेगी।
(देश मंथन, 30 अगस्त 2016)