करोड़ टके का सवाल : कंगारूओं से धोनी एंड कंपनी पार पा सकेगी?

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

बताने की जरूरत नहीं कि रविवार को मेजबान भारत और आस्ट्रेलिया के बीच मोहाली में होने वाला ग्रुप बी का अंतिम लीग मैच, ‘जो जीते सो मीर’ यानी टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज से दो-दो हाथ करने के लिए टिकट पाने का होगा। एक कठोर सच यह भी है कि धोनी की सेना के लिए मुकाबला किसी तेजाबी परीक्षण से कम नहीं। 

अति आत्मविश्वास के मारे मेजबानों का पहली ही भिड़ंत में स्पिन के ही हथियार से न्यूजीलैंड ने ‘प्रथम ग्रासे मच्छिका पात:’ किया था, वह अब इतिहास का हिस्सा है। पाक पर अपनी दुर्जेयता बरकरार रखने वाली टीम इंडिया आज जहाँ खड़ी है, इसके लिए उसे अपने पड़ोसी बांग्लादेश का आभारी होना चाहिए जिसकी अनुभवहीनता आड़े आ गयी। वह मैच की आखिरी तीन गेंदों पर अपने तीन विकेट गँवा बैठा और दो रन न बना सकने के चलते अर्से तक सालने वाली टीस लिए कप से बाहर हो गया। अंतिम गेंद पर कप्तान धोनी का अद्भुत रन आउट टीम को संजीवनी तो जरूर दे गया परंतु करोड़ टके का एक सवाल इसी के साथ यह भी उठ खड़ा हो गया कि बीते शुक्रवार को पाकिस्तान के खिलाफ हर विभाग में फार्म के लिहाज से शिखर पर पहुँचते दिखे कंगारूओं से क्या धोनी एंड कंपनी पार पा सकेगी ?

यह सवाल उठना इसलिए लाजिमी है कि अभी तक कप में भारतीय प्रदर्शन बिखरा हुआ सा ही रहा है। निरंतरता यदि बल्ले से दिखी तो ले दे कर विराट कोहली में परंतु टाप आर्डर हमेशा नाकाम रहा। रैना और युवराज का प्रदर्शन टुकडों में ही रहा और कप्तान को अभी पूरी रौ में आना बाकी है। पिछले मुकाबले के अंतिम ओवर में महफिल लूटने वाले हार्दिक पंड्या के बल्ले से विस्फोटक अंदाज की उम्मीद जरूर बंधती है बशर्ते धोनी सही समय पर उनका इस्तेमाल करें। आशा तो नहीं कि कोई बदलाव करेंगे एकादश में धोनी पर यदि वह रहाणे को धवन के स्थान पर शामिल करें तो शायद शीर्ष क्रम जन्मपत्री को ठोकर मार कर निखर उठे। रोहित पर किसका हाथ है, पता नहीं मगर यह जरूर कहा जाएगा कि आठ वर्षों बाद भी टेस्ट में स्थापित होने से नाकाम सचिन से प्रशंसित यह मुंबई कर अपनी गलतियों से सबक सीखता नजर नहीं आता। वही घटिया शाट चयन उनको व टीम को मायूस करता चला आ रहा है। देखना है कि इस अहम मुकाबले में वह बल्ले को कितना अंकुश में रख पाते हैं?

जिस गेंदबाजी ने आस्ट्रेलिया को उसी की माँद में तीन शून्य से धोने में निर्णायक भूमिका निभायी थी, वह यहाँ भी कसौटी पर अभी तक खरी उतरती रही है। बस कप्तान अपने पार्ट टाइम स्पिनर्स का समय पर चतुराई के साथ इस्तेमाल करें तो भारतीय आक्रमण के पैनेपन में और भी इजाफा हो सकता है। पिछले मैच के दौरान फील्डिंग और गेंदबाजी दोनों में दबाव में दिखे बुमराह जरूर बालक से पुरुष हुए होंगे। जैसा पलटवार उन्होंने डेथ ओवरों में किया था उससे साफ लगा कि उन्हें संघर्षपूर्ण वापसी करनी आती है। 

जहाँ तक आस्ट्रेलिया का सवाल है तो निस्संदेह उसकी बल्लेबाजी पूरे रंग में दिखी। क्रम बदल जाने से वार्नर जरूर कुछ परेशान नजर आ रहे है। मगर कप्तान स्मिथ रहे हों या वाटसन, मैक्सवेल अथवा फिंच, इन सभी के विकेट निकालने के लिए खासी मेहनत करनी होगी। यही नहीं बल्लेबाजी सनसनी उस्मान ख्वाजा ने टाप आर्डर में ब्रैडमन सरीखे स्थायित्व से भारतीय खेमे को संदेश भेज दिया है।

ठीक है कि कंगारूओं के पास रफ्तार के फनकार जोनाथन स्टार्क और मिशेल जानसन भले ही न हो। पर यह तो मानना ही होगा कि वर्तमान परिस्थितियों में उनकी गेंदबाजी सटीक तो है ही। नील कोर्टियर, हैजलवुड के साथ वाटसन की तिकड़ी कहीं से भी कमतर नहीं। फिर कलाई के लेग स्पिनर एडम जुम्पा ने भी अपने चयन का औचित्य सिद्ध कर दिया है विश्व कप में और पिछले मैच में पाँच विकट चटकाने का करिश्मा करने वाले हरफनमौला फाकनर को, जो गेंद के पेस में विविधता का रंग भरने में महारत प्राप्त हैं, डेथ ओवरों का शहंशाह यूँ ही नहीं कहे जाते।

कुल मिला कर रविवार को रनों से भरी पंजाब क्रिकेट संघ मैदान की पिच पर एक ऐसा मुकाबला होने जा रहा हैं जो आपकी साँसें अटका सकता है। बराबरी की टक्कर में जीत उसी की चेरी बनेगी जो मिले मौकों को झपटेगा। टास की भूमिका से भी इनकार नहीं। मेजबान टीम की हिली हुई बल्लेबाजी देखते हुए यदि सिक्का पक्ष में गिरता है तो बल्लेबाजी मुफीद रहेगी। जेहन में 2015 विश्वकप सेमीफाइनल को भी याद रखे धोनी।

(देश मंथन, 27 मार्च 2016)

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