जो कभी भारतीय क्रिकेट बोर्ड के हमसफर थे, जहर लगते हैं

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

जब भारतीय टीम दंगा-फसाद में अदर हो गयी थी

तब किसी को भी कानों-कान खबर हुई थी क्या !!!

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को पैसे ने किस कदर मदान्ध कर दिया है कि जो मीडिया कभी उसका हम सफर हुआ करता था, वही अब जहर जैसा लगने लगा है। कारण जानना आसान है।

बोर्ड में चूँकि पारदर्शिता नहीं के बराबर रह गयी है और उसके निवर्तमान सदर ने हाल के बरसों में अपने धतकरमों से बोर्ड को इंडिया सीमेंट की एक ब्रांच जैसी बना कर रख छोड़ दिया था। इस शख्स के कार्यकाल में हमेशा यही कोशिश की गयी कि टीम से मीडिया को काट कर रखा जाये। एक भ्रष्ट उद्योगपति, जिसको यदि कोई ऊपर से ‘खेल’ न हुआ तो आंध्र में चल रहे केस में जल्दी जेल की सैर करनी है, असल में क्रिकेट में कुछ बनाने आया था, खेल का भला करने नहीं। वह इस महान खेल की विरासत के बारे में, जो उसके पूर्ववर्ती छोड़ गये थे, एकदम अनपढ़ था, तभी तो वह मीडिया को कभी पास फटकने तक नहीं देता था। उसे क्या पता कि एक्सक्लूसिव पाने की गला काट होड़ के बावजूद मीडिया को आज भी अपनी जिम्मेदारियों का भान है। आप उनको विश्वास में लेकर तो देखते, मगर नहीं, आज मीडियाकर्मी रोते हैं अपने करम को कि खिलाड़ी से मिलना तो दूर होटल की लाबी में भी घुसने की उन्हें इजाजत नहीं हैं। उन पुरनिये दिग्गजों से, जो आज कमेंट्री करते दिखते हैं, पूछ कर तो देखिए तो वे बतायेंगे कि मीडिया और टीम एक हुआ करते थे। न जाने कितनी घटनाएँ, हादसे हुये कि सार्वजनिक होते तो आग लग जाती, मीडिया घोल के पी गया। कुछ भी बाहर नहीं आया। ऐसी ही घटना का जिक्र करने जा रहा हूँ 

वह बड़ा खुलासा यह है कि 1982-83 की सीरीज के दौरान मेहमान भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ी किस तरह से अपने एक नशे में टुन्न साथी की बेहूदा हरकतों के चलते पुलिस के शिकंजे में फंसे और कैसे उनको मुक्ति मिल सकी? लेकिन किसी को इतने बड़े कांड की भनक तक नहीं लगने दी थी मीडिया ने।

लाहौर की वह एक सर्द रात थी… टेस्ट मैच प्रगति पर था…. खिलाड़ी पीने

को बेताब… और माहौल जियाउल हक के चलते तालिबानी… मुल्क के सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने न सिर्फ जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटका दिया था, बल्कि देश में पनपी जम्हूरियत की कली को भी मसल कर रख दिया था… ऐसे हालातों में शराब पीकर पकड़े जाने पर अंग विशेष पर 100 कोड़े तो तत्काल नकद रसीद किये जाते थे और बाकी की सजा अलग से थी ही। इस माहौल में एशियाई ब्रैडमैन जहीर अब्बास को जर्रानवाजी सूझी। दोनों टीमों के अपने खासमखास खिलाड़ियों को उन्होंने लाहौर की सबसे पाश मगर सबसे पुरानी रिहायशी कालोनी गुलबर्ग में रहने वाले अपने एक नजदीकी रिश्तेदार के घर दारू

की दावत रखी। जहीर साहब जिगर मुरादाबादी से शायद वाकिफ नहीं थे, न ही उन्होंने कभी जिगर को पढ़ा ही होगा…. उस जिगर ने लिखा था… “जो जरा सी पी के बहक गया, उसे मैकदे से निकाल दो, ये कमजर्फ का काम नहीं ये अहले जर्फ का काम है। “उस महफिल-ए-मैच में मोहसिन खान भी थे। कौन मोहसिन…? जिनके बारे में एक खास बात आम रही कि `चरित्र’ उनकी गंजी थी और जिसे वो रोज बदलते थे। पाकिस्तान के सलामी बल्लेबाज मोहसिन महज तीन पैग चढ़ाने के बाद ही स्लाग ओवरों में चले गये… वे भूल गये कि मुफ्त में पी रहे शराब, माँ बदौलत जहीर के… तो कम से कम उनके रिश्तेदार की लड़कियाँ टीशू

पेपर नहीं हैं कि कहीं हाथ पोंछे कहीं, मुह पोंछे…. लेकिन यही हुआ… लाख समझाया… नहीं माने तो फिर भारत-पाक की संयुक्त टीम पर माइक टायसन-होलीफील्ड सवार हो गये… और फिर शुरू हो गया दे दनादन… शराब की बोतलें और गिलास रॉकेट सरीखे चलते हुए शीशे तोड़कर बालकनी के पार नीचे गिरने लगे तो कालोनी की बंद बत्तियाँ भी खटाखट फिर से रौशन हो गयीं… शरीफों के मोहल्ले में ये कौन नामाकूल हैं…? इसे जानने की कोशिश में लोगों ने पुलिस को इत्तला कर दी। `आयो लाल’ शैली में पुलिस आयी और झूले लाल शैली में लोगों को टांग कर ले गयी थाने। क्रिकेट इतिहास में ये पहला मौका था जब दोनों टीमों के खिलाड़ियों को हवालात की सैर करनी पड़ी। इसके बाद देर रात तक कई अंकों में नाटक चला।

चूँकि मामला भारत-पाक के खिलाड़ियों का था सो हर कोई सकते में आ गया था। यह खबर सार्वजनिक होने पर क्या होता, इसकी सोच ही सिहरन पैदा कर देती है। भला हो महान पूर्व पाकिस्तानी तेज गेंदबाज फजल महमूद साहब का जो उन दिनों लाहौर के आइजी थे और चार-पाँच साल पहले हम भारतीय पत्रकारों को भी ऐसी ही एक जलालत से बचा चुके थे, फजल भाई एक बार फिर काम आये और खिलाड़ी बेआबरू होने से बाल-बाल बच गये… सुबह हम में से किसी ने मैदान पर सूजे और सूखे चेहरे के साथ सीढ़ियाँ उतर रहे मोहसिन को सुनाते हुये फब्ती कसी… ‘ उँगलियाँ उठेंगी सूखे हुए गालों की तरफ, एक नजर देखेंगे गुजरे हुये सालों की तरफ, लोग जालिम हैं, हर एक बात का ताना देंगे… बेचारे मोहसिन ने `धत’ कह कर निकल जाना ही बेहतर समझा। ये वही जनाब मोहसिन हैं जिन्होंने कुछ सालों बाद ही पहले रीना राय की चांदी की थाली में खाया और फिर उसी में छेद कर चलते बने। इलाहाबादी रीना कैबरे के रास्तों से निकल कर कई गलियों के मोड़ तय करते हुये बालीवुड पहुँचीं थीं। एक बिहारी बाबू अभिनेता से प्रेम की कचरकूट में कुछ वर्षों तक सोमनाथ का मंदिर बनीं और फिर मोहसिन के हत्थे चढ़ गयीं। वही मोहसिन अब पाक क्रिकेट बोर्ड के प्रबंधन में शामिल हैं। 

इस घटना के चंद महीनों बाद भारत दौरे पर आयी वेस्टइंडीज टीम के साथ कानपुर में खेले जा रहे पहले टेस्ट के विश्राम दिवस पर होटल में यह प्रसंग छिड़ने के दौरान दिलीप वेंगसरकर ने बड़ी मजेदार बात बतायी। उन्होंने बताया कि पुलिस ने हम सभी को छोड़ तो दिया मगर जितनी भी शराब की बोतलें थी, वो सब पुलिस वालों ने आपस में बांट ली।

(देश मंथन, 09 अप्रैल 2015)

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