प्रेम प्रकाश :
यह तो सारी दुनिया जानती है कि महामना मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, पर यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि महामना के सपनों का एक और संकल्प था, जो तबके भारत मे क्रान्ति का वाहक बना और आज घुट-घुट के साँसें ले रहा है। 136 साल पहले महामना ने बनारस में काशी गोशाला की स्थापना भी की थी, जो आठ गोशालाओं का एक पूरा संकुल था।
वाराणसी शहर के चारों तरफ स्थित इन आठों जगहों पर अलग-अलग तरह से गोवंश का पालन, पोषण और संरक्षण होता रहा है। कहीं दुधारू गायों को एक साथ तो कहीं गर्भाधान के लिए तैयार हो रही गायों को एक साथ, कहीं बीमार गायों को एक साथ तो कहीं उम्र पूरी कर चुकी गायों को एक साथ रख कर पूरे चिकित्सकीय देख-रेख मे संगठित गोसेवा की परंपरा महामना ने काशी मे शुरू की थी। इन आठों स्थानों पर गोशाला और गोचर समेत जरूरी खेतीबाड़ी के लिए जमीन भी उन्होंने माँग-माँग कर जुटायी थीं। इनमे उस समय के तत्कालीन काशी नरेश और शेष समाज, खासकर ग्रामीण समाज की दान की गयी जमीनें शामिल हैं। बीएचयू के अस्तित्व मे आने के बाद आज से लगभग 90-100 साल पहले की उस क्रांतिकारी सोच को सलाम करने को जी चाहता है, जब महामना ने विश्वविद्यालय परिसर के अंदर मिल्क बूथों की कल्पना की थी और जगह-जगह, मोड़ों और नुक्कड़ों पर सबके लिये गाय का दूध उपलब्ध करवाया था। वृहत्तर समाज के सहयोग से खड़ी हुई इस गोशाला के अलग-अलग प्रकल्पों की स्थापना और संचालन में हिन्दू ही नहीं, मुस्लिम समाज ने भी बढ़-चढ़ कर अपना सहयोग और अंशदान दिया था।
आज इस गोशाला मे लगभग 1200 गोवंश का संरक्षण हो रहा है। गोवंश केवल देशी नस्लों का है, इनमें विदेशी गोवंश एक भी नहीं है। इस ऐतिहासिक गोशाला की एक शाखा मुंशी प्रेमचंद के गाँव लमही के पास स्थित है। इसे बावनबीघा के नाम से जानते हैं। यहाँ आज भी देशी नस्ल की लाल सिंधी गायों का रखरखाव होता है। इस शाखा के पास लगभग 110 बीघा जमीन है,जिसमें गोवंश के लिये चारा आदि की खेती होती है। कुछ हिस्से पर अगल-बगल के गाँवों के वाशिंदे भी खेती करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस गोशाला की 28 बीघा जमीन का अधिग्रहण जबर्दस्ती कर लिया है और वहाँ सीवेज प्लांट का निर्माण करा रही है। लगभग 14 बीघे जमीन सड़क आदि और अन्य नाजायज कब्जों मे चली गयी है। इस मामले को लेकर गोशाला और प्रदेश सरकार आमने सामने खड़े हैं। गोशाला पर मुकदमों का अंबार लगा है। और महामना की विरासत, उनकी जुटायी हुई जमीनें अब विनाशधर्मी विकास के काम आ रही हैं। ये पूरा मामला केंद्र सरकार के सामने भी रखा गया है लेकिन गाय, गंगा और गीता के स्वघोषित पहरुये कान में रुई लगा कर बैठ गये हैं। कल (19-11-2015) हमारी मुलाकात भाजपा के कर्नाटक से राज्यसभा सांसद वसवराज पाटिल से हुई। मैंने उनसे पूछा कि यह दृश्य आपसे कैसे देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार ही आप लोगों ने चुनी है। इसमें कुछ नहीं हो सकता। सभी भूमि सरकार की है। मैंने पूछा- क्या बीजेपी सरकार आएगी तो ये जमीन गोशाला को वापस मिल जाएगी…? वे बोले- ना…! मैंने पूछा केंद्र सरकार तो गाय की ठेकेदार सरकार है, आप लोगों के हस्तक्षेप से भी नहीं….? बोले- नहीं भाई, अपने भुजबल से बचाये अपनी जमीन।
मेरी समझ कहती है कि देश की एक ऐतिहासिक विरासत खतरे में है और देश की हो या प्रदेश की, सरकारों की असलियत सबके सामने है। विकास की नीतियाँ फाइव स्टार होटलों के लक्जरी कमरों मे मिल बैठ कर बनायी जाती हैं, करोड़ों रुपये के नाश्ते खाने और कागज बर्बाद किये जाते हैं और सीवरेज प्लांट जैसे निर्माणों के पीछे कोई सार्थक और दूरंदेश पॉलिसी नहीं दिखायी पड़ती। आबादी के बीच बनाया जा रहा यह सीवेज प्लांट जो गाय की कीमत पर बन रहा है, आगे उसकी और बड़ी कीमतें भी चुकानी पड़ेंगी। एक बात और कल गोपाष्टमी का पर्व था, कितने हिंदुओं को पता है।
(देश मंथन, 20 नवंबर 2015)