पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
मैं काशी विश्वनाथ मंदिर से बमुश्किल पचास मीटर की दूरी पर रहता हूँ, लाहौरी टोला मोहल्ले में। मेरे पैतृक आवास के बाँयीं ओर पचास मीटर की दूरी पर स्थित है ललिता घाट उसके बाएँ है महा श्मशान मणिकर्णिका और दाएँ है मीर घाट और ये तीनों ही गंगा घाट विश्वनाथ मंदिर से जुड़े हुए हैं, जिनमें ललिता घाट से तो सीधा और निकटतम रास्ता है बाबा के स्वर्ण मंदिर तक पहुँचने का।
इन दिनों इस रास्ते पर बाहर से आए दर्शनार्थियों का सुबह से रात तक रेला लगा रहता है। कारण स्पष्ट है कि नगर में जाम से बचने के लिए बाहर से आने वाले वाहन राजघाट पर डेरा डालते हैं। वहाँ श्रद्धालु स्नान के बाद नौका से सीधे ललिता घाट आते हैं। बाबा का दर्शन पूजन करने के बाद वे उसी रास्ते से वापस राजघाट लौट जाते हैं।
यह बताने की जरूरत नहीं कि अयोध्या, मथुरा के साथ ही काशी और उसका विश्वनाथ मंदिर आतंकियों के निशाने पर है। इनकी सुरक्षा पर जनता की गाढी कमाई के हर वर्ष हजारों करोड़ खर्च हो रहे हैं। मंदिर की सुरक्षा के नाम पर पुलिस, पीएसी और अर्धसैनिक बल के सैकड़ों जवान तैनात हैं। पर हालिया दौर में जिहाद के नाम पर गैर मुस्लिम उपासना गृहों को जिस तरह से क्षत-विक्षत किया गया और अब भी किया जा रहा है उसका कोई पुरसा हाल नहीं।
गंभीर सवाल उठ खड़ा हुआ है आतंकी हमलों में आए तरीकों में बदलाव को लेकर। आज जो हमले हो रहे हैं उन्हें ‘वोल्फ अटैक’ कहा जाता है और जिसमें एक शख्स 71 कुंवारी हूर से मिलने की लालसा में शरीर पर विस्फोटक बांध कर हमला करता है और खुद को उड़ा देता है। हमने देखा कि किस तरह से एक आतंकी ने खुद को बगदादी का समर्थक बता कर फ्लोरिडा के एक समलैंगिक क्लब में पचास लोगों की हत्या कर दी। वह खुद भी मारा गया मगर मानवता को शर्मसार करने के बाद।
इस तरह के हमलों के मद्देनजर अब सुरक्षा तंत्र में व्यापक बदलाव की सख्त जरूरत आन पड़ी है। इसी परिप्रेक्ष्य में मैं विश्वनाथ मंदिर को लेता हूँ। मान लीजिए कि एक आतंकी ललिता घाट नाव से पहुँचता है और फिर बिना किसी सुरक्षा जाँच के वह पैदल सरस्वती फाटक जा सकता है। वहाँ वह बैग से हथियार निकाल कर एकमात्र बैरिकेड पर मौजूद यूपी पुलिस के जवानों पर हमला करते हुए 20 सेकेंड में मंदिर के द्वार पर पहुँच कर खुद को आज की तारीख में आसानी से उड़ाने में कामयाब हो सकता है। ऐसे में धरी रह जाएगी सुरक्षा।
लाहौरी टोला, नीलकंठ, मीर घाट और मानमंदिर की तिमुहानी पर जरूरत बैरिकेड और श्रद्धालुओं की जामा तलाशी की है साथ ही इन रास्तों पर सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिए और उनकी समुचित मानीटरिंग की जानी चाहिए। सुरक्षा तंत्र में इस बदलाव को लेकर जब विश्वनाथ मंदिर – ज्ञनवापी सुरक्षा के प्रभारी एडिशनल एसपी राकेशजी से बात की मैंने तो उन्होंने यह तो माना कि सुरक्षा में ये झोल हैं परंतु साथ में वह खुद को इसलिए असहाय पाते हैं। वह कहते हैं, ” पहली बात तो यह कि घाट उनकी सुरक्षा सीमा से बाहर हैं। दूसरे, हमारे पास फोर्स की कमी है बल्कि पहले की तुलना में भी कटौती हो चुकी है।” वैसे वह यह दावा करते हैं कि मंदिर के रेड जोन में आतंकी को मार गिराने के समुचित प्रबंध हैं मगर यह दावा है। व्यवहार में वह एक दिन इसी रास्ते पर माक ड्रिल करके देखें, तो वास्तविक खतरे का उनको भान होगा और यह भी कि वह आतंकी तो खुद भी मरना चाहता है लेकिन सोचिए कि इस मानव बम के मरने से कितनी बड़ी तबाही हो सकती है। मेरे साथ यहाँ फेसबुक पर न जाने कितने आईपीएस, आईएएस अफसरों के अलावा तमाम पुलिस और अर्धसैनिक बल के अधिकारी जुड़े हैं। मेरी उनसे विनती है कि वे आगे आएँ और कैसे ऐसे ‘भेड़िया हमले’ का सही प्रतिकार हो, पर अपनी बेबाक राय दें।
राकेश भाई ने पिछली शिवरात्रि को वीआईपी दर्शन पर रोक लगाने का स्तुत्य प्रयास जरूर किया पर ये अहंकारी लोग रोक को अपना अपमान समझते हैं। बेचारे भूल जाते हैं कि वे मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं, वहाँ विराजमान देवी देवताओं को दर्शन देने नहीं। सावन बाबा का महीना होता है देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु विश्वनाथ का जलाभिषेक करने काशी आते हैं। मंत्री, राजनेता , अधिकारी क्या स्नान या पर्व पर सामान्य भक्त की तरह लाइन में लग कर दर्शन नहीं कर सकते।? फिलहाल यह यक्ष प्रश्न है। मीडिया हाइप के लोभ में वे ऐसे समय जाना ज्यादा पसंद करते हैं, भले ही उनके चलते सुरक्षा व्यवस्था चरमराये।
कुल मिला कर यही कहना है मेरा कि मंदिर और उसके आसपास का आज की जरूरत के मुताबिक सुरक्षा तंत्र विकसित कीजिए अन्यथा आरलैंडो जैसे निर्मम हमले और किसी भयानक आतंकी विध्वंस के लिए तैयार रहिए।
(देश मंथन, 15 जून 2016)