‘विराट’ पारी से अंतिम मुकाबला फाइनल हो गया

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

वाकई बहुत अच्छा टास जीता धोनी ने और इसी के साथ सिरीज 2-2 की बराबरी पर आकर जीवंत हो उठी अगले रविवार को मुंबई में फाइनल लड़ंत के लिए। खेल का एक घंटे पहले आरंभ होना, ओस की लगभग नगण्य भूमिका, शाम को दूधिया प्रकाश के बीच सीम, स्विंग, स्पिन और दोहरी उछाल, टारगेट का पीछा करने वाली टीम के लिए कहीं से भी मुफीद कंडीशन नहीं कही जा सकती थी।

दो राय नहीं कि डिवीलियर्स ने सिरीज में दूसरे शतकीय प्रहार से एक बार फिर स्वयँ पर संप्रति विश्व के महानतम बल्लेबाजों में एक का लगा अपना ठप्पा बरकरार रखा और दिखाया कि बल्लेबाज यदि संपूर्ण है तो पिच और परिस्थितियाँ उसके लिए बहुत ज्यादा मायने नहीं रखतीं। लेकिन आपको दूसरे छोर पर साथी भी चाहिए जो नहीं मिला और इक्कीस पड़ गया विराट कोहली का अर्से बाद वही पुरानी प्रचंडता के साथ लगाया गया शतक जिसके फलस्वरूप मेहमान द. अफ्रीका के सम्मुख तीन सौ का टारगेट कुछ ज्यादा ही भारी साबित हो गया।

इस मुकाबले को याद किया जाएगा कोहली की 138 रनों की जबरदस्त पारी के लिए भी जिसमें अर्से बाद उन्होंने शुरुआती हिचक से उबर कर लय पायी और क्या पेस और क्या स्पिन दोनों पर अपना निर्विवाद वर्चस्व कायम किया। ए भाई, जब आप सिक्स के साथ शतक पूरा करते हो तो बात समझ में आती है बल्लेबाज के हिमालय सरीखे आत्मविश्वास की। विकेट के दोनों ओर लगाए गये विराट के वही विराट स्ट्रोक्स थे, जिनको देखने कभी दर्शक सचिन के लिए मैदान भरा करते थे। अपनी ट्रेड मार्क स्ट्रेट ड्राइव का भी पूरी शिद्दत से उन्होंने मुजाहिरा किया। हालाँकि यह भी मानना होगा कि रहाणे और सिरीज में पहली बार फार्म में दिखे रैना, दोनों ने अर्धशतकों से कोहली का साथ निभाया और रन गति को छह के आसपास बनाए रखा था। इसके बावजूद मेजबान अंतिम दस ओवरों में 69 का ही इजाफा कर सके और 20-25 रन पीछे रह गये। तीन सौ बीस का स्कोर बनता था।

धोनी को समय की पहचान शायद हो चुकी है और यह भी कि मनमानी का वक्त नहीं रहा। यही कारण है कि उन्होंने बल्लेबाजी क्रम वही रखा जिसकी दरकार थी। चौथे पर रहाणे, पाँचवें पर रैना और खुद चिरपरिचित छठे क्रम पर उतरे। हालाँकि वह चल नहीं पाये और लोवर बल्लेबाजी क्रम हत्थे से उखड़ भी गया, लेकिन ढलती शाम के बीच यही हश्र तो मेहमानों का भी होना था।

हरभजन को पुरानी रंगत में लौटता देखना भी आँखों को भला लगा। इधर यही कहा जा रहा था कि भज्जी गेंद को हवा में तेजी से छोड़ रहे हैं, जिससे वह सपाट गेंदबाज हो गये। परंतु चेन्नई के चेपक मैदान पर उन्होंने वह सब कुछ दिखाया जिसकी उनसे उम्मीद की जा रही थी। मसलन, गेंद को हवा देना और उससे बना लूप बल्लेबाजों के लिए परेशानी का सबब साबित हुआ। मोहित ने बोहनी जरूर करायी पर यह भज्जी ही थे कि एक के बाद एक दो सफलताओं से उन्होंने मेहमानों को दबाव में ला दिया और उनके 88 पर चार विकेट गिर जाने के बाद भारत मुकाबले को लगभग अपनी मुठ्ठी में कर चुका था। एक बार पटेल फिर सबसे किफायती रहे तो अमित भी कसौटी पर खरे उतरे।

दो राय नहीं कि भुवनेश्वर ने नौं गेंदों में डीविलियर्स सहित डेथ ओवरों के दौरान तीन विकेट लेकर द. अफ्रीकियों का संघर्ष नाकाम जरूर किया मगर नयी गेंद पर वह अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं, यह भी बेहिचक स्वीकार करना होगा। शार्ट गेंदों से स्विंग नहीं मिलने वाली। 

कुल मिला कर अंतिम मुकाबला फाइनल सा हो गया है। वानखड़े में भी यही दुआ करे भारतीय टीम प्रबंधन कि सिक्का उसका साथ दे और पहली बार सिरीज में जो लगभग त्रुटिहीन प्रदर्शन टीम ने चेन्नई में किया उसकी एक और पुनरावृति हो।

(देश मंथन, 23 अक्तूबर 2015)

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