गोश्त

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

आज जो कहानी मैं लिख रहा हूँ, वो मुझे नहीं लिखनी थी। आज मेरे मन में था कि मैं उस राजा की कहानी आपको सुनाऊँगा, जिसने एक दिन मुनादी पिटवा कर अपना सब कुछ लुटा दिया था।

मैं यही कहानी लिखना चाहता था। मैं गाय और सुअर की कहानी नहीं लिख सकता। मैं हिंसा और घृणा की कहानी भी नहीं लिख सकता। मेरा मन रोता है, ऐसी कहानियाँ सुन कर और सुना कर।

इसलिए मैं आज फिर एकबार माफी के साथ कह रहा हूँ कि आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वो मेरी लिखी कहानी नहीं है। मुझे नहीं पता कि यह कहानी किसने सुनाई थी, लेकिन कहानी मुझे याद है। बहुत मन मार कर सुनिए वो कहानी, जो संजय सिन्हा की लिखी नहीं, सुनी कहानी है।

एक बार गिद्ध के एक बच्चे ने अपने पिता से कहा कि पापा बहुत दिन हो गये, मनुष्य का गोश्त नहीं खाया। बहुत साल पहले मेरे जन्मदिन पर तुम कहीं से मनुष्य का गोश्त लेकर आये थे, वो मुझे बहुत स्वादिष्ट लगा था। पापा एक बार कहीं से फिर वही गोश्त लेकर आओ।

पिता गिद्ध बहुत परेशान हुआ।

वो कहीं सड़क पर मरी एक गाय का माँस लेकर बेटे के पास पहुँच गया। बेटे ने माँस का स्वाद चखा और बिफर उठा। नहीं पापा, ये मनुष्य का गोश्त नहीं है। तुम मुझे बुद्धू बना रहे हो।

पिता गिद्ध सोच में पड़ गया।

अगले दिन वो आसमान में उड़ रहा था, अपनी नजर गड़ाये था कि कहीं कोई मरा हुआ मनुष्य मिल जाये। पर उसे दूर-दूर तक कुछ नजर नहीं आया। आखिर थक कर उसने सड़क के किनारे एक मरे हुए सुअर को देखा। वो उसे अपनी चोंच में उठा कर घर ले आया और अपने बेटे को उसने फिर झूठ बोल कर सुअर का माँस खिलाया कि लो बेटा बहुत मुश्किल से मिला ये मनुष्य का गोश्त।

बेटा गोश्त चखा और चीख पड़ा।

“नहीं पापा। ये वो गोश्त नहीं है, जिसे तुमने मेरे जन्मदिन पर मुझे खिलाया था। तुम झूठ बोलने लगे हो। पापा तुमने मेरी बहुत छोटी सी इच्छा नहीं पूरी की।”

परेशान गिद्ध ने उसने अपने लाडले से कहा, “बेटा आजकल मनुष्य की जिन्दगी लंबी हो गयी है, वो पहले की तुलना मे कम मरने लगे हैं। ऐसे में मैं मानव का गोश्त कहाँ से लाऊँ?”

“मैं कुछ नहीं जानता। आजतक मैंने आपसे कभी कुछ नहीं माँगा। एक छोटी सी मेरी इच्छा है। मैं एक बार मनुष्य का गोश्त खाना चाहता हूँ।”

गिद्ध बहुत परेशान हो गया। आखिर वो करे तो क्या करे?

बहुत सोचने के बाद उसने कहा कि ठीक है बेटा। कल तुम्हारे लिए मनुष्य के गोश्त का इंतजाम हो जाएगा।

बूढ़ा गिद्ध रात में अपनी चोंच में सुअर का माँस लेकर उड़ा और एक मस्जिद के बाहर गिरा आया। फिर लौट कर वो वापस आया और उसी रात गाय का माँस चोंच में दबा कर मन्दिर के बाहर गिरा आया।

अगली सुबह पूरा शहर मनुष्य के शवों से पटा पड़ा था।

गिद्ध अपने बेटे से कह रहा था बेटा, “तू मनुष्य के गोश्त के लिए तरस रहा था न! ये ले तेरे लिए महीने भर से अधिक का इंतजाम हो गया है। अब तू जितना चाहे मानव गोश्त के मजे ले।      

(देश मंथन, 07 अक्तूबर 2015)

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