मन की बात

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दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :  

मन की बात करना पारदर्शिता नहीं है। सामने वाले का जवाब देना पारदर्शिता है।

मन में तो छल भी हो सकता है। तथ्य और भ्रम भी हो सकता है। सत्य और असत्य भी। मन में तो बहुत कुछ होता है। मन की बात बार-बार करने से तो सिर्फ ये साबित होता है कि आप मनमोहन सिंह कि तरह इंट्रोवर्ट(अंतर्मुखी) नहीं हैं। पर एक्स्ट्रोवर्ट यानी ज्यादा बोलने से आप पारदर्शी नही हो जाते।

गाँधी का सबसे बड़ा गुण उनका पारदर्शी होना था। वो उद्योगपति बिरला के निजी रिश्तों से लेकर अपने घर में रह रही महिला कार्यकर्ताओं पर उठे सवाल पर भी दो टूक बोलते थे। वो सवाल से भागते बचते नहीं थे। और यही उनकी पारदर्शिता थी जिसने गाँधी को साख दी। अगर साख किसी नेता को सार्वंजिक जीवन में मिल जाये तो जन समर्थन के साथ जन विशवास भी मिलता है। लोग फिर विकल्प और विचारधारा के तौर पर नही। अपने नेता को वो फिर दिल से चाहने लगते हैं।

भक्त अगर दिल पर हाथ रखें तो उन्हें ये स्वीकार करना होगा कि मोदी अपनी तरफ से तो खूब बोलते हैं पर बहुत से पूछे गये सवालों के जवाब नही देते। इसे अंग्रेजी में मोनोलोग कहते हैं। मोनोलोग अक्सर मठाधीश या कल्ट फिगर करते हैं जो मंच पर आकर सिर्फ सन्देश देते है। वो संवाद से परहेज करते हैं या सामने वाले को इस लायक ही नहीं समझते कि उनसे कुछ वो पूछ सकें। 

घर की आया, धोबी, ड्राईवर, मालिश करने वाला और बाकी के चाकरों से भी संवाद नहीं किया जाता। उन्हें सन्देश या आदेश दिये जाते हैं। देश के जनप्रतिनिधि, पत्रकार, आलोचक, चाकर नहीं हैं।

मित्रों, जिस देश में RTI को सभी राजनीतिक दलों ने जनता का सबसे बड़ा अधिकार माना उस अधिकार की अवहेलना देश का प्रधान सेवक नहीं कर सकता है। आपको हर सवाल के जवाब देने होंगे। आपकी जवाबदेही बनती है। 56 इंच की छाती वाले तो असली मर्द होते हैं और मर्द सवालों से भागता नहीं हैं। मोदीजी आप कोई राजीव शुक्ल, कलमाड़ी, मायावती, मुलायम, लालू या सुब्रत रॉय छाप आदमी नहीं हैं। आप सवालों से मत भागिए। अगर कोई पत्रकार या कोई जन प्रतिनिधि कोई बड़ा सवाल करता है तो जवाब दीजिये। आपको ललित मोदी से लेकर अदानी या स्मृति ईरानी की डिग्री से लेकर व्यापम के मुद्दे पर अपना पक्ष, अपना विचार या अपना जवाब रखना चाहिये। जवाब देना आपका फर्ज है।

याद रखिये एक बार सत्र के दौरान कांग्रेस ने अटलजी से कहा था कि उन्होंने सत्र के चलते अयोध्या पर अहम बयान पहले मीडिया को क्यूँ दिया और बाद में सत्र में वो क्यूँ बोले।

इस पर अटलजी ने कहा कि वो देश के प्रधान मन्त्री है। अगर पत्रकार उन्हें किसी सवाल पर संसद के बाहर घेरेंगे। तो क्या वो चोरों की तरह उनसे नजरें चुरा कर भाग जाये। क्या इस देश का प्रधान मन्त्री। किसी सवाल से डर कर होंठ सिल ले।

मोदी जी अटलजी शायद आपके भी प्रेरणास्त्रोत हैं। इसलिए अगले हफ्ते देश को कुछ अहम सवालों के जवाब आपसे लाल किले के महामंच से सुनने हैं। जवाब दिजियेगा। अगर बेदाग हैं तो बोलिए। अगर निर्भीक और निश्छल हैं तो बोलिए और अगर रस्मो रिवाज और निजी महत्वकांक्षाओं के चलते लाल किले तक पहुँचे है तो कोई बात नहीं। गुजराल, देवगौड़ा, नरसिंह राव, वीपी, चन्द्र शेखर, मनमोहन की तरह हम आपको भी स्वीकार कर लेंगे। सिर्फ इतिहास कुछ साल बाद आपको भूल जायेगा ।

जय माँ भारती, वन्दे मातरम।जय हिन्द।

(देश मंथन, 11 अगस्त 2015)

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