पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
इस देश को जिन्होंने नोचा, खसोटा, लूटा और राज किया, वर्तमान से इस कदर बौखला उठे हैं कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें? इसमें शामिल हैं हवाला कारोबारी, तस्कर, हथियारों के दलाल, वे जिन्हें आजादी बाद रेवड़ी की मानिंद बांटे गये थे कोटा-परमिट और जिनके बल पर काला बाजारी से रातों रात धन कुबेर बन गये वे और उनके वंशज। इनके अलावा वे तथाकथित प्रगतिशील- वामपंथी जिन्होंने समाजवादी विचारधारा के नाम पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक मलाई खायी। वे समाज में आसानी से बुद्धिजीवी का खुद पर ठप्पा लगाने में सफल हो गये। इसी विचारधारा के लोगों में पनपे साहित्यकारों, कलाकारों, कला प्रेमियों और इतिहासकारों की गणेश परिक्रमा ने उन्हें महिमा मंडित किया।
आधी सदी तक देश पर अखंड राज करने वाला राजनीतिक दल, जो तेजी से सिमटता जा रहा है संसद से पंचायत तक, उसके शिविर में खलबली मची हुई है। वह खौफजदा है भयाक्रांत है अपने अंधकारमय भविष्य की आशंका से। उसे इस बात का अच्छी तरह से भान है कि केंद्र सरकार को गिराया नहीं सकता। वह बैसाखियों पर नहीं टिकी कि ‘ कांस्टेबल जासूसी कर रहा है’ का आरोप लगा कर लोकसभा भंग कर दी जाए।
यही कारण है कि चांडाल चौकड़ी ने एक भयानक षड़यंत्र रचा। इसके तहत एक ऐसा माहौल बनाने का कुचक्र गढ़ा गया मानो देश में चतुर्दिक अराजकता फैल गयी हो। साम्प्रदायिकता सिर चढ़ कर बोल रही है, कट्टरवादी हिन्दू शक्तियाँ सिर उठा रही हैं। देश आतंकित है। इस सर्वथा नकली परिदृश्य के तहत शुरुआत करायी गयी तथाकथित साहित्यकारों से साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटेने के सिलसिले के साथ। फिर फिल्म – रंगमंच से जुड़े कलाकारों को विरोध में सामने लाया गया। कई ने पद्म पुरस्कार भी लौटाये।
भारतीय इतिहास बदलने वाले लौटा रहे पुरस्कार : अब बारी आ गयी इरफान हबीब और रोमिला थापर जैसे पूर्वाग्रहों से ग्रसित इतिहासकारों की जिन्होंने जमाने भर मौज करते हुए देश के नकली इतिहास को मान्यता दिलायी। आर्यों को विदेशी ठहराने की नापाक कोशिशों में वे कामयाब भी हुए। पाँच हजार साल पहले विलुप्त हुई सिंधु घाटी, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की सभ्यताओं का किस कदर विद्रूप चित्रण किया गया, बताने की जरूरत नहीं।
जहाँ तक सम्मान और अलंकरणों का प्रश्न है तो जिस शोभा सिंह (लेखक पत्रकार खुशवंत सिंह के पिता ) ने शहीद भगत सिंह और साथियों के खिलाफ गवाही दी थी, उन्हें अंग्रेजों ने नयी दिल्ली बसाने का ठेका दिया और स्वाधीनता के लिए हंसते-हंसते फाँसी के फंदे पर झूलने वाले शहीदों को आज भी आतंकियो की श्रेणी में रखने वाली सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी ने देश के शोभा सिंह और डीएलएफ के सिंह परिवार सरीखे गद्दारों को पद्म पुरस्कारों से नवाजा।
यह देश सनातनधर्मी है। मायने सुमार्ग पर चलना। सभी के प्रति दया, शब्दकोश में घृणा शब्द ही नहीं होना एक सनातनधर्मी की असली पहचान होती है। उसके प्रकृति प्रेम (33 करोड़ देवता यानी इस सृष्टि में जो कुछ भी है वंदनीय है) को दूसरी नजर से देखने और उन्हें पोंगापंथी करार देने वाले बेचारे नहीं अपराधी हैं। उन्हें शायद इस तथ्य का भान नहीं कि भारत एक प्राचीन सभ्यता है। जब शेष दुनिया अधिकांशत: पत्थर युग में थी और कंदराओं- गुफाओं में रहा करती थी तब यह देश सभ्यता के शिखर पर था। अपनी पाकिस्तान यात्राओं के दौरान मैंने आँखें विसमय से चौड़ी करते हुए जब तछशिला विश्वविद्यालय के अवशेषों को देखा। आप कल्पना कर सकते हैं कि पच्चीस सौ साल पहले वहाँ मेडिकल कालेज में हजारों की संख्या में विद्यार्थी छात्रावासों में निवास करते थे! आपरेशन थियेटर था। दुनिया के पहले सर्जन सुश्रुत ही वहाँ शल्य क्रिया से मरीजों का इलाज किया करते थे। हबीब से पूछे कोई कि भाई साहब क्या आपको यह दिखायी नहीं दिया कि पेशावर क्यों पुष्पपुर था और मुल्तान को मूलस्थान क्यों कहा गया? यही नहीं श्रीलंका कोई जाए तभी वह इस चौकने वाली सच्चाई से रूबरू होता है कि उसका अपना कोई इतिहास नहीं, भारत के साथ साझा इतिहास है। उनका इतिहास यह बताता है कि उत्तर भारत की एक रियासत के राजकुमार विजय सिंह को पिता ने देश निकाला दे दिया था और वह कुछ सौ साथियों के साथ धनुषकोटि से समुद्र पार कर अनुराधा पुर पहुँचा और वहाँ के तत्कालीन शासक को परास्त कर वहाँ का शासक हो गया। मगर श्रीलंकाई उस इतिहास को भगवान राम के साथ नहीं जोड़ते। वह तो महज 2500 बरस पहले ही विजय सिंह का आगमन बताते हैं।
हमारा समग्र इतिहास ही गलत धारणाओं पर लिखवाया गया। जो इतिहासकार इस समय विरोध में आये हैं, वे सरस्वती नदी के अस्तित्व से ही इनकार करते रहे हैं। वे भारत – श्रीलंका को जोड़ने वाले रामसेतु को तोड़ कर नया समुद्री रास्ता बनाने की कोर्ट में दलील रखते हैं। ऐसी मानसिकता वाले एक खास वर्ग के लोग हमें कूपमंडूक और उन्हें सच्चा धार्मिक करार देते हैं, उनकी परेशानी का आलम यही है कि उनकी बंद हो रही दुकानें कभी नहीं खुलने वाली। वे जान चुके हैं कि जब नये सिरे से इतिहास लिखा जाएगा तब उनके लिए दुनिया में मुँह छिपाने की कोई ठौर नहीं मिलने वाली।
पता लगाइए कि जितने भी विरोध के स्वर उभरे हैं वे एक खास विचारधारा से जुड़े हुए लोग हैं जिनकी एक आँख है और जिस पर चश्मा चढ़ा कर वे सिर्फ एकतरफा सेक्युलरिज्म ही देखते हैं। फिर, इस तरह के विरोध की यह बाढ़ यूँ ही नहीं आयी है, यह बिहार में चुनाव के लिए सोची समझी रणनीति का अंग है। विरोधियों में अधिकांश नाम वही हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी पर तरह तरह की तोहमत लगाते हुए उनके खिलाफ अपील की थी। उन्हें और उनके आकाओं को, जो एक विशेष वंश से ताल्लुक रखते हैं, इसका पूरा आभास है कि यदि बिहार में मोदी जीते तो राज्यसभा में एनडीए बहुमत के करीब पहुँच जाएगा और फिर विकास के पहिए पर संसद के माध्यम से ब्रेक लगाने का उनका मंसूबा पूरा नहीं होगा। यही कारण है कि ‘साम-दाम-दंड-भेद’ सब कुछ आजमाया जा रहा है। लेकिन यह देश सनातनधर्मी यूँ ही नहीं है। आप जितने हथकंडे अपनाओगे, देश में उतनी तेजी से जात-पांत का भेद टूटेगा और ध्रुवीकरण की प्रकिया में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होगी। देश हित इसी में है भी।
(देश मंथन, 30 अक्तूबर 2015)