आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
जाते-जाते यूपीए सरकार ने प्रधानमंत्री के ट्विटर एकाउंट को लपेट कर ले जाने की कोशिश की, संदेश साफ था – नये वाले पीएम अपना एकाउंट नया बनायें।
मैं जिस दफ्तर में काम करता था, उस दफ्तर का शानदार लैपटाप और एयरकंडीशनर ले जाने का मन था मेरा, पर आम आदमी की ऐसी इच्छा पूरी ना हो पातीं। ऐसी इच्छाएँ पूरा करने के लिए मंत्री वगैरह के लेवल पर जाना पड़ता है।
यह जान कर बहुत अच्छा लगा कि यूपीए सरकार ने पीएमओ के ट्विटर एकाउंट को ही लपेटने की सोची, लाल किले को नहीं लपेटा। वरना जाती हुई सरकार कह देती कि लाल किले पर हमारे बंदे ने कई साल भाषण दिया है, सो वह लाल किला हमारा। नये प्रधानमंत्री उस लाल किले के मॉडल को दिल्ली लायें, जिस पर पर खड़े होकर उन्होने तमाम चुनावी रैलियों में भाषण दिये हैं। पता लगता इंडिया गेट, कुतुबमीनार, लाल किला, प्रधानमंत्री का दफ्तर भी उठ कर निकल लिया, सिर्फ महँगाई और घपले बचे नये वालों के लिए।
ना, ऐसा नहीं हुआ। वैसे लोकतंत्र में मिल-जुल कर सब निपटा लिया जाये, तो बेहतर। जाती सरकार अपना लाल किला ले जाये और नये लाल किले की अरबों की परियोजना नयी सरकार चलाये, सब मिल-जुल कर। सरकार महँगाई बढ़ाये और जनता झेल ले, यह हुआ महँगाई पर मिल-जुल कर काम करना।
देखें, लोकतंत्र में सत्ता-पक्ष और विपक्ष मिल-जुल कर काम करते हैं। राम मंदिर यूँ भाजपा का मुद्दा था, पर अब कांग्रेस का मुद्दा हो गया है। गाँधीनगर गुजरात विधानसभा में मोदी को विदाई देते वक्त कांग्रेसी नेता वाघेला ने कहा – अब तो फुल बहुमत है भाजपा का, राम मंदिर बनवा लेना। उधर भाजपा के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी की सबसे ज्यादा चिंता इन दिनों कांग्रेसी नेता कर रहे हैं – हाय मोदी ने क्या कर दिया अपने सीनियर नेताओं का।
लोकतंत्र की जय, मिल-जुल कर।
(देश मंथन, 23 मई 2014)