सुशांत झा, पत्रकार :
मुलायम सिंह ने अपने हस्तलिखित पत्र से अमर सिंह को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। मुलायम सिंह ऐसे पहलवान हैं जिनका अगला दाँव भगवान को भी मालूम नहीं होगा।
दुनिया को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वे उस बेटे से जंग लड़ रहे हैं जिसे खुद उन्होंने CM बनाया था लेकिन व्यवहार वे ऐसे फेसबुकिया की तरह कर रहे है जो हर पोस्ट में आंशिक राष्ट्रवादी और आंशिक सेक्यूलर बन कर बैलेंस दिखाना चाहता है!
गैंग ऑफ बासेपुर जिसे याद हो, उसे बंगालन याद होगी और ‘डिफनिट’ भी। कई बार लगता है नेताजी की बंगालन उन पर हावी है। कइयों को मुलायम सिंह, करुणानिधि के उत्तर भारतीय संस्करण लगते हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का दावा कर अखिलेश, त्रेता वाले राम की छवि बना रहे हैं, जिसमें कैकई उनकी विमाता साधना गुप्ता हैं। दिक्कत ये है कि राम के पक्ष में भरत और लक्ष्मण आ गये थे, यहां पर अखिलेश के भरत खुद महात्वाकांक्षी हैं।
नेताजी को मालूम है कि शिवपाल यादव की सांगठनिक क्षमता वैसी ही है जैसे कांग्रेस में सरदार पटेल की थी। अमर सिंह नेटवर्कर हैं। धन का सु-निवेश करते हैं। मीडिया साथ लाते हैं। कुल मिलाकर नेताजी, बैलेंस बनाने के चक्कर में हैं।
जानकारों का मानना हैं कि नेताजी भले बोलने में लड़खड़ाने लगे हों लेकिन उनकी हालत अभी तक वाजपेयी या जॉर्ज जैसी नहीं हुई है। (ताजा उदाहरण तो हस्तलिखित पत्र द्वारा अमर नियुक्ति ही है!) लेकिन नेताजी, ये भूल गये हैं सत्ता का चरित्र ‘केंद्रवादी’ होता है। एक हद तक उन्होंने अपने दौर में सत्ता को बाँट कर रखा था, लेकिन वैसी उदारता,संयम और मजबूरी उनके बड़े पुत्र में नहीं है।
ऐसे में शक्ति-संतुलन का मामला नेताजी के लिए वैसा ही बन गया है जैसा पाकिस्तान की बदमाशी भारत के लिए बन गयी है। युद्ध करना पूर्ण समाधान नहीं है और युद्ध न करना आत्मघाती है।
आशंका है सपा की लड़ाई अभी बढ़ेगी। हो सकता है सपा में विखंडन ही हो जाए और एक खेमा BJP से डील कर ले। आखिर राजनेता तो इसलिए मशहूर रहे हैं कि वे किसी बात पर ताज्जुब नहीं करते!
(इन पंक्तियों के लेखक ने अखिलेश यादव की जीवनी विंड्स ऑफ चेंज का हिंदी अनुवाद भी किया है)
(देश मंथन, 21 सितंबर 2016)