नृत्य-प्रधान विश्व करि राखा

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आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :   

भागवत कथा के एक आयोजन में बैठा हुआ था, कथावाचक ने म्यूजिकल ब्रेक दिया और तन-डोले, मन -डोले की धुन पर नागिन डाँस चल पड़ा। महिलाएं हाथ को ऊपर फन की मुद्रा में ले जा कर लहराने लगीं। भागवत कथा में नागिन-नृत्य चल निकला है इन दिनों। म्यूजिकल ब्रेक के बाद फिर कथा चल निकलती है। 

 

टीवी पर एक और धार्मिक आयोजन देख रहा था, उसमें भी नृत्य हो रहा था, यहाँ यद्यपि नागिन डाँस नहीं था। वहाँ शाहरुख खान की पुरानी फिल्म के गाने की धुन पर था-जरा तस्वीर से तू निकल कर सामने आ मेरी महबूबा। धुन वही थी, बोल यूँ कर दिये गये थे-जरा तस्वीर से तू निकल कर सामने आ ओ मेरे बाबा। किन्ही बाबाजी की स्तुति में नृत्य मचा हुआ था।

नृत्य-प्रधान विश्व करि रखा, जो जहाँ देखहुं, सो वहीं नाचा। जहाँ जिसे मौका मिल रहा है, वो वहीं नाचे ले रहा है। शादी में नागिन-डाँस तो संवैधानिक आवश्यकता है। मुझे मेरे कानून-विद मित्र बताते हैं कि जिस शादी में नागिन-डाँस ना हो, वह शादी अवैध ठहरायी जा सकती है। ये देश है वीर जवानों का और तन डोले पर नागिन-डाँस जिन शादियों में ना हुआ, वो शादियाँ ज्यादा लंबी नहीं चल पातीं, ऐसा मेरे समाजशास्त्री मित्र बताते हैं।

नृत्य-प्रधान विश्व करि राखा। नागिन का अवतरण बोलो इस धरती पर क्यों हुआ-जवाब-दो वजहों से। एक तो यह नागिन सीरिज की कई फिल्में बनायी जानी थीं। दूसरी वजह यह कि शादी में नागिन-डाँस की रस्म अनिवार्य थी, इसलिए नागिन होना जरुरी था। नागिन हो, उसका नृत्य देखा जा सके। उस नृत्य को याद करके नागिन-डाँस किया जा सके। हालांकि शादी में नागिन-डाँस करनेवाले काफी लोग जिस टुन्नावस्था में होते हैं, उसमें नागिन-डाँस को याद करना तो दूर, यह तक भी याद नहीं रहता है कि वो खुद कौन हैं। बैंड-तन-डोले,मन-डोले की धुन बजाता रहता है, और नागिन-डाँसर जमीन पर रगड़-घिस्सा या लोट लगाता रहता है। बेमौसम इठलायमान सड़क पर पड़े कुत्ते के करीब ज्यादा बैठता है ऐसा नागिन-डाँसर। पर नागिन-डाँसर के चाहनेवाले इसे नागिन-डाँस कहते हैं।

अगर कभी कोई नागिन इतनी समझदार हो जाये कि अपने नाम पर चलने वाले इस डाँस को देख पाये, तो शर्म में डूबकर या तो वो आत्म-हत्या करने की ओर प्रवृत्त हो जायेगी या प्रतिशोध की ज्वाला में ज्वलित होकर वो सारे नागिन -डाँसरों को एक झटके में काटकर खत्म करने का प्रण ले लेगी।

खैर साहब डाँस हो रहे है, नागिन डाँस भी हो रहे हैं। अब तो धार्मिक आयोजनों में भी हो रहे हैं। शादी से लेकर धार्मिक आयोजनों तक में नागिन डाँस मचा हुआ है। मैं नागिन डाँस का कायल हो गया हूँ। धार्मिक आयोजनों में चला लो, शादी डाँस में चला लो। ऐसे मौका-निरपेक्ष डाँस कम ही होते हैं। बड़े-बड़े शास्त्रीय डाँस हाँफ रहे हैं, अब ना आता कोई उन्हे देखने। पर नागिन डाँस हर मौके पर चले ही जा रहा है। 

लोग नाचना चाहते हैं, मौका मिलना चाहिए। मौका मिलते ही नाच मचा लेते हैं। मेरे एक नौजवान मित्र हर आयोजन में कुछ एक्सूलिवपना चाहते हैं। उसके 95 वर्षीय दादा जब दिवंगत हुए, तो उसने प्रस्ताव किया कि इस मौके को यादगार बनाने के लिए डीजे बुलाया जाया और भजन–कीर्तन-डाँस हो जाये। एक तो इधर यह मिक्स-वेजिटेबल टाइप मामला हो गया है, जागरण, कीर्तनवाले डीजे गिरी भी करते हैं। आर्केस्ट्रा, बैंड-बाजा तो एक ही होता है, धुन वही होती है। शब्दों का हेर-फेर करना होता है- सामने आ मेरी महबूबा को सामने आ मेरे बाबा-करना होता है।

भजन-कीर्तन-डाँस-यह कांबीनेशन बनता है। जो छिछोरा डीजे धार्मिक ड्रेस पहन कर धार्मिक बोल बोलने लगता है, वही छिछोरा जीन्स-टीशर्ट पहनकर एकदम इमरान हाशिमोचित हरकतें करने को उद्यत दिखता है। पब्लिक दोनों ही केस में झूमती है, बोल बदल जाते हैं, धुन तो वही रहती है। मुझे राजनीतिक संदर्भ याद आते हैं, नेता बदल जाते हैं, सरकारें उतनी ही निकम्मी रहती है।

खैर दादाजी की मौत पर डीजे के बुलऊए पर मैंने सलाह दी कि हालांकि तुम्हारे दादा बहुत छिछोरे थे, पर डीजे बुलाकर उस छिछोरेपन को स्मृति में स्थायी ना करो। मानने को तैयार ना हो रहा था नौजवान। इधर जिनके पास रकम ज्यादा आ गयी है, वह हर चीज में एक्सक्लूसिवपना चाहते है, मौत तक में भी।

मुझे डर है कि आखिर में वह मेरी ना सुने और नागिन डाँस कराके इस मौके को यादगार बना ही ले। 

(देश मंथन,  23 मार्च 2017)

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