Tuesday, September 16, 2025
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समाचार विचार

मोदी राज में कैसे टॉप कर गए दलित और मुस्लिम छात्र?

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

मीडिया से पता चला कि इस बार आइएएस टॉपर दलित है और सेकेंड टॉपर मुसलमान। इससे एक बात तो साफ है कि हमारे लोकतंत्र ने धीरे-धीरे सबको बराबरी से आगे बढ़ने के मौके मुहैया कराये हैं और अब चाहे आप किसी भी जाति-धर्म के हों, अगर आपमें दम है और लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं, तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।

अपने जातिवादी और सांप्रदायिक मित्रों से दो टूक

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

मेरे कई मित्रों की मुश्किल है कि जब मैं मोदी, बीजेपी और आरएसएस की आलोचना करता हूँ, तो वे पढ़ते नहीं या पढ़ कर इग्नोर कर देते हैं, लेकिन जब मोदी, बीजेपी, आरएसएस के विरोधियों की आलोचना करता हूँ, तो वे हमारी निष्ठा पर सवाल उठाने लगते हैं।

मार्गदर्शक बनें, रिंग मास्टर नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

हमारी बारहवीं की परीक्षा खत्म हो चुकी थी और आखिरी पेपर के बाद हम ढेर सारे बच्चे सिनेमा देखने गये थे। शाम को घर आये तो पिताजी ने कहा था कि अब तो तुम्हारी कई दिनों की छुट्टियाँ है, तुम बुआ के घर चले जाओ, वहाँ तुम्हारा मन लगेगा। 

दुख दर्द पर फोकस करें डिग्री पर नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरा नाम संजय सिन्हा है। 

मेरे पिताजी का नाम सुशील कुमार सिन्हा था। 

मेरे दादाजी का नाम कृष्ण गोविंद नारायण था। 

मृत्यु महासत्य है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

अपने 'पिता' की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए कल मैं गढ़ मुक्तेश्वर के पास ब्रज घाट गया। दिल्ली में गंगा नहीं, जमुना है। पर हमारे यहाँ मान्यता है कि मरने वाले को मुक्ति ही तब मिलती है, जब उसकी अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हैं। 

मीडिया की संलिप्तता से झुक गया सिर

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

अगस्ता वेस्टलैंड घूस कांड में नेता, नौकरशाह और सैन्य अधिकारियों के साथ मीडिया की भी संलिप्तता ने पत्रकार बिरादरी का सिर शर्म से झुका दिया। पेड न्यूज का घिनौना चेहरा खुल कर सामने आया। 

मीडियाकर्मियों का वेतन देखेंगे तो शर्म आ जाएगी सांसद महोदय

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

गरीब सांसदों को वेतन में बढ़ोतरी चाहिए। लाखों रुपये जो बतौर वेतन भत्ते मिलते हैं, वे कम हैं। राज्य सभा में सपा सांसद नरेश अग्रवाल ने बुधवार को कहा कि मीडिया ट्रायल की वजह से संसद डरती है। उन्होंने हवाला यह दिया कि संपादकों के वेतन का चौथाई भी मिल जाये, वही बहुत है।

और बुर्के पर चर्चा पूरी हुई

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

तो तय यह हुआ कि बुर्का एकदम जरूरी है। बुर्के को जरूरी मानने वाले धर्म की महिलाएँ कम पढ़ी-लिखी, कम जागरूक हैं इसलिए इसपर किसी महिला को बोलने नहीं दिया जाएगा और चर्चा करने के लिए पुरुष अपने असली रूप में मैदान में डटे रहेंगे।

बर्थडे पर खास : सर्वहारा हनुमान

सुशांत झा, पत्रकार :

आज बजरंग बली का बर्थ डे है। सभी भक्तों को बधाई और कॉमरेडों से सहानुभूति। वैसे देखा जाए तो हनुमान जी रामजी के सेवक थे, तो ऐसे में वे सर्वहारा हुए। कम्युनिस्टों को अभी तक क्लेम कर देना चाहिए था। कम से कम हनुमान भक्तों के एक विशाल तबके को वो अपनी तरफ खींच सकते थे।

मोदी की कार्य शैली का समर्थन हूँ, अंध भक्त नहीं

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के समर्थन में दलाई लामा जी का बयान जो एक मित्र ने हमारी पोस्ट के कमेंट में लगाया था। उसे मैंने अपनी वाल पर पोस्ट कर दिया। बहुमत संघ के पक्ष में था जो कमेंट्स आए पर कुछ लोगों को यह आपत्ति है कि धर्मगुरु दलाई लामा का यह बयान नहीं है और मुझे कोसा गया कि मैं अपने पत्रकारिता धर्म को भूल कर अंध भक्ति में लगा हुआ हूँ।

ऑड-ईवन की माया

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

कल मुझे वैशाली से आनंद विहार स्टेशन जाना था। कहने को आनंद विहार वैशाली से करीब है पर जाना कितना मुश्किल यह कल ही समझ में आया। मेरे टैक्सी वाले ने मना कर दिया। उसके पास ईवन (प्राइवेट) नंबर की गाड़ी (जो मैं लेता हूँ) थी ही नहीं, दूसरा विकल्प ओला टैक्सी होता है। मैं नहीं लेता। सो मैंने बेटे से कहा कि बुक करो तो उसने बताया कि ओला ने घोषित कर रखा है कि माँग औऱ पूर्ति में अंतर के कारण वह ज्यादा किराया वसूलेगा।

कुछ बातें ‘भारत माता की जय’ न बोलने वालों से !

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

देश की आजादी के सात दशक बाद वंदेमातरम् गाएँ या न गाएँ, ‘भारत माता की जय’ बोलें या न बोलें इस पर छिड़ी बहस ने हमारे राजनीतिक विमर्श की नैतिकता और समझदारी दोनों पर सवाल खड़े कर दिये हैं। आजादी के दीवानों ने जिन नारों को लगाते हुए अपना सर्वस्व निछावर किया, आज वही नारे हमारे सामने सवाल की तरह खड़े हैं। देश की आजादी के इतने वर्षों बाद छिड़ी यह निरर्थक बहस कई तरह के प्रश्न खड़े करती है। यह बात बताती है राजनीति का स्तर इन सालों में कितना गिरा है और उसे अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान से समझौता करने में भी गुरेज नहीं है। लोकतंत्र इस मामले में हमें इतना दयनीय बना देगा, यह सोच कर दुख होता है।

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