तरक्की की राह

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पता नहीं किसने, लेकिन संजय सिन्हा फेसबुक परिवार के ग्रुप में किसी ने इस कहानी को साझा किया था। कहानी किसने लिखी है, पता नहीं। पर मुझे बहुत जरूरत थी इस कहानी की।
मैंने अपने एक परिजन की बीमारी के बीच लगातार अस्पतालों के चक्कर काटते हुए तीन दिनों से प्राइवेट अस्पताल और डॉक्टरों के भ्रष्टाचार की कहानी आपको सुना रहा हूँ।
फिक्स था भारत-इंग्लैंड का मैनचेस्टर क्रिकेट टेस्ट

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
पहले से ही स्पाट फिक्सिंग के आरोपों में संदेह की नजरों से देखे जा रहे भारतीय क्रिकेट कप्तान धोनी एक बार फिर घिर गये फिक्सिंग के आरोप में। आरोप है कि 2014 में इंग्लैंड सिरीज के मैनचेस्टर टेस्ट में टास पर 'खेल' कर दिया गया था।
बहन के साथ बिना इजाजत सेल्फी लेने वाले को आप सपोर्ट करेंगे?

अभिरंजन कुमार :
डीएम चंद्रकला ने क्या गलत कहा?
सचमुच इस देश के बुद्धि-विवेक को लकवा मार गया है। अगर हमारे काबिल दोस्त और पत्रकार भूपेंद्र चौबे सन्नी लियोनी से कुछ असहज करने वाले सवाल पूछ दें, तो हम उन्हें महिला की गरिमा के बारे में ज्ञान देने लगते हैं, लेकिन एक 18 साल का लड़का, जिसे नए कानूनों के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में किसी उम्रदराज जितनी ही सजा दी जा सकती है, अगर एक महिला डीएम के साथ बिना उनकी इजाजत सेल्फी बनाने लगे, उनके रोकने पर भी न रुके, फोटो डिलीट करने के लिए कहने पर भी डिलीट न करे और हीरोगीरी दिखाये, तो हम महिलाओं की गरिमा भूल कर उसके समर्थन में उतर आते हैं।
हेल्थ बना व्यापार

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पिछले दिनों मैं सिंगापुर गया था। वहाँ मुझे एक कांफ्रेंस में शामिल होने का मौका मिला, जिसमें भारत के तमाम बिजनेसमैन आये थे।
व्यापारियों की उस बैठक में मुझे कुछ बोलना नहीं था, सिर्फ सुनना था।
कितनी गाँठों के कितने अजगर?

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
मन के अन्दर, कितनी गाँठों के कितने अजगर, कितना जहर? ताज्जुब होता है! जब एक पढ़ी-लिखी भीड़ सड़क पर मिनटों में अपना उन्मादी फैसला सुनाती है, बौरायी-पगलायी हिंसा पर उतारू हो जाती है। स्मार्ट फोन बेशर्मी से किलकते हैं, और उछल-उछल कर, लपक-लपक कर एक असहाय लड़की के कपड़ों को तार-तार किये जाने की 'फिल्म' बनायी जाने लगती है। यह बेंगलुरू की ताजा तस्वीर है, बेंगलुरू का असली चेहरा है, जो देश ने अभी-अभी देखा, आज के जमाने की भाषा में कहें तो यह बेंगलुरू की अपनी 'सेल्फी' है, 'सेल्फी विद् द डॉटर!'
जाति रे जाति, तू कहाँ से आयी?

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
भारत में जाति कहाँ से आयी? किसकी देन है? बहस बड़ी पुरानी है। और यह बहस भी बड़ी पुरानी है कि आर्य कहाँ से आये? इतिहास खोदिए, तो जवाब के बजाय विवाद मिलता है। सबके अपने-अपने इतिहास हैं, अपने-अपने तर्क और अपने-अपने साक्ष्य और अपने-अपने लक्ष्य! जैसा लक्ष्य, वैसा इतिहास। लेकिन अब मामला दिलचस्प होता जा रहा है। इतिहास के बजाय विज्ञान इन सवालों के जवाब ढूँढने में लगा है। और वह भी प्रामाणिक, साक्ष्य-सिद्ध, अकाट्य और वैज्ञानिक जवाब। हो सकता है कि अगले कुछ बरसों में ये सारे सवाल और विवाद खत्म हो जायें। वह दिन ज्यादा दूर नहीं।
सांप्रदायिकता से कौन लड़ना चाहता है?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देश भर के तमाम हिस्सों से सांप्रदायिक उफान, गुस्सा और हिंसक घटनाएँ सुनने में आ रही हैं। वह भी उस समय जब हम अपनी सुरक्षा चुनौतियों से गंभीर रूप से जूझ रहे हैं। एक ओर पठानकोट के एयरबेस पर हुए हमले के चलते अभी देश विश्वमंच पर पाकिस्तान को घेरने की कोशिशों में हैं, और उसे अवसर देने की रणनीति पर काम कर रहा है। दूसरी ओर आईएस की वैश्विक चुनौती और उसकी इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न देशों की युवा शक्ति को फाँसने और अपने साथ लेने की कवायद, जिसकी चिंता हमें भी है। मालदा से लेकर पूर्णिया तक यह गुस्सा दिखता है, और चिंता में डालता है। पश्चिम बंगाल और असम के चुनावों के चलते इस गुस्से के गहराने की उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं।
बच्चों को मिले विश्वास और भरोसा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने बताया था न कि घर की सफाई में मेरे हाथ बहुत सी पुरानी यादें लगीं।
यादों के उसी पिटारे से मैं आपके लिए कल अपनी काठमांडू यात्रा की कहानी ले कर आया था। मैंने आपको कल ही बताया था कि यादों के उन्हीं पुलिंदे में मेरे अमेरिका प्रवास के दौरान लिखे कुछ लेख हाथ लगे। इनमें से कुछ तो मैंने अमेरिका से दिल्ली फैक्स के जरिए Sanjaya Kumar Singh को भेजे थे और वो यहाँ जनसत्ता में छपे भी थे। बात अमेरिका के न्यूयार्क शहर में ट्वीन टावर पर हुए हमले के दिन की है।
मनुष्य बली नहीं होत है धोनी भैया, समय होत बलवान

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
टीम संयोजन हाहाकारी, खुद की फिनिशर की साख गयी तेल लेने, कल्पनाशीलता किस चिड़िया का नाम है, नहीं जानते, फील्ड की जमावट माशाअल्ला, गेंदबाजों पर भरोसा नहीं! ऐसे में फिर क्या खा कर जीत की सोच भी सकते थे कागज पर देश के सफलतम कप्तान महेंद्र सिंह धोनी। काल चक्र है प्रभु हमेशा ही सीधा नहीं घूमेगा कि जोगिंदर शर्मा और इशांत शर्मा जैसे पिटे गेंदबाज भी जीत दिलाते रहेंगे। समय बदल गया है रांची के राजकुमार साहब।
जोधा-अकबर पेरेंट्स – टीचर मीटिंग में

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
अभी लौटा हूँ एक पीटीएम यानी पेरेंट्स टीचर मीटिंग से।
जरा कल्पना कीजिये, शाहजादा सलीम की पीटीएम यानी पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग चल रही है। क्राफ्ट मैडम शिकायत कर रही है- जरा भी इंटरेस्ट नहीं दिखाता। क्राफ्ट क्लास में नहीं आता। कला का जरा सा भी एलीमेंट नहीं इसमें।
तलवार के साथ बुद्धि पर भी भरोसा हो

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
इन दिनों व्हाट्सएप पर एक संदेश खूब चक्कर लगा रहा है-
“उन्होंने कंधार में प्लेन हाईजैक किया, हमने ‘जमीन’ मूवी में उसे छुड़ा लिया।
कहाँ छिप गए वे सेक्युलर, मानवतावादी!

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
क्यों नहीं पुरस्कार लौटाए जा रहे? चुप्पी क्यों ?
मालदा के बाद पूर्णिया! यह हो क्या रहा है? क्या सहिष्णुता सिर्फ उस बहुसंख्यक वर्ग के लिए ही है जिसको पंद्रह मिनट में काट देने की मंच से घोषणा करने वाले शख्स के आजादी के बाद दिये गये सबसे उकसावे वाले बयान के बावजूद देश की सेहत प्रभावित हुई? क्या कहीं हिंसा की खबरें आयी? क्या कहीं कानून-व्यवस्था को परेशानी हुई? नहीं न, क्योंकि सनातन धर्मी स्वभाव से सहनशील है। उसके शब्दकोश में नफरत या घृणा शब्द ही नहीं है।