आतंकवाद से कैसे लड़ें

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई कड़े संकल्पों के कारण धीमी पड़ रही है। पंजाब के हाल के वाकये बता रहे हैं कि हम कितनी गफलत में जी रहे हैं। राजनीतिक संकल्पों और मैदानी लड़ाई में बहुत अंतर है, यह साफ दिख भी रहा है। पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के रहते हम वैसे भी शांति की उम्मीदें नहीं पाल सकते, किंतु जब हमारे अपने ही संकल्प ढीले हों तो खतरा और बढ़ जाता है। आतंकवाद के खिलाफ लंबी यातना भोगने के बाद भी हमने सीखा बहुत कम है। किसी आतंकी को फाँसी देते वक्त भी हमारे देश में उसे फाँसी देने और न देने पर जैसा विमर्श चलता है उसकी मिसाल खोजने पर भी नहीं मिलेगी। आखिर हम आतंकवाद के खिलाफ जीरो टालरेंस का रवैया अपनाये बिना कैसे सुरक्षित रह सकते हैं।
मछली जाल में फँसी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कई कहानियाँ मुझ तक चल कर भी आती हैं। आज भी एक कहानी मेरे पास चल कर आयी है। मुझे कहानी इतनी पसंद आयी कि मैं पिता-पुत्र की जो कहानी लिखने बैठा था, उसे फिलहाल रोक कर शानदार शेरवानी और मछली के जाल वाली कहानी सुनाने को तड़प उठा हूँ।
दिल्ली वालों का अभी कुछ होना बाकी है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
बहुत साल पहले जब मैं स्कूल में पढ़ता था, जय प्रकाश नारायण ने बिहार में स्कूल बंद करा दिये थे।
ऐसी दिखती है 2016 की तस्वीर!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
तो साल बदल गया। जैसा हर साल होता है, हर साल कुछ बदलता है, लेकिन बहुत-कुछ नहीं भी बदलता। जो कभी नहीं बदलता, उस पर बात भी कभी नहीं होती। आखिर यथावत पर क्या बात की जाये? वह तो जैसा है, वैसा ही रहेगा। गरीब हैं तो हैं, गरीबी है तो है, करोड़ों लोग बेघर हैं तो हैं, वह तो वैसे ही रहेंगे और विकास का सिनेमा देखते रहेंगे, रैलियों में भीड़ बनते रहेंगे, भाषणों पर तालियाँ बजाते रहेंगे, वोट देते रहेंगे, जिन्दगी बदलने की आस में सरकारें बदलते रहेंगे और यथावत जीते रहेंगे, यथावत मरते रहेंगे।
तुगलकी फरमान, जनता परेशान

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आदरणीय अरविंद केजरीवाल जी,
नया साल मंगलमय हो।
उफ्फ टोपी, हाय टोपी

पुराणिक, व्यंग्यकार :
अभी कांग्रेस का स्थापना दिवस मनाया गया, कई नेता गाँधी टोपी में थे, बहुत अश्लील लग रहे थे। पर उनसे ज्यादा वह टोपी अश्लील लग रही थी।
जाने-अनजाने किसी का अपमान न करें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे पास एक खबर आयी थी कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों - लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के सुपुत्र तेज प्रताप जी पटना की सड़कों पर घोड़े पर चल रहे हैं। मैंने पूरा वीडियो देखा। उसमें तेज प्रताप जी ने, जो अब खुद बिहार में मंत्री हैं, ने कहा कि लोग अगर घोड़े पर चलना शुरू कर दें, तो ट्रैफिक जाम और प्रदूषण की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। लोगों के लिए कहीं आना-जाना भी आसान होगा।
यह कैसा ‘बचकाना न्याय’ है?

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
लोग अब खुश हैं। अपराध और अपराधियों के खिलाफ देश की सामूहिक चेतना जीत गयी। किशोर न्याय (Juvenile Justice) पर एक अटका हुआ बिल पास हो चुका है। अब कोई किशोर अपराधी उम्र के बहाने कानून के फंदे से नहीं बच पायेगा। किसी अटके हुए बिल ने आज तक देश की 'सामूहिक चेतना' को ऐसा नहीं झकझोरा, जैसा इस बिल ने किया। जाने कितने बिल संसद में बरसों बरस लटके रहे, लटके हुए हैं। लोकपाल तो पचास साल तक कई लोकसभाओं में कई रूपों में आता-जाता, अटकता-लटकता रहा। देश की सामूहिक चेतना नहीं जगी। महिला आरक्षण बिल भी बरसों से अटका हुआ है। उस पर भी देश की 'सामूहिक चेतना' अब तक नहीं जग सकी है! और शायद कभी जगे भी नहीं!
छात्र-युवा ही बनाएँगे समर्थ भारत

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
भारत इस अर्थ में गौरवशाली है कि वह एक युवा देश है। युवाओं की संख्या के हिसाब से भी, अपने सार्मथ्य और चैतन्य के आधार पर भी। भारत एक ऐसा देश है, जिसके सारे नायक युवा हैं। श्रीराम, श्रीकृष्ण, जगदगुरू शंकराचार्य और आधुनिक युग के नायक विवेकानंद तक। युवा एक चेतना है, जिसमें ऊर्जा बसती है, भरोसा बसता है, विश्वास बसता है, सपने पलते हैं और आकांक्षाएँ धड़कती हैं। इसलिए युवा होना भारत को रास आता है। भारत के सारे भगवान युवा हैं। वे बुजुर्ग नहीं होते। यही चेतना भारत की जीवंतता का आधार है।
मूँगफली खाते रोबोट

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
वक्त तेजी से बदल रहा है, इंसान का संवाद मशीनों से ज्यादा और रूबरू-इंसानों से कम हो रहा है।
अपनी बचाऊँ कि ये सोचूँ कि सरकार क्या कर रही है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आज अपनी बात कहने के लिए मैं एक चुटकुले का सहारा ले रहा हूँ, लेकिन मैं जो लिखने जा रहा हूँ वो चुटकुला नहीं। वो बेहद संजीदा विषय है, इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आपमें से अगर किसी को चुटकुले पर आपत्ति हो, तो मुझे माफ कर दें।
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बलात्कारी को कौन रोकेगा?

सुशांत झा, पत्रकार :
निर्भया मामले में बाल अपराधी की उम्र को लेकर बहस हो रही है, मेरे ख्याल से इसे कम करने की जरूरत है। कम से कम बलात्कार और हत्या जैसे मामलों में तो जरूर। 18 साल सरकार चुनने की उम्र तो हो सकती है, लेकिन बलात्कार या हत्या के प्रति अनभिज्ञ रहने की नहीं। इस सूचना विस्फोट के युग में 18 साल की उम्र में कोई व्यक्ति वैसा बालक भी नहीं रहता-जी हाँ वो गरीब का बच्चा भी नहीं जिसके बारे में कई लोग कह रहे हैं कि गरीबी और जहालत के हालात ने उसे बलात्कार करने पर मजबूर किया होगा। मुझे लगता है कि किसी गरीब या अनपढ़ का इससे बड़ा अपमान क्या होगा?