भस्मासुर

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुबह से दस बार लिख कर मिटा चुका हूँ। कई बार सोचा जिन्दगी की कहानी लिखूँ, लेकिन आधी रात को फ्रांस में हुए धमाकों से मन बहुत विचलित हो रहा था। मुझे याद है कि उस दिन मैं अमेरिका में ही था, जब सुबह-सुबह दो विमान न्यूयार्क की जुड़वाँ ऊँची इमारतों में समा गये थे और दस हजार जिन्दगी देखते-देखते खत्म हो गयीं थीं। उस दिन भी मन बहुत विचलित हुआ था।
श्रीमती गाँधी की हत्या और क्रिकेट सिरीज रद्द

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
आज 31 अक्तूबर है, जो भारतीयों को मिश्रित अनुभूति देता है। एक ओर हैं देश को एकता के सूत्र पिरोने वाले लौह पुरुष सरदार पटेल, जिनका कि आज जन्मदिन है और जिसे यादगार बना दिया मोदी सरकार ने देश में एकता दौड़ के आयोजन से तो दूसरी ओर आज ही इंदिरा गाँधी का शहादत दिवस भी है।
साहित्यकारों, कलाकारों और इतिहासकारों का कुचक्र

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
इस देश को जिन्होंने नोचा, खसोटा, लूटा और राज किया, वर्तमान से इस कदर बौखला उठे हैं कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें? इसमें शामिल हैं हवाला कारोबारी, तस्कर, हथियारों के दलाल, वे जिन्हें आजादी बाद रेवड़ी की मानिंद बांटे गये थे कोटा-परमिट और जिनके बल पर काला बाजारी से रातों रात धन कुबेर बन गये वे और उनके वंशज। इनके अलावा वे तथाकथित प्रगतिशील- वामपंथी जिन्होंने समाजवादी विचारधारा के नाम पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक मलाई खायी। वे समाज में आसानी से बुद्धिजीवी का खुद पर ठप्पा लगाने में सफल हो गये। इसी विचारधारा के लोगों में पनपे साहित्यकारों, कलाकारों, कला प्रेमियों और इतिहासकारों की गणेश परिक्रमा ने उन्हें महिमा मंडित किया।
मन की खुशी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे ठीक से याद है कि गुलबवा की कहानी किसने सुनायी थी। इस सच्ची कहानी सुनाते हुए उसने बताया था कि हर आदमी में दो आदमी रहते हैं। एक बाहर का आदमी और दूसरा भीतर का आदमी। भीतर का आदमी मन है, बाहर का आदमी तन है।
हार-हार-हार और हार..! आखिर कब थमेगा सिलसिला

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
वानखड़े 'भूतो न भविष्यति' बल्लेबाजी का बना गवाह। सिक्के की उछाल में मिली मात और भोथरी गेंदबाजी ने सिरीज का फाइनल का किस तरह से नशा उखाड़ दिया, यह बताने की जरूरत नहीं और यह भी नहीं कि हर किसी का समय होता है मिस्टर धोनी। बाजुओं में जो ताकत आपके थी वह जाती रही और कितने गरीब नजर आये आप बल्ले से, यह भी दर्शकों ने देखा। हार, हार और हार यही बदा है देश के भाग्य में शायद। जो सिलसिला आस्ट्रेलिया से शुरू हुआ, वह आज तक थमा नहीं। बांग्लादेश तक ने पानी पिला दिया था तो यह महाबली द. अफ्रीका है।
‘विराट’ पारी से अंतिम मुकाबला फाइनल हो गया

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
वाकई बहुत अच्छा टास जीता धोनी ने और इसी के साथ सिरीज 2-2 की बराबरी पर आकर जीवंत हो उठी अगले रविवार को मुंबई में फाइनल लड़ंत के लिए। खेल का एक घंटे पहले आरंभ होना, ओस की लगभग नगण्य भूमिका, शाम को दूधिया प्रकाश के बीच सीम, स्विंग, स्पिन और दोहरी उछाल, टारगेट का पीछा करने वाली टीम के लिए कहीं से भी मुफीद कंडीशन नहीं कही जा सकती थी।
अर्से तक याद आते रहोगे वीरू सर

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
दिल उदास है। कुछ दिन पहले ही जहीर ने क्रिकेट को अलविदा कहा था तो क्रिकेट में मनोरंजन का दूसरा नाम वीरेंद्र सहवाग ने भी आज बाय-बाय टाटा करते हुए देश के खेल प्रेमियों को दशहरे की पूर्व संध्या पर उदास और मायूस कर दिया। वीरू ने मार्क टेलर के आस्ट्रेलिया के खिलाफ बीती सदी के अंत में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पहला पग रखते हुए ही वह धमाल मचाया कि फिर मुड़ कर भी नहीं देखा।
बाड़ ही अब खेत खाने लगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
करीब पंद्रह साल पहले मेरी एक परिचित के पेट में बहुत तेज दर्द उठा। वो भाग कर दिल्ली के एक बहुत बड़े अस्पताल में पहुँच गयीं। वहाँ डॉक्टरों ने पूरी जाँच की और बताया कि उन्हें एपेंडिसाइटिस की समस्या है और फौरन ऑपरेशन करना पड़ेगा। एपेंडिसाइटिस की समस्या बहुत आम समस्या है। अपेंडिक्स आंत का एक टुकड़ा है। इसे डॉक्टरी भाषा में एपेंडिसाइटिस कहते हैं।
टीम इंडिया को आप जैसे गुरु की सख्त जरूरत है जाक

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
आया है सो जाएगा, राजा रंक फकीर। यही जीवन का शाश्वत सत्य है। खेल दुनिया भी उसी का एक अंग है। कल की सी बात लगती है जब मैंने मजबूत कद काठी के एक युवक को अपने डेब्यू मुकाबले में एक सौ पचास किलोमीटर की गति से गेंदबाजी करते देखा और तभी विश्वास हो गया था कि यह लंबी रेस का घोड़ा है, बड़ी दूर तक जाएगा और वर्षों हम इसके बारे में पढ़ते, सुनते और देखते रहेंगे।
हार का ठीकरा सेनापति पर तो जीत का श्रेय भी उसी को

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
सुनील चतुर्वेदी की समस्या यह है कि वह बोर्ड प्रबंधन के अंग है। न तो वह खिलाड़ी हैं और न ही समालोचक। सुनील को हर शब्द नाप तौल कर लिखना होता है। उनके पास हम जैसी आजादी नहीं है। सुनील भाई आपने संतोष सूरी के कमेंट के संकेत को शायद अच्छी तरह समझा होगा। आप दूसरों के लिए जो करते हो वही दूसरा आपके साथ करेगा। यही जमाने की रीत है भाई।
आत्मचिंतन का समय आ गया है जनाब धोनी

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
आत्मचिंतन का समय आ गया है जनाब महेंद्र सिंह धोनी। आँख बंद कर सोचिए कि क्या शरीर में वह पोटाश बची हुई है? क्या बल्लेबाजी की देसी शैली अपनी औकात पर नहीं आ चुकी है? क्या सहवाग की मानिंद आपकी आँख और पाँव का संयोजन गड़बड़ा नहीं गया? क्या शरीर के करीब फेंकी गयी शार्ट गेंदों के सम्मुख आपकी कमजोरी जगजाहिर नहीं हो चुकी है ?
लोकतत्व के अभाव में रचे साहित्य का विधवा विलाप

संदीप त्रिपाठी :
साहित्यकार कौन है? कहानियाँ, कविताएँ, नाटक, उपन्यास, ललित निबंध, व्यंग्य, आलोचना लिखने वाला साहित्यकार है? आप गोपाल दास नीरज, उमाकांत मालवीय़ को साहित्यकार मानते हैं? कुँवर बेचैन, सुरेंद्र शर्मा, काका हाथरसी, हुल्लड़ मुरादाबादी, चकाचक बनारसी साहित्यकार हैं या नहीं? ओमप्रकाश शर्मा, गुलशन नंदा, सुरेंद्र मोहन पाठक, वेदप्रकाश शर्मा साहित्यकार हैं या नहीं? राजन-इकबाल सिरीज लिखने वाले एससी बेदी क्या हैं? विज्ञान कथाएँ लिखने वाले गुणाकर मुले साहित्यकार माने जायेंगे या नहीं? बच्चों के लिए साहित्य रचने वाले क्या हैं?