बौद्धिक विमर्शों से नाता तोड़ चुके हैं हिन्दी के अखबार

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्याल
हिन्दी पत्रकारिता को यह गौरव प्राप्त है कि वह न सिर्फ इस देश की आजादी की लड़ाई का मूल स्वर रही, बल्कि हिन्दी को एक भाषा के रूप में रचने, बनाने और अनुशासनों में बांधने का काम भी उसने किया है। हिन्दी भारतीय उपमहाद्वीप की एक ऐसी भाषा बनी, जिसकी पत्रकारिता और साहित्य के बीच अंतसंर्वाद बहुत गहरा था।
नहीं संभले तो मिट जायेंगे

श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार :
शनिवार को भूकंप के झटके ने नेपाल में बड़े पैमाने पर तबाही मचायी। हजारों भवन ध्वस्त हो गये और 4,700 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। इस भूकंप के झटके को पूरे उत्तर भारत में और सबसे ज्यादा बिहार में महसूस किया गया। बिहार में तीस से ज्यादा लोग मारे गये।
ऊधमी छोकरा, षोडशी सुंदरी और गैंडा

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
लंबे समय से व्यंग्य लिखते हुए एक अनुभव आया कि फेसबुक, ट्विटर पर छपे व्यंग्य पर हासिल प्रतिक्रियाएँ त्वरित और कई बार असंतुलित होती हैं।
गेहूँ की फसल कम होगी, लेकिन वोटों की खेती लहलहायेगी

संजय सिन्हा, आज तक :
मेरी माँ किसान नहीं थी, लेकिन जिस साल अप्रैल के महीने में आसमान में काले-काले बादल छाते और ओले बरसते माँ सिहर उठती थी।
धरती पर भगवान (डॉक्टर) मुर्दे से भी कमाते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
जिसके पाँव में चक्कर हो वो कहीं से कहीं जा सकता है। वो चैन से बैठ ही नहीं सकता।
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा, उनका भी अपराध

अजीत अंजुम, प्रबंध संपादक, इंडिया टीवी :
आशुतोष, मैं आपको बेहद संवेदनशील इंसान मानता था, लेकिन दिल्ली में एक किसान की खुदकुशी के बाद आपने जिस ढंग से रिएक्ट किया, उसके बाद से आपकी संवेदनशीलता संदिग्ध हो गयी है।
देश का ऊंघता नेतृत्व

अजय अनुराग :
विदेश से दो महीने की गुमनामी छुटियाँ (चिंतन अवकाश) बिताकर स्वदेश लौटे राहुल गांधी द्वारा कल संसद में दिया गया भाषण बेहद हैरान व परेशान करने वाला है।
खेती करके वह पाप कर रहे हैं क्या?

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
किसान मर रहे हैं। खबरें छप रही हैं। आज यहाँ से, कल वहाँ से, परसों कहीं और से। खबरें लगातार आ रही हैं। आती जा रही हैं। किसान आत्महत्याएँ कर रहे हैं। इसमें क्या नयी बात है? किसान तो बीस साल से आत्महत्याएँ कर रहे हैं।
दलित हो तो दावत खिलाओ

विकास मिश्रा, आजतक
रामभरोसे दरवाजा खोलो, मैं नेता सुर्तीलाल।
रामभरोसे - नेताजी आज गरीब के घर का रास्ता कैसे भूल गये।
विदेशी निवेश की सीमा और नया नाम प्रेसटीट्यूट

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन
एबीपी न्यूज पर व्यक्ति विशेष में सनी लियोन पर कार्यक्रम दिखाये जाने की खबर सुनकर मुझे वो दिन याद आ रहे हैं जब स्टार टीवी आधिकारिक तौर पर भारत नहीं आया था। उस समय इसका विरोध करने वाले कहते थे कि भारतीय संस्कृति खराब करेगा। बाद में स्टार टीवी भारत आया, एक भारतीय कंपनी के साथ रहा – काम किया।
अब नहीं सोचेंगे, तो कब सोचेंगे?

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :
हाशिमपुरा और भी हैं ! 1948 से लेकर 2015 तक। कुछ मालूम, कुछ नामालूम ! जगहें अलग-अलग हो सकती हैं। वजहें अलग-अलग हो सकती हैं। घटनाएँ अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन चरित्र लगभग एक जैसा।
कश्मीरी पंडितों की वापसी से कौन डरता है?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने को लेकर अलगाववादी संगठनों की जैसी प्रतिक्रियायें हुयी हैं, वे बहुत स्वाभाविक हैं। यह बात साबित करती है कि कश्मीर घाटी में जो कुछ हुआ, उसमें इन अलगाववादियों की भूमिका और समर्थन रहा है।