जमीन छीन लीजिए पर संवाद तो कीजिए
संजय द्विवेदी :
भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने आते ही जिस तरह भूमि अधिग्रहण को लेकर एक अध्यादेश प्रस्तुत कर स्वयं को विवादों में डाल दिया है, वह बात चौंकाने वाली है। यहाँ तक कि भाजपा और संघ परिवार के तमाम संगठन भी इस बात को समझ पाने में असफल हैं कि जिस कानून को लम्बी चर्चा और विवादों के बाद सबकी सहमति से 2013 में पास किया गया, उस पर बिना किसी संवाद के एक नया अध्यादेश और फिर कानून लाने की जरूरत क्या थी?
राष्ट्र के बौद्धिक विकास में भूमिका निभाए मीडिया
संजय द्विवेदी :
राष्ट्र के बौद्धिक विकास में मीडिया एक खास भूमिका निभा सकता है। वह अपनी सकारात्मक भूमिका से राष्ट्र के सम्मुख उपस्थित अनेक चुनौतियों के समाधान खोजने की दिशा में वह एक अभियान चला सकता है। दुनिया के अनेक विकसित देशों में वहाँ के मीडिया ने सामुदायिक विकास में अपना खास योगदान दिया है।
भाषण बस भाषण के लिए!
कमर वहीद नकवी :
बहुत देर में बोले, लेकिन आखिर नमो बोले! धर्म के नाम पर किसी को घृणा नहीं फैलाने दी जायेगी। कहते हैं, देर आयद, दुरुस्त आयद! मोदी बोले, बड़े लम्बे इन्तजार के बाद बोले, लेकिन बिलकुल दुरुस्त बोले! देश ने बड़ी राहत की साँस ली! उम्मीद की जा रही है कि परिवार अब शायद कुछ दिन चुप बैठे!
केजरीवाल और महत्वाकांक्षा
अभिरंजन कुमार :
अरविंद केजरीवाल ने शपथ ग्रहण के बाद जो भाषण दिया, वह बेहद संतुलित और राजनीतिक रूप से परिपक्व था। पिछली बार की गलतियों से सबक लेने और इस बार कुर्सी पर जमे रहने का संकल्प उनके भाषण में दिखा। लालच और अहंकार से बचने का सबक अच्छा है।
सेकुलर घुट्टी क्यों पिला गये ओबामा?
क़मर वहीद नक़वी :
आधुनिक सेकुलरिज्म और लोकतंत्र एक दूसरे के पूरक विचार हैं। सारी दुनिया में लोगों को अब दो बातें समझ में आती जा रही हैं। एक यह कि आर्थिक विकास के लिए स्वस्थ लोकतंत्र बड़ा जरूरी है। एक शोध के मुताबिक लोकताँत्रिक शासन व्यवस्था अपनाने से देशों की जीडीपी में अमूमन एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गयी! और जो देश लोकतंत्र से विमुख हुए, वहाँ इसका असर उलटा हुआ और आर्थिक विकास की गति धीमी हो गयी।
तिरंगे को सलामी पर बेवजह विवाद
गणतंत्र दिवस परेड के दौरान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देने की बजाय महज सावधान की मुद्रा में खड़े रहने पर सोशल मीडिया पर विवाद छिड़ गया।
उम्मीदों के बोझ से दबे हैं मोदी और ओबामा
राजेश रपरिया :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उम्मीदों के भारी बोझ से दबे हुए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति दिल्ली पहुँच चुके हैं। नाभिकीय, ट्रांसफर प्राइसिंग, रक्षा वैदेशिक व्यापार संबध, जलवायु परिवर्तन आदि मुद्दों पर सार्थक पहल की उम्मीद दोनों देशों को है।
क्यों बढ़ती है मुस्लिम आबादी?
क़मर वहीद नक़वी :
मुसलमानों की आबादी बाकी देश के मुकाबले तेजी से क्यों बढ़ रही है? क्या मुसलमान जानबूझ कर तेजी से अपनी आबादी बढ़ाने में जुटे हैं? क्या मुसलमान चार-चार शादियाँ कर अनगिनत बच्चे पैदा कर रहे हैं? क्या मुसलमान परिवार नियोजन को इसलाम-विरोधी मानते हैं? क्या हैं मिथ और क्या है सच्चाई?
वही राग- वही रंग, फिर कैसे बदलेगा नीति आयोग?
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आज तक :
प्रधानमंत्री मोदी का नीति आयोग और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के योजना आयोग में अंतर क्या है। मोदी के नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानागढ़िया और मनमोहन के योजना आयोग के मोंटक सिंह अहलूवालिया में अंतर क्या है। दोनों विश्व बैंक की नीतियों तले बने अर्थशास्त्री हैं।
ऐसे शिक्षकों पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए?
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
"अच्छा बताइए, राज्य सभा को अपर हाउस क्यों कहते हैं?"
"नहीं पता सर।"
"संसद के कितने अंग होते हैं, यह तो पता होगा ही।"
"नहीं सर, यह भी नहीं पता।"
"ओके, संसद में शून्य काल के बारे में तो सुना ही होगा।"
एक बड़ी चुप्पी...।
तो लाल गलियारे में अब कालाहांडी भी ?
अमरेंद्र किशोर, कार्यकारी संपादक, डेवलपमेंट फाइल्स :
साल 2004 से अब तक 5,000 से ज्यादा पुलिसकर्मी, लाल आतंकी और नागरिक नक्सलवादी हमले में मारे जा चुके हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इन आतंकियों से निबटना एक बड़ी चुनौती मानते थे। यह आम राय बन चुकी है कि नक्सलवाद आज भारत के लिए तालिबानियों से ज्यादा घातक हो चुके हैं।
धर्मांतरणः हंगामा क्यों है बरपा?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
धर्मांतरण के मुद्दे पर मचे बवाल ने यह साफ कर दिया है कि इस मामले पर शोर करने वालों की नीयत अच्छी नहीं है। किसी का धर्म बदलने का सवाल कैसे एक सार्वजनिक चर्चा का विषय बनाया जाता है और कैसे इसे मुद्दा बनाने वाले धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाने के विषय पर तैयार नहीं होते, इसे देखना रोचक है।