पोकीमान @ अरहर डाट काम

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आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार  :

पोकीमान गो गेम ने मार मचायी हुई है। जिस देश में नौजवानों को धूर्त-बदमाश नेताओं, अरहर के काला-बाजारियों को पकड़ने के लिए निकलना चाहिए, वहाँ नौजवानों का जत्था पोकीमान को पकड़ने निकल रहा है। मोबाइल की स्क्रीन पर नजरें गड़ाये आपके आसपास कोई नौजवान पोकीमान के चक्कर में इधर-उधर जा रहा होगा।

पाकिस्तान से खबरें ना आ रहीं कि वहाँ लोग पोकीमान की तलाश में हैं। वहाँ दरअसल तलाश आतंकियों की ही होती है। जो तलाश करते हैं, वो खुद भी अर्ध-आतंकी होते हैं। पाकिस्तानी सेना आतंकियों को ट्रेनिंग देती हैं, वो ही आतंकी बाद में पाकिस्तानी स्कूलों पर हमले करते हैं। फिर इन आतंकियों को पकड़ने के लिए सेना निकलती है। कई बार तो सेना के अफसरों और आतंकियों के सीन पुनर्मिलन, री-यूनियन के ही होते हैं। कबके बिछड़े हम आज यहाँ आके मिले, टाइप।

खैर भारत में पोकीमान की तलाश जारी है, सस्ती अरहर की तलाश पुरानी है।

काश कोई ऐसा पोकीमान हो, जो हमारा मार्गदर्शन करता कि सस्ती अरहर कहाँ-कहाँ उपलब्ध है, पोकीमान @ अरहर डाट काम।

गौर से देखें कुल मिलाकर तो जीवन तीन स्क्रीनों में निपटा ही जा रहा है।

मोबाइल स्क्रीन, लैपटाप या डेस्कटाप कंप्यूटर स्क्रीन और टीवी स्क्रीन, जिंदगी एक स्क्रीन से दूसरी स्क्रीन का सफर है। बीच में कहीं बंदा लाग आउट हो जाता है, दुनिया से।

कल मिलने आये पति पत्नी, दोनों नौकरी में हैं। दोनों दिन के दस बारह घंटे कंप्यूटर स्क्रीन या मोबाइल स्क्रीन पर होते हैं।

पत्नी ने नाराज होकर कहा इनसे कुछ कहो, तो इनका एक ही जवाब होता है, मेल मार दो। किसी काम की ई-मेल ना भेजो इन्हे तो ये उसे सीरियसली ही ना लेते। एक दिन फोन पर रोमांटिक मूड में इनसे कहा कि तुमसे एक बहुत खास बात, बहुत जरूरी बात कहनी है।

पति ने पूरी बात सुने बगैर ही कह डाला-मेल मार दो। अब बताओ लव यू जैसी बात भी मेल के जरिये कही जायेगी।

पति की आफत ये कि जिस दफ्तर में काम करता है, वहाँ सारे काम मेल पर होते हैं। मेल आये तो ही पता लगे कि कुछ हुआ टाइप्स। आदतें इस कदर मेलमयी हो लीं कि भूकंप भी आ जाये, तो पहला सवाल होगा कि हाय बिना मेल किये कैसे।

कल एक मित्र अनूप शुक्ल ने बताया कि बात करने का बतरस बहुत ही कीमती रस है, मित्रों से बात हो नहीं पाती है। मित्र जो व्हाट्सअप पर हैं, वो घटिया बासे जोक फारवर्ड कर देते हैं। और समझते हैं कि टच में हैं। हाय, उफ्फ व्हाट्सअप दोस्ती बासे लतीफों, घिसे हुए शेरों तक ही सिमट गयी है। पर, पर, पर व्हाट्सअप ना हो, तो इत्ता भर टच ना बचे। तो बासे लतीफों का आभार व्यक्त किया जाना चाहिए, कम से कम टच में तो रखते हैं।

बंद कमरों में एक ही मौसम-एयरकंडीशंड मौसम। दफ्तर में गर्लफ्रेंड ई मेल से बताती है कि उसे किसी बाहर की सहेली के मेल से पता चला है मौसम कितना कूल है। बारिश हो रही है। चलो नीचे मुन्ना के समोसे खाते हैं। ई-मेल के हल्ले में एप्पल मोबाइल फोन इतना विकट टाइप का लाइफ पार्टनर हो लिया है कि एप्पल को उन उन जगहों तक लेकर जा रहे हैं भाई लोग, जहाँ वो अपनी गर्लफ्रेंड और पत्नी तक को ना ले जाते।

इमोशन्स- मुस्कान,दुख, सुख, स्माईलीज के जरिये मेल पर ही एक्सप्रेस हो रहे हैं।

मुझे बीस साल बाद का दिव्य दृश्य दिखायी पड़ रहा है।

मेरी बेटियों को ई-मेल के जरिये सूचना मिलेगी-आलोक पुराणिक आपके पापा दुनिया से लाग आऊट हो गये।

बेटियाँ इस मेल का जवाब उस स्माईली से देंगी, जिसमें चेहरे से आँसू बह रहे होंगे।

हो गया जी, दैट्स आल और वो फिर बिजी हो जायेंगी, अगली ई मेल चेक करने में।

बेटियों की बेटियाँ पोकीमान की तलाश में जाने कहाँ टहल रही होंगी।

(देश मंथन 01 अगस्त 2016)

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