जाने-अनजाने किसी का अपमान न करें

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरे पास एक खबर आयी थी कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों – लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के सुपुत्र तेज प्रताप जी पटना की सड़कों पर घोड़े पर चल रहे हैं। मैंने पूरा वीडियो देखा। उसमें तेज प्रताप जी ने, जो अब खुद बिहार में मंत्री हैं, ने कहा कि लोग अगर घोड़े पर चलना शुरू कर दें, तो ट्रैफिक जाम और प्रदूषण की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। लोगों के लिए कहीं आना-जाना भी आसान होगा।

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फ्रांस की जनता भूखी थी। 

फ्रांस की जनता अपने राजा की विलासिता से परेशान थी। राजा लुई सोलहवें को अपनी जनता के दुखों से कोई लेना-देना नहीं था। वो सारा दिन अपनी पत्नी मेरी आत्वां के प्रेम में डूबा रहता था। जनता जब भूख से बेहाल हो गयी, तो वो राजा के महल तक पहुँची और गुहार लगाने लगी, “राजा, उठो, देखो हम तुम्हें अपना भगवान मानते हैं। हमने तुम्हें अपना भगवान माना है। तुम हमारे रक्षक हो। तुम हमारे लिए भोजन का इंतजाम करो। हमें रोटी दो।”

जनता राजा के महल के बाहर खड़ी होकर चीत्कार कर रही थी। जब भीड़ की चीत्कार राजा के कानों तक पहुँची तो वो अपने महल की छत तक अपनी पत्नी के साथ आया। 

राजा को देख कर जनता खुशी से झूम उठी। हमारा राजा हमारी बात सुनने के लिए महल से निकल कर छत तक आया है। 

प्रजा चिल्ला रही थी, “भूख लगी है, हमें खाना दो।”

राजा की पत्नी मेरी आत्वां जनता की बातें समझ नहीं पा रही थीं। ऐसा कहा जाता है कि उसने राजा से पूछा कि जनता इतनी परेशान क्यों है? वो क्या चाह रही है? 

राजा ने कहा कि जनता भूखी है। कह रही है कि उसके पास रोटी नहीं है। 

रानी ने बहुत मासूमियत भरे लहजे में कहा था कि रोटी नहीं है, तो केक खा लें।

रानी सोच ही नहीं पायी कि जिनके पास रोटी नहीं होती, उनसे केक खाने की बात कहना उनकी भूख का अपमान करना होता है। 

जनता रानी के ऐसा कहे को सुन कर भड़क उठी और महल को घेर कर उसने राजा को बंधक बना लिया। बहुत खून-खराबा हुआ, सिपाहियों ने खूब गोलियाँ चलाईं। पर जनता के आक्रोश के आगे गोलियाँ कम पड़ गयीं। 

लुई सोलहवें को जंजीरों में जकड़ लिया गया। राजा के साथ रानी को भी जनता ने बंधक बना लिया। और फिर जनता ने न्याय किया। उसने राजा और रानी को पेरिस की सड़क पर फाँसी पर लटका दिया।

इतिहास की किताब में इतना-सा अध्याय फ्रांस की क्रांति के नाम से दर्ज है।

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मुझे नहीं लगता कि फ्रांस की रानी ने गरीबों का मजाक उड़ाया होगा। मुझे लगता है कि रानी को पता ही नहीं होगा कि इस संसार में कोई बिना रोटी के भी हो सकता है। मुझे लगता है कि उसने ऐसा सोचा होगा कि जनता के पास सिर्फ आज रोटी नहीं है, पर रोटी नहीं है तो घर की रसोई में केक तो होगा ही। इसीलिए उसने कहा था कि रोटी नहीं है तो केक खा लो। केक खा कर अपनी भूख मिटा लो। 

पर जनता ने इसे अन्यथा लिया। उसने रानी के ऐसा कहे को अपना अपमान मान लिया। 

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टीवी पर दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, लालू यादव और राबड़ी देवी के सुपुत्र जब ये कहते हुए दिखते हैं कि लोगों को घोड़े की सवारी करनी चाहिए, उन्हें घोड़े से चलना चाहिए तो बेशक उनकी मंशा यही होगी कि घोड़े की सवारी से प्रदूषण कम होगा, ट्रैफिक की भीड़ कम होगी। उन्होंने ये भी कहा कि उनकी माँ जब बिहार की मुख्यमंत्री थीं, तब वो खूब घुड़सवारी करते थे। 

पर मुझे लगता है कि राजा और मंत्री करें चाहे जो, लेकिन उन्हें जनता के सामने ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए, जिसे जनता अपना अपमान मान ले। 

बिहार के नौजवान मंत्री और दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की संतान को समझना चाहिए कि सबकी माँएँ मुख्यमंत्री नहीं होतीं। अब क्योंकि वो मुख्यमंत्री नहीं होतीं, इसलिए उन्हें घुड़सवारी का मौका भी नहीं मिला होता है। 

और रही बात सड़कों पर घोड़े से चलने की सलाह देने की, तो ऐसा कहना उनका भोलापन है। 1789 में पेरिस के महल से राजा लुई सोहलहवें की पत्नी मेरी आंत्वा ने इसी तरह के भोलेपन का परिचय दिया था। 

आप जब किसी जिम्मेदार पद पर होते हैं, तो आपसे जिम्मेदारी की उम्मीद की जाती है। रानी को रानी की तरह व्यवहार करना चाहिए, मंत्री को मंत्री की तरह। आप चाहे केक खाएँ या घुड़सवारी करें। उसकी आड़ में जनता का अपमान नहीं होना चाहिए। न भूल से, न भोलेपन से।

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आदमी गरीबी सह लेता है। भूख भी सह लेता है। पर अपमान नहीं सहता। 

कोशिश यही करनी चाहिए कि चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने भी किसी का अपमान नहीं हो। 

मैंने किसी ट्रक के पीछे लिखा हुआ पढ़ा था-

“गरीब को मत सताओ, वो रो देगा।

खुदा ने सुन लिया, तो जड़ से खोदेगा।”    

(देश मंथन, 30 दिसंबर 2015)

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