प्रशांत भूषण ऐसे ईव-टीजर, जो लोगों की आत्मा तक नोंच डालते हैं!

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अभिरंजन कुमार, पत्रकार : आतंकवादियों की वकालत करने के लिए कुख्यात संदिग्ध पाकिस्तानी एजेंट प्रशांत भूषण ने उत्तर प्रदेश में एंटी-रोमियो स्क्वैड का विरोध करते हुए भगवान श्रीकृष्ण को “ईव-टीजर” कहा है। हालांकि उनकी यह टिप्पणी मुझे अधिक हैरान नहीं करती, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में अनेक आतंकवादियों (राक्षसों) का वध किया था, […]

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

आतंकवादियों की वकालत करने के लिए कुख्यात संदिग्ध पाकिस्तानी एजेंट प्रशांत भूषण ने उत्तर प्रदेश में एंटी-रोमियो स्क्वैड का विरोध करते हुए भगवान श्रीकृष्ण को “ईव-टीजर” कहा है।


हालांकि उनकी यह टिप्पणी मुझे अधिक हैरान नहीं करती, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में अनेक आतंकवादियों (राक्षसों) का वध किया था, इसलिए बहुत स्वाभाविक है कि आतंकवादियों का कोई वकील उनके कैरेक्टर को पसंद न करे।

उनकी इस वाहियात टिप्पणी को मुद्दा मैं इसलिए नहीं बना रहा, क्योंकि अपनी धार्मिक आस्थाओं को लेकर बहुत संवेदनशील हूँ, बल्कि इसलिए बना रहा हूँ, क्योंकि ऐसी ही कुत्सित सोच वाले कई नेता इस देश में सारे विमर्श को हिन्दू-मुस्लिम तक केंद्रित कर देना चाहते हैं और जान-बूझकर सांप्रदायिक तनाव का वातावरण बनाना चाहते हैं, जो कि भारत के संदर्भ में पाकिस्तान का शाश्वत एजेंडा है। माहौल ये लोग खराब करते हैं और भुगतना हमारे आम हिन्दू-मुसलमान भाइयों-बहनों को पड़ता है।

जब ये श्रीकृष्ण को ईव-टीजर कहेंगे, गोमाँस खाते हुए जुलूस निकालेंगे, कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानने से इनकार करेंगे, सेना को बलात्कारी बताएंगे, आतंकवादियों के समर्थन में खड़े हो जाएंगे, अफजल और याकूब मेमन की फाँसी रुकवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगे, देश के टुकड़े-टुकड़े करने का सपना देखने वालों की आजादी की लड़ाई लड़ेंगे, तो इस देश में अपने आप सांप्रदायिक आधार पर एक ध्रुवीकरण शुरू हो जाता है, जो भाईचारा चाहने वाले हम जैसे लोगों को बेचैन कर देता है।

“एंटी-रोमियो” नाम चाहे सही हो या गलत… इसकी आड़ में किसी को किसी भी धर्म के देवी-देवताओं के बारे में छिछोरी टिप्पणियाँ करने का लाइसेंस कैसे मिल सकता है? वैसे भी रोमियो कोई ऐतिहासिक पात्र नहीं, इसलिए अगर यह नामकरण किसी को गलत भी लगता हो, तो इससे किसी की अवमानना नहीं होती। और तो और, अगर इस स्क्वाड का नाम “एंटी-मजनूं स्क्वाड” भी रखा जाता, तो नफरत के ये सौदागर उस पर भी बवाल करते और प्रचारित करते कि इसे एक खास अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ बनाया गया है।

हमारा कहना है कि इस अभियान की मूल भावना देखी जानी चाहिए और इसका इम्प्लीमेंटेशन कैसा है, यह देखा जाना चाहिए। अगर इसमें कुछ गड़बड़ हो रही है, तो इस आधार पर अभियान और सरकार की आलोचना भी की जा सकती है, लेकिन महज इसके नाम को लेकर एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना मुझे एक सोची-समझी शैतानी साजिश का हिस्सा लगती है।

भगवान श्रीकृष्ण “ईव-टीजर” नहीं थे। लड़कियों से छेड़खानी करने का उनका कोई प्रसंग नहीं है। चूंकि उनके पात्र की कल्पना एक ईश्वर के रूप में की गयी है, इसलिए नर-नारी, पशु-पक्षी सभी उनके दीवाने थे। उनका व्यक्तित्व ऐसा मोहक था कि तमाम माँ-बाप उन जैसी संतान और लड़कियाँ उन जैसे पति की कामना करती थीं। आधुनिक भाषा में इसे उनकी फैन फॉलोइंग कहा जा सकता है।

जैसे आजकल सितारों की फैन फॉलोइंग होती है। देवानंद, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना से लेकर शाहरुख खान, सलमान खान तक। गावस्कर और कपिलदेव से लेकर सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली तक। अपने-अपने समय में इन सबकी लाखों लड़कियाँ दीवानी रही हैं, तो इससे ये लोग “ईव-टीजर” हो जाते हैं क्या? ये लोग तो किसी एक कला के मास्टर हैं, भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कहा जाता है कि वे सोलह कलाओं के स्वामी थे। जाहिर है, उनकी फैन फॉलोइंग और भी बड़ी होगी।

जिन सोलह हजार एक सौ आठ पत्नियों वाले किस्से को लेकर अक्सर प्रशांत भूषण जैसे अज्ञानी और शैतानी इरादों वाले लोग तंज कसा करते हैं, उनमें से सोलह हजार एक सौ राजकुमारियाँ उस वक्त के कुख्यात आतंकवादी (राक्षस) नरकासुर की कैद में थीं। श्रीकृष्ण ने उन्हें उनकी कैद से मुक्त कराया और उन सबने उन्हें अपना पति मान लिया। इस प्रसंग में पति का आशय मूल रूप से रक्षक होने से ही है।

ऐसे में, आतंकवादियों के वकील प्रशांत भूषण की टीस दरअसल यह है कि श्रीकृष्ण ने उस आततायी आतंकवादी के साम्राज्य को चुनौती क्यों दी और उसका वध क्यों किया? अगर प्रशांत भूषण उस दौर में होते, तो वे नरकासुर की जान बचाने के लिए श्रीकृष्ण के खिलाफ वैसे ही आंदोलन छेड़ते, जैसे इन दिनों उन्होंने आतंकवादी अफजल गुरु और याकूब मेमन को बचाने के लिए छेड़ रखा था।

ईव टीजर वह होता है, जो लड़कियों से छेड़खानी करे। छेड़खानी मतलब ही है कि इसमें लड़की की मर्ज़ी नहीं होती और लड़के की तरफ से एकतरफा उसे परेशान किया जाता है। श्रीकृष्ण के खिलाफ प्रशांत भूषण एक भी ऐसा प्रसंग बता दें, जिसमें लड़कियों ने उनसे परेशान होकर उनके आचरण की शिकायत की हो। शिकायत हुई नहीं तो “ईव-टीजर” कैसे हो गये? क्या किसी “ईव-टीजर” के प्रति समाज में वैसी दीवानगी हो सकती है, जैसी श्रीकृष्ण के लिए बताई जाती है?

जाहिर है, वकील होकर भी प्रशांत भूषण को या तो “ईव-टीजर” शब्द का अर्थ ही नहीं मालूम है या फिर वे समाज के असली “ईव-टीजर्स” को बचाना चाहते हैं, उन्हें भगवान कृष्ण जैसा बताकर। आखिर आतंकवादियों के वकील से इसके सिवा और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है?

बहरहाल, प्रशांत भूषण के बारे में यह भी दीगर है कि वे सस्ती पब्लिसिटी के प्यासे हैं। आम आदमी पार्टी में उनकी दाल गली नहीं। एक टेप के हवाले से पता चला था कि केजरीवाल ने किस तरह बेइज्जत करके उन्हें पार्टी से निकाला। फिर योगेंद्र यादव के साथ स्वराज पार्टी बनाई, लेकिन विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक, अब योगेंद्र यादव से भी उनकी नहीं बन रही। उनके फ्रस्ट्रेशन की यह भी एक वजह है, जिसके चलते रोमियो की आड़ में उन्होंने सीधे यदुवंशी भगवान कृष्ण को ही निशाने पर ले लिया।

एक और बात है। उन्हें पता है कि देश की सेना को अब गाली देंगे, तो लोग बर्दाश्त करेंगे नहीं। केजरीवाल को गाली देंगे, तो कोई सुनेगा नहीं। योगेंद्र यादव को गाली देंगे, तो बेचारे वे इतने सीधे हैं कि बुद्ध की तरह उन्हें ही वापस लौटा देंगे। इसलिए गाली देने के लिए इस बार उन्हें कोई ऐसा नाम चाहिए था, जो सीधा लोगों के दिल पर चोट करे। बदनामी से नाम कमाना उनका आजमाया हुआ प्रयोग है। इस प्रयोग से उन्हें बार-बार पब्लिसिटी मिल ही जाती है। इसी पब्लिसिटी से उनका धंधा चमकता है।

जाहिर है, लाज-शर्म वाली उनकी ग्रंथि इतनी भोथरी हो चुकी है कि बार-बार मुँह पर कालिख पुतवाकर और भीड़ द्वारा पिटकर भी वे अपना आचरण सुधारने को तैयार नहीं हैं। अपना आचरण ठीक है नहीं, भगवान श्रीकृष्ण के लिए आचरण प्रमाण पत्र जारी करने चले हैं। अब उन्हें तो अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन हम अगर आलोचना करें, तो इसे वे असहिष्णुता का महा-विस्फोट बताएंगे। बीजेपी और आरएसएस को गालियाँ देंगे। मोदी और योगी को कोसेंगे।

सच… प्रशांत भूषण जैसे लोगों ने गजब प्रदूषण फैला रखा है। कोई “ईव टीजर” तो किसी के तन से छेड़खानी करता होगा, ये ऐसे ईव-टीजर हैं, जो लोगों की आत्मा तक को नोंच-खरोंच डालते हैं।

(देश मंथन, 03  अप्रैल 2017)

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