प्रत्यूशा की मौत के बहाने

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संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

मैंने किसानों की आत्महत्या पर नहीं लिखा, डेल्टा मेघवाल की मौत पर भी नहीं लिखा लेकिन प्रत्यूशा बनर्जी की मौत पर लिख रहा हूँ। कारण इसी में है फिर भी ना समझ में आये तो उसपर फिर कभी बात कर लेंगे। फिलहाल प्रत्यूशा और उसके जैसी अभिनेत्रियों की मौत के कारणों को समझने की कोशिश करते हैं। जो छोटे शहरों से निकल कर बड़ा काम करती है। शोहरत और पैसा कमाती हैं, सब ठीक-ठाक चल रहा होता है और अचानक पता चलता है कि उसकी मौत हो गई (आत्महत्या कर ली, हत्या हो गई या शीना बोरा की तरह) या गायब हो गयी।

कारण हर तरह के हैं, होते हैं लेकिन प्रेम संबंध, पति, प्रेमी, आशिक, ब्वायफ्रेंड की भूमिका भी सामने आती है और कुछ मामले खुलते हैं, कुछ नहीं खुलते हैं। मरने वाली बदनाम जरूरी होती है या कर दी जाती है। मीडिया ट्रायल की अलग समस्या है। जो तुरंत बंद होना चाहिए पर वह हमारे हाथ में नहीं है। 

ऐसा लगभग हर क्षेत्र में होता है पर फिल्म और टीवी की दुनिया और उसपर मीडिया की नजर, अभिनेत्री और उसके ब्वायफ्रेंड की लोकप्रियता आदि के मद्देनजर टीआरपी की संभावना ज्यादा रहती है तो फिल्म और टीवी की दुनिया के मामले कुछ ज्यादा ही चर्चित हो जाते हैं। हर बार, मोटे तौर पर अटकल। बात यही होती है प्यार में सताये जाने पर या असफल रहने पर लड़की ने खुदकुशी कर ली और प्रेमी या मित्र को खलनायक बना दिया जाता है। मैं नहीं कह रहा कि ऐसा नहीं होता है पर इसके साथ यह कहना कि शादी से पहले किसी लड़की का लड़के के साथ रहना (लिव इन या वैसे ही मिलना-जुलना, दोस्ती प्रेम जो कह लीजिए) आज की स्थितियों में बुनियादी तौर पर गलत नहीं है। 

लड़कियों को नहीं पढ़ाने, अपने पैरों पर खड़े होने योग्य नहीं बनाने की बुराइयाँ है। सबने देखा है, सब जानते हैं। अब जब आप उन्हें स्वतंत्र बना रहे हैं, अपने पैरों पर खड़े होने लायक बना रहे हैं तो उससे जुड़ी बुराइयाँ जो हैं सामने आयेंगी। आ रही हैं। उनसे निपटना होगा। उनसे उसी हिसाब से लड़ना होगा। उसके लिए वैसे ही उपाय करने होंगे। ये नहीं चलेगा कि लड़की गर्भवती हो गयी इसलिए आत्महत्या करना जायज है या लिव इन में रहती थी इसलिए उसे गर्भवती बनाने वाला ही दोषी है या नहीं दोषी है – इसपर बात होनी चाहिए, खुल कर होनी चाहिए वरना लड़कियों को घरों में बंद रखिए, 16-18 साल में शादी कर दीजिए, जैसी किस्मत होगी वैसा जीवन जीएंगी। और पति मर जाता था तो लोग सती भी बना ही देते थे। उसे भी जायज और सही मान लीजिए। 

जाहिर है अब यह सब नहीं होने वाला। तो परिवार से दूर, महानगरों में अकले रहने वाली लड़कियों की जरूरतों के बारे में सोचिए। उसे अकेले रहने योग्य बनाइए। ऐसी लड़कियों के लिए किसी पुरुष साथी की अनिवार्यता है। अगर आप इसे अनिवार्य न मानें तो यह एक सुविधा की तरह तो है ही। और ना सभी लड़के एक जैसे होते हैं और ना सभी लड़कियाँ एक जैसी हो सकती हैं। इसलिए अलग मामलों में घटना, परिस्थिति और पात्रों के अनुसार बात होनी चाहिए। जनरलाइज नहीं किया जाना चाहिए। अगर ऐसे मामलों में आप लड़कों को दोषी मानते हैं तो शीना बोरा के मामले को याद कीजिए। उसके तो प्रेमी के कारण ही हत्या का राज खुला वरना मारने वाले तो वो हैं (संभवतः) जिनपर किसी को शक ही नहीं था। 

(देश मंथन, 06 अप्रैल 2016)

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