संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
“अच्छा बताइए, राज्य सभा को अपर हाउस क्यों कहते हैं?”
“नहीं पता सर।”
“संसद के कितने अंग होते हैं, यह तो पता होगा ही।”
“नहीं सर, यह भी नहीं पता।”
“ओके, संसद में शून्य काल के बारे में तो सुना ही होगा।”
एक बड़ी चुप्पी…।
“आपने तो अभी बताया था कि आपने राजनीति शास्त्र में ऑनर्स किया है।”
हाँ सर। लेकिन पाँच-छह साल हो गये, सब भूल गयी हूँ।
“अच्छा, आपने और कौन-कौन से विषय लिए थे ग्रेजुएशन में?”
“इंगलिश, हिंदी और हिस्ट्री सब्जेक्ट भी थे साथ में।”
“लॉर्ड कर्जन का नाम सुना होगा?”
बिना किसी अपराध बोध के उन्होंने चमकते दाँतों को फैला कर कहा, “सुना तो है, लेकिन अभी कुछ याद नहीं आ रहा।”
“इंग्लिश और हिंदी के बारे में कुछ पूछूं?” यह मेरा अगला सवाल था।
“सर, पूछने को तो आप कुछ भी पूछ लें। लेकिन पढ़ाई छूटे वक्त बीत गया है।”
“आपकी लिखित परीक्षा जो हमने ली है, उसमें आपने सामान्य ज्ञान के 50% सवाल छोड़ दिये हैं। बाकी के आधे जवाब गलत हैं। अनुवाद आपने ठीक नहीं किया है। हिंदी में हिज्जे गलत हैं। इंटरव्यू में आप कुछ जवाब नहीं दे पा रहीं। क्या करूं?”
“सर, एक बार एंकर बन जाऊं फिर सब आ जाएगा। आप मेरे काम से खुश रहेंगे। आपको निराश होने का मौका नहीं दूँगी। आप जो कहेंगे करुँगी।”
“आपका अनुभव?”
“सर, 4 साल से उस छोटे से चैनल में काम कर रही हूँ। अब किसी बड़े चैनल में काम करना चाहती हूँ।”
“आपको क्या लगता है, एक एंकर में क्या-क्या खूबी होनी चाहिए?”
“सर, मैं स्मार्ट हूँ। सुंदर हूँ। आत्मविश्वास से भरी हुई हूँ।”
एक चुप्पी।
“मैं किसी का भी इंटरव्यू ले सकती हूँ? बॉलीवुड मेरा पैशन है।”
“मान लीजिए आपको आज शाहरुख खान का इंटरव्यू लेना हो तो आप उनसे क्या सवाल पूछेंगी?”
“मैं पूछूंगी, टीवी से फिल्मों तक का आपका सफर कैसा रहा?”
लेकिन इस सवाल को तो उनसे हजार बार पूछा जा चुका है। ये तो 25 साल पुरानी बात हो चुकी है। और अगर अमिताभ बच्चन सामने आ जाएँ तो?
ओ माई गॉड, अमिताभ बच्च्न! सर, मेरा सपना है, एक बार उनका इंटरव्यू करूँ।
“लेकिन पहला सवाल क्या होगा?”
“सर, अमिताभ बच्चन सामने होंगे? मुझे संभलने का जरा मौका दीजिए। मैं सोच कर बताती हूँ।”
31 दिसंबर। जाते हुए साल का आखिरी दिन।
मैं बहुत बेसब्री से कुछ एंकर और कुछ डेस्क पर काम करने वालों की तलाश कर रहा हूँ। पिछले कई दिनों से रोज इंटरव्यू ले रहा हूँ। हमने बहुत सामान्य सा नियम बना रखा है। जो भी आवेदन भेजता है, उसकी लिखित परीक्षा ली जाती है, फिर तीन लोग मिल कर इंटरव्यू लेते हैं।
हमारी कोशिश रहती है कि जिसे हिंदी, अँग्रेजी और सामान्य ज्ञान की जानकारी हो, उसे अनुभव के आधार पर नौकरी दे दें। कुल मिला कर पिछले तीन महीनों में मैंने इंटरव्यू लिए। यकीन कीजिये, शुरू-शुरू में हँसी आती थी। अब रोना आता है।
क्या सचमुच हमारी शिक्षा इतनी खराब हो गयी है कि हम बीए, एमए की डिग्री उन लोगों को दे देते हैं, जिन्हें एक भी भाषा ठीक से नहीं आती। मैं अक्सर सोच में पड़ जाता हूँ कि जिसने हाई स्कूल की परीक्षा भी ईमानदारी से पास की होगी, उसे एक भाषा तो ठीक से आती होगी। अगर उसने हिंदी माध्यम से पढ़ाई की है तो हिंदी पर तो नियंत्रण होगा।
चलिए बहुत अच्छी अँग्रेजी न भी आए, तो कामचलाऊ अँग्रेजी तो आनी चाहिए। और अगर किसी ने इतिहास, राजनीति शास्त्र में ऑनर्स किया हो और उसे बुनियादी बातें न पता हों तो उस संस्थान पर मुकदमा ठोक देना चाहिए जहां से ऐसे बच्चे डिग्री लेकर निकलते हैं। मुझे नहीं पता शिक्षा तंत्र में ऑिडट की व्यव्स्था किस तरह होती है, लेकिन मैं पचास लोगों के बायोडेटा उन लोगों तक भिजवा सकता हूँ, जिन्हें कायदे से छठी कक्षा भी नहीं पास करनी चाहिए थी।
अगर किसी शिक्षक ने किसी और योग्यता को देख कर उन लड़के और लड़कियों को पास किया है, ग्रेजुएट होने का मौका दिया है, तो वो शिक्षक अपराधी है। ऐसे शिक्षकों पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने देश की पूरी पीढ़ी के साथ गद्दारी की है।
जो लड़की किसी भी चैनल में मोतियों से दमकते दाँतों और लहराते बालों के बूते टीवी पत्रकार बनने का दंभ भरती हैं, उन्हें कौन बताए कि जिस तरह बुरे ड्राइवर के हाथों में गाड़ी सुरक्षित नहीं होती, जिस तरह खराब पायलट के हाथों विमान सुरक्षित नहीं होता, उसी तरह अशिक्षित और अर्द्ध शिक्षित पत्रकारों के हाथों देश का चौथा स्तंभ सुरक्षित नहीं रहेगा।
मेरे पिता मुझे सलाह दिया करते थे कि रोज रात 9 बजे टीवी पर खबरें देखा करो, सुबह ‘हिंदू, स्टेट्समैन और इंडियन एक्सप्रेस’ पढ़ा करो। इससे सामान्य ज्ञान ठीक होगा, अँग्रेजी दुरुस्त होगी। कई साल बीत गए हैं।
मैं संजय सिन्हा, मैंने अपने बेटे से नहीं कहा कि तुम सुबह उठ कर अखबार जरुर पढ़ो। मैंने यह भी नहीं कहा कि तुम टीवी पर कोई बुलेटिन देखो। मैं नहीं जानता कि दोषी कौन है। क्या पता कुछ दोष मेरा भी हो।
मुझे डेस्क पर काम करने वाले पत्रकारों और कुछ एंकर की हमेशा तलाश रहती है, कोई ऐसा नज़र आए जिसे हिंदी और अँग्रेजी आती हो। जिसका सामान्य ज्ञान ईमानदारी से रोज की खबरों लायक भी हो तो चलेगा।
और जिन्हें ऐसा लगता हो कि सिर्फ स्मार्ट और सुँदर होना एंकर बनने का क्वॉलिफिकेशन है, उन्हें खुद पर शर्मिंदा होना चाहिए यह कहते हुए कि उनमें आत्मविश्वास है।
आत्मविश्वास उनके भीतर होता है, जिनके भीतर ज्ञान की ईमानदारी होती है। बाकी जो लोग अपने भीतर आत्मविश्वास बताते हैं, दरअसल, उसे निर्लज्ज होना कहते हैं।
(देश मंथन, 2 जनवरी, 2015)